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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

सम्पर्क दिसम्बर २००९: जीना ज़रूरी नहीं, मजबूरी है

दार्शनिक नीत्शे कहता था "परमेश्वर मर चुका है।" नीत्शे के पिता, भाई और परिवारजन धर्मगुरू थे। वह उन्हीं के साथ पला बढ़ा था। वह कहता था, "इन धर्मगुरूओं के साथ रहकर तो देखो, धर्म पर से तुम्हारा विश्वास ही हट जायेगा। हमने उस हत्यारे परमेश्वर की हत्या कर दी है जिसके नाम पर इतनी हत्याएं कर दी जाती हैं।"

सच तो यह है कि जिसके लिये परमेश्वर मर गया, वही आदमी आज जीते हुए भी मरे जैसा है। जिस आदमी के दिल में परमेश्वर का डर न हो, उस आदमी पर एक पागलपन सवार हो जाता है। नास्तिकता भी ऐसा ही पागलपन पैदा करती है। ज्ञान के घमंड ने नास्तिक नीत्शे को पागल कर दिया और वह पागलपन में ही मरा।

जो आदमी नास्तिकता में जीता है, वह एक दुविधा में जीता है। उसे बहुत सारे सवाल सताते हैं - कैसे हुआ? पृथ्वी कैसे बनी? इससे आगे क्या होगा? वह एक बेचैनी में जीता है और यही सिद्ध करने में लगा रहता है कि परमेश्वर है ही नहीं। नास्तिक की आस्था बे सिर-पैर के सवालों पर खड़ी रहती है। वे कहते हैं कि जैसे परमेश्वर किसी के बिना बनाये बना है तो क्या पृथ्वी भी बिना किसी के बनाये नहीं बन सकती? वे भूल जाते हैं कि परमेश्वर और पृथ्वी की एक-दूसरे से तुलना करना मूर्खतापूर्ण है क्योंकि परमेश्वर बना नहीं था, वह है! पृथ्वी नश्‍वर है, और रोज़ उसकी चीज़ें जन्म भी लेती हैं और मरती भी हैं।

कुछ लोग यह तो विश्वास करते हैं कि परमेश्वर है, लेकिन उनकी मानसिकता परमेश्वर से नहीं धर्म से बंधी होती है। ज़्यादतर हमारा समाज ऐसे ही धर्म को मानने वाला समाज है। वह धर्म के लिये सब कुछ कर सकता है। वह अपने धर्म के लिये दूसरे धर्म के मानने वालों की हत्या कर सकता है, उनके घर उजाड़ सकता है, उनके बच्चों को ज़िन्दा जला सकता है। ऐसे-ऐसे काम धर्म ही करवा सकता है, परमेश्वर नहीं। जो परमेश्वर से प्यार करते हैं वे इन्सान और इन्सानियत से भी प्यार करते हैं। जो धर्म से प्यार करते हैं उनके लिये इन्सान और इन्सानियत का कोई महत्व नहीं है।

हमारे समाज की हालत भी देखिएगा; आदमी साँप से भी ज़्यादा डरावना हो गया है। सुनसान जगह पर साँप का नहीं आदमी का डर ज़्यादा सताता है। आज लोग ज़हीरेले जानवरों से बचने के उतने प्रयास नहीं करते जितने वे दूसरे आदमियों से बचने के करते हैं। साँप तो कभी-कभार एक आदमी को काटकर मारता है, पर आदमी का ज़हर तो रोज़ ही आदमी को मार रहा है।


हमारे अधर्म एक से हैं

हमारे धर्म अलग-अलग हैं पर हमारे अधर्म एक से ही हैं। चाहे धर्म कोई भी हो, हमारे कर्म भी एक से हैं और एक सी ही हमारे जीवन और परिवार की हालत है। एक छत के नीचे एक बिखरा हुआ परिवार मिलता है। बाप, पिता होने की अकड़ में जीता है, तो पत्नि पति पर एहसान जताती रहती है-क्या किया, क्या दिया बस यही ताने सुनते रहो, अगर बोले तो बवाल मच जाएगा। कल जो जन-ए-मन थी आज जान-ए-बवाल है। बच्चे अपने में मस्त हैं। रिश्तेदारों में खींचतान है। मिलते तो रहते हैं पर उनके दिल मिले नहीं होते। अपने लहु का सगा भी कब धोखा दे जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता। आखिर विश्वास करें तो किस पर करें और किस पर नहीं? आमने-सामने मूँह मुस्कुराता है पर मन कोसता है। हम जानते भी नहीं कि हर मुस्कुराहाट के पीछे कितने झूठ छिपे हैं।

बात तो मज़ाक की है पर हमारे घरों के हालात समझने में सहायता करेगी। एक पति-पत्नि में लड़ाई हुई, पति ने गुस्से में बाज़ार से ज़हर लिया और खाकर लेट गया। मरा तो नहीं पर बीमार ज़रूर पड़ गया। पत्नि, पति से चिल्लाकर बोली, "मैं हमेशा यही बात तो कहती हूँ कि सामान देख-भाल कर खरीदा करो। अब देखो पैसे भी गये और काम भी नहीं हुआ।"

शायद आपके घर में ऐसा न हुआ हो, पर बहुत से परिवारों में पति-पत्नि के संबन्धों में खटास आ चुकी है। उनमें मतभेद नहीं पर मनभेद हो चुके हैं। बहुत से साथ जीते तो हैं पर मन में उनका तलाक हो चुका है। साथ जीना उनके लिये एक मजबूरी बन गया है। अक्सर जब पति-पत्नि के संबन्ध टूटते हैं तो लोग कहते हैं कि "वे एक दूसरे को समझ नहीं पाए।" पर वास्तविक रूप में एक दूसरे की असलियत तो शादी के बाद ही समझ में आनी शुरू होती है, चाहे शादी से पहले भी एक दुसरे को जानते हों।


दर्द और दरवाज़े

भले ही हम दूसरे के दर्द समझ न पाएं, पर दर्द तो हर दरवाज़े की कहानी है। जैसे, किसी बेचारे गंजे की परेशानी को आप सही तौर से समझ नहीं पायेंगे। पहला तो यह कि वह मूँह कहाँ तक धोये? दूसरा यह कि नाई के पास जाते हुए बड़ी शर्म आती है कि वहाँ बैठे लोग क्या कहेंगे? खैर कहते तो कुछ नहीं पर उनका कनखियों से देखना और फिर हल्का सा मुस्कुराना बहुत तीखा चुभता है। नाई भी बेचारा परेशान कि कहाँ से काटूँ और कहाँ से छोड़ूँ? पैसे लेते वक्त भी उसे परेशानी होती है कि पैसे बाल काटने के लूँ या ढूंढने के? हम दूसरों की परेशानी को सही तरह समझ नहीं पाते; पर इतना ज़रूर है कि मैं और आप कहीं न कहीं परेशानियों से निकल रहे हैं।

एक विदेशी पर्यटक को देख कुछ भिखारी हाथ फैला कर उससे भीख माँगने लगे। उस विदेशी पर्यटक ने पहले अपना कैमरा तैयार किया, फिर एक अजीब बात की, पैसे निकाल कर उनके हाथों में देने की जगह, ज़मीन पर बिखेर दिये। सारे भिखारी तेज़ी से ज़मीन पर गिरे सिक्कों को उठाने लगे और उनमें सिक्के उठाने की होड़ लग गई। पर्यटक भी उनकी इन हरकतों को अपने कैमरे में फुर्ती से कैद करने लगा। एक आदमी जो यह देख रहा था, उसे बड़ा बुरा लगा। उस विदेशी के जाने के बाद उसने उन लोगों से कहा, "वह अपने देश में लेजा कर इन तस्वीरों को पत्रिकाओं में छापेगा। तब हमारे देश के लिये कितनी शर्मनाक बात होगी और उन लोगों के दिमाग़ में हमारी क्या तस्वीर बनेगी? क्या तुमने कभी यह सोचा?" एक भिखारी ने जवाब दिया, "साहब, हम तो यह जानते हैं, पर भूखा पेट नहीं जानता; और आप सिर्फ बडी-बड़ी बातें मत कीजिये, कुछ करना ही है तो हमारी इस हालत को सुधारने के लिये कुछ कीजिये।" समस्याओं पर उपदेश तो हमारे पास बहुत हैं, पर समस्या का समाधान नहीं है।


जब ज़िन्दगी बोझ लगने लगती है

"टैन्शन" एक ऐसा शब्द है जिसे आप जीवन के हर पहलू में देख सकते हैं: शादी हो गई तो टैन्शन, नहीं हुई तो टैन्शन। बच्चे नहीं हुये तो टैन्शन, हो गये तो टैन्शन। नौकरी नहीं है तो टैन्शन, मिल गयी तो टैन्शन। आदमी पतला है तो टैन्शन, मोटा है तो टैन्शन। कितनी ही बीमारियाँ हममें टैन्शन बनाये रखती हैं। परेशानियों से सारी उम्मीदें टूटने लगती हैं, आदमी का मन हारने लगता है और कितने डर उसे सताते हैं - क्या होगा? कैसे होगा? आदमी को ज़िन्दगी बोझ लगने लगती है।

कितनी ही अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी, अच्छा घर और अच्छा सामान हो, किंतु उसमें प्यार, खुशी और चैन न हो तो सब व्यर्थ है। दुनिया की सब चीज़ें पाकर भी अगर परेशान हैं तो सब पाने का क्या अर्थ है? परेशानियाँ होने का कारण धन-दौलत या दुन्याबी चीज़ों की कमी नहीं है; परेशानियाँ हैं क्योकि हममें अहंकार है, बदले लेने की भावना भरी है, दूसरों को नीचा दिखाना चाहते हैं। कितने ही गलत संबंध पाल रखे हैं, बुरी लतों से लदे हैं, खुद का और परिवार का जीना हराम कर रखा है। और फिर रौब ऐसा रखते हैं कि पता नहीं क्या हैं और क्या कर देंगें?

पाषाण युग से कम्पयूटर युग तक आदमी ने बहुत कुछ बदल डाला, पर आदमी अपने स्वभाव को नहीं बदल पाया। हममें से अधिकाँश लोग चाहते हैं कि हमारे राजनेताओं का चरित्र बदले, पुलिस व्यवस्था बदले, सरकारी कामकाज का तरीका बदले, अधिकारियों का व्यवहार बदले। हम दिल से बदलाव चाहते हैं। पर कितने हैं जो चाहते हैं कि स्वयं हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले, हमारा चरित्र बदले, हमारा परिवार बदले; और ऐसे बदलाव के किये प्रयत्न करते हैं? अब तो संसार की यह स्थिती है कि न हम और न हमारा संसार संभल सकता है। कल परेशनी में था, आज की परेशानियों भी कम नहीं हैं और आने वाला कल और भी भयानक परेशानियां लिये तैयार खड़ा है।

अगर कहीं चुपके से मौत हमें हमारे पापों के साथ ही ले गई, तो वो हमें हमेशा की परेशानी में पहुँचा देगी। आप माने या न माने, ’पाप’ ही हर परेशानी की जड़ है। पाप तो हम सबने किया है, उसके प्रकार या घिनौनापन अलग अलग हो सकता है। पहले दर्जे का पापी हो या दूसरे दर्जे का, मन्ज़िल सबकी एक ही है। मेरे प्यारे पाठक, केवल प्रभु यीशु ही आपको आपके पाप से छुटकारा दे सकता है, वह इस संसार में आया ही इसी लिये था। जब हम यीशु को इसाई धर्म से जोड़ते हैं तो एक तरह से यह उसे अपमानित करना है, क्योंकि वह किसी धर्म या जाति के लिये नहीं सारे संसार के लिये आया। वह सबका है और सबको प्यार करता है। उसने सारे जगत से ऐसा प्यार किया कि अपने आप को सबके पापों के लिये क्रूस पर बलिदान कर दिया, ताकि मैं और आप अनन्त आनन्द और अद्‍भुत शांति पाएं।

आपकी एक प्रार्थना सब बदल डालेगी। आपको धर्म बदलने की कतई ज़रूरत नहीं है। एक प्रार्थना "हे यीशु मुझ पापी पर दया करके मेरे पापों को क्षमा करें।" सिर्फ १२ शब्दों कि यह क्षमा प्रार्थना, पापों की सारी सज़ा से हमेशा-हमेशा कि लिये छुटकारा दे डालेगी।


जो भी सीने में छिपा है

मुझे वो सब लिखना पड़ता है जो आप अपने सीने में छुपाये हैं। शायद शर्मनाक काम जो कभी अन्धेरों में किये और अब सीने में छुपाये हैं। मेरे और आपके ये काम, ये पाप कब तक और कहाँ तक छिपेंगे? एक न एक दिन तो खुलेंगे ही, यहाँ नहीं तो वहाँ, अब नहीं तो तब; क्योंकि पाप ने हमें हमारी मज़्दूरी तो देनी ही है। हमारे पाप हमें खींच ले जायेंगे उस अनन्त परेशानी में जहाँ से फिर निकल पाना संभव नहीं है।

प्रभु की आवाज़ एक ऐसी आवाज़ है जो बड़े प्यार से सीधे दिल पर वार करती है। कितना भी छिपना चाहें, यह आवाज़ आपके अन्दर के चेहरे को आपके सामने ला खड़ा कर देगी। सीने में छिपे कितने ही काले कारनामों को ऐसे उजागर करती है कि सब कुछ साफ-साफ सामने आ जाता है, अपनी हकीकत अपनी नज़रों के सामने देखकर आदमी सहम सा जाता है। लेकिन वही प्रभु सब बदल भी देता है, अगर उससे कहें तो। सब बदल जायेगा, आप एक कदम तो उठाइये। द्वार तो खोलिये, प्रकाश तो द्वार पर तैयार खड़ा है जीवन के अन्धकार को दूर करने के लिये, देरी और दूरी तो आपकी तरफ से ही है।

यह समय इतने बुरे समय में बदलने जा रहा है कि पश्चाताप करना भी चाहेंगे तो नहीं कर पायेंगे। इसलिये अब जाग उठने का समय आ गया है। प्रकाश को पाना ही अन्धकार को खोना है। सत्य को पाना ही असत्य को खोना है।
अब मैंने यह शब्द इस काग़ज़ के हवाले कर दिये हैं, ताकि परमेश्वर के दिल की आवाज़ आपके दिल तक पहुँच जाये। वह नहीं चाहता कि आप नाश हों। पर एक प्रार्थना सब कुछ बदलने की सामर्थ रखती है - "हे यीशु मुझ पापी पर दया कर।"

मैं आपको चेता सकता हूँ, पर फैसला तो आपको ही करना है। आप एक प्रार्थना करके अभी प्रभु की शक्ति और उसकी आशीश को परख सकते हैं, "हे यीशु मुझ पापी पर दया करके मेरी प्रार्थना की लाज रखें।"

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