क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष करना
पड़ता है?
1. क्या पवित्र आत्मा प्रभु से मांगने से मिलता है? – (लूका 11:13)
(संबंधित पहली दो बातें)
बाइबल में कहीं भी ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया है कि पवित्र
आत्मा प्राप्त करने के लिए किसी भी मसीही विश्वासी को कोई विशेष प्रयास,
प्रतीक्षा, प्रार्थना, योग्यता, या अवसर की आवश्यकता नहीं होती है। अकसर लूका
11:13 को आधार बना कर यह दावा किया जाता है कि स्वयं प्रभु यीशु ने कहा है कि
पवित्र आत्मा माँगने से मिलता है। किन्तु ऐसा कहना बाइबल की इस बात की व्याख्या
करने में भी वही दो गलतियाँ करना है, जो सामान्यतः बाइबल की लगभग सभी बातों की
अनुचित व्याख्या एवं अनुचित प्रयोग करने के साथ की जाती है – पहली गलती, बात को उसके
सन्दर्भ से बाहर ले कर, केवल कुछ ही शब्दों के अनुसार उसकी व्याख्या करना; तथा दूसरी
गलती, उस बात या विचार से संबंधित बाइबल की अन्य शिक्षाओं एवं पदों का ध्यान न रखते
हुए, बिना उन शिक्षाओं का उस व्याख्या में समावेश किए, एक विशेष धारणा को समर्थन
देने के लिए केवल कुछ चुने हुए शब्दों, वाक्यांशों, और पदों का प्रयोग करना।
आईए प्रभु से मांगने के द्वारा पवित्र आत्मा मिलने की लूका
11:13 की बात को उसके सन्दर्भ में और अन्य संबंधित शिक्षाओं के साथ रख कर देखते
हैं, और तब उनके अनुसार निष्कर्ष लेते हैं:
(1) लूका 11:13 को उसके सन्दर्भ, अर्थात लूका 11:1-13, के साथ देखने पर जो पहली
बात हमारे सामने आती है, वह है, कि इस खण्ड में प्रभु यीशु मसीह द्वारा कही गई
यह बात, उनके चेलों (लूका 11:1) के साथ हो रहे प्रभु के संवाद का भाग है – अभिप्राय
यह है कि प्रभु यीशु ने पवित्र आत्मा मिलने की बात हर किसी के लिए नहीं कही, और न
ही हर उस व्यक्ति के लिए कही है जो कोई भी प्रभु का जन होने, उस पर विश्वास करने
का दावा करे; वरन प्रभु ने यह केवल उन के लिए ही कही है जो वास्तव में प्रभु के चेले
हैं। इस बात को और इसके अर्थ एवं तात्पर्यों को समझना बहुत आवश्यक है। यदि इसे
यूहन्ना 7:37-39 के साथ मिलाकर देखें तो यह और स्पष्ट हो जाता है कि पवित्र आत्मा
केवल प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने वालों, अर्थात प्रभु यीशु के शिष्यों को ही
दिया जाना था, और वह भी भविष्य में; न कि उसी समय जब प्रभु ने यह बातें कहीं थी।
आगे चलकर, क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाए जाने से पहले प्रभु ने सहायक के रूप
में एक बार फिर केवल शिष्यों को ही, आने वाले समय में, पवित्र आत्मा दिए जाने की
प्रतिज्ञा दी थी (यूहन्ना अध्याय 14, 16)। और अंततः जब प्रेरितों दो अध्याय में
पवित्र आत्मा दिया गया तो वह केवल प्रभु के विश्वासियों या शिष्यों को ही दिया गया
(प्रेरितों 2:1-4), जब कि वहां उस समय अनेकों “भक्त यहूदी” (प्रेरितों 2:5) विद्यमान
थे। (इसकी और पुष्टि, कि यह केवल चेलों ही के लिए है, आगे के भागों भी दी गई है)।
(2) दूसरी बात जो हम देखते हैं, वह है कि प्रभु यहाँ शिष्यों को
उदाहरण के द्वारा यह समझा रहे हैं कि यदि सांसारिक पिता अपनी संतान के लिए उत्तम
दे सकता है, तो परमेश्वर पिता सर्वोत्तम, यहाँ तक कि पवित्र आत्मा भी क्यों नहीं
दे देगा? प्रभु अपने शिष्यों
को यहाँ लूका 11:5-13 पद में समझा रहा है कि वे अपनी आवश्यकताओं के लिए चिंतित न
हों, वरन सदा अपना भरोसा परमेश्वर पर रखें कि समय और परिस्थिति के अनुसार,
परमेश्वर पिता उनकी आवश्यकताओं को पूरा करता रहेगा। इस बात को पद 10-13 में वह और
विशिष्ट रीति से समझाता है कि जैसे सांसारिक पिता अपनी संतान को यथासंभव अच्छा ही
देते हैं, वैसे ही परमेश्वर पिता भी अपनी संतान को उनके लिए सदा सर्वोत्तम ही देगा।
परमेश्वर द्वारा अपने लोगों को भली वस्तुएं देने की कोई सीमा नहीं है, यहाँ तक कि
जो उसे मांगने का साहस रखने वाले होंगे वह उन्हें वह पवित्र आत्मा को भी, अर्थात परमेश्वर
स्वयं अपने आप को, भी दे देगा।
ध्यान कीजिए, यहाँ पर इस पूरे वार्तालाप में ऐसा कहीं
कोई संकेत नहीं है कि प्रभु चेलों को कोई निर्देश या आज्ञा दे रहे हैं कि “भविष्य
में मेरे जो शिष्य परमेश्वर से उसे माँगेंगे केवल उन्हें ही पवित्र आत्मा प्राप्त
होगा; या जो माँगेगा उसे ही पवित्र आत्मा दिया जाएगा।” अपने स्वर्गारोहण से पहले
जब प्रभु ने इन्हीं चेलों से सेवकाई पर निकलने से पहले पवित्र आत्मा मिलने की
प्रतीक्षा करने के लिए कहा, तब भी न तो किसी चेले ने प्रभु की इस पहले कही गई बात
को लेकर कोई असमंजस व्यक्त किया या प्रश्न उठाया, और न ही किसी ने प्रभु की लूका
11:13 की बात के आधार पर प्रभु से तुरंत ही पवित्र आत्मा मांग लिया, जिससे कि वे
सेवकाई पर निकल सकें। इससे प्रगट है कि प्रभु की इस बात यह अभिप्राय था ही नहीं,
जो आज के कुछ प्रचारक इसे दे रहे हैं, कि पवित्र आत्मा माँगने से मिलता है। इसलिए
इस बात को यह स्वरूप देना और सिखाना कि “प्रभु ने कहा है कि मांगने से ही पवित्र
आत्मा मिलेगा” प्रभु के वचन का दुरुपयोग और अनुचित व्याख्या तथा शिक्षा देना है, भक्ति
और आदर के भेस में वचन को झूठा ठहराना है।
यह पद एक तुलनात्मक उदाहरण के द्वारा किया गया चित्रण है
कि सांसारिक पिता उत्तम देते हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि स्वर्गीय परमेश्वर पिता
सर्वोत्तम देगा; यहाँ तक कि पवित्र आत्मा भी देने को तैयार है – उसके प्रेम और दान
देने की कोई सीमा नहीं है, वह मानव जाति के लिए स्वयं को भी उपलब्ध करने को तैयार
है, यदि कोई लेने को तैयार हो।
- क्रमशः
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