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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

पवित्र आत्मा पाना – 2 – विशेष प्रयास – माँगने से – लूका 11:13 (भाग 3)



क्या पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष करना पड़ता है?

1. क्या पवित्र आत्मा प्रभु से मांगने से मिलता है? (लूका 11:13)

(संबंधित चौथी बात एवं निष्कर्ष)

(4) उपरोक्त बातों के आधार पर वह बहुत ही महत्वपूर्ण चौथी बात जिसे हमें बड़े ध्यान से समझना है और फिर जिसका हमें सावधानी से पालन करना चाहिए, वह है कि मसीही विश्वासी होने का दावा करने वालों में अवश्य ही कुछ ऐसे भी होंगे जो प्रभु और उसके वचन की परख के अनुसार सच्चे मसीही विश्वासी नहीं हैं, इसलिए उनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति कदापि नहीं होगी। इन अंत के दिनों के लिए प्रभु ने पहले से ही सचेत कर दिया है कि ऐसे बहुतेरे ‘विश्वासी’ आएँगे जो “भक्ति का भेस तो धरेंगे, किन्तु उसकी शक्ति को नहीं मानेंगे” (2 तीमुथियुस 3:5)। ऐसे लोग प्रभु यीशु के प्रति चाहे कितनी भी भक्ति या विश्वास रखने का दावा करते रहें, कितने भी समय से मसीही मंडली का भाग रहे हों, मंडली में कितने भी सक्रिय रहे हों; उनके द्वारा कैसे भी और कितने भी अद्भुत काम और प्रचार क्यों न हुए हों (मत्ती 7:21-23), वे वास्तव में प्रभु के शिष्य, उस के सच्चे समर्पित और आज्ञाकारी जन हैं ही नहीं। ऐसे लोग चाहे कितना भी मांग लें, किन्तु उन्हें पवित्र आत्मा तब तक मिलेगा ही नहीं जब तक कि वे सच्चे पश्चाताप, पापों के अंगीकार और क्षमा प्राप्ति, जीवन समर्पण, और वचन की आज्ञाकारिता के साथ वास्तव में प्रभु के जन न हो जाएं। इसके विपरीत ऐसे लोग भी होंगे जिन्होंने आरंभ से ही सच्चे मन से पश्चाताप किया, वास्तव में प्रभु यीशु के आज्ञाकारी हो गए, और प्रभु को सच में अपना जीवन समर्पण कर दिया; और इसलिए प्रभु का पवित्र आत्मा उनके मसीही विश्वास में आते ही तुरंत ही उनके अन्दर निवास तथा कार्य करने लग गया।

अब, वचन की संबंधित शिक्षाओं और वास्तविकता पर ध्यान किए बिना, मात्र बाहरी स्वरूप और दिखावे के लिए उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर, इस तथ्य की यह व्याख्या करना कि किसी को पवित्र आत्मा शीघ्र दे दिया जाता है, और किसी को विलम्ब से; इसलिए जिसे नहीं दिया गया है वह इसके लिए प्रार्थना, उपवास, या अन्य प्रयास करे और प्रभु से माँगे, प्रभु के सामने गिड़गिड़ाए, उन से प्रभु के नाम में झूठ बोल कर बात का बिलकुल गलत अर्थ प्रस्तुत करना है; लोगों को पवित्र आत्मा पाने के विषय बिलकुल गलत शिक्षा, जो कि परमेश्वर के वचन से बिलकुल मेल नहीं खाती है, देना और भरमाना है; उन्हें सच्चाई को पहचानने और उस का सामना करने में सहायता कर के बच जाने के स्थान पर, उन्हें नरक में धकेलना है। और ऐसा करने वाले सभी प्रचारकों, शिक्षकों, पादरियों, और कलीसिया के अगुवों से परमेश्वर हिसाब लेगा, वे बचेंगे नहीं (यहेजकेल 33:1-9)।

इसके विपरीत, बाइबल के तथ्यों के आधार पर, सभी प्रचारकों, शिक्षकों, पादरियों, और कलीसिया के अगुवों को सभी लोगों को यह समझाना और बताना चाहिए कि क्योंकि पवित्र आत्मा सभी मसीही विश्वासियों में उन के वास्तव में विश्वास में आते ही, बिना कोई अन्य प्रयास किए, स्वतः ही आ जाता है, और सदा उन के साथ बना रहता है, कभी छोड़ कर नहीं जाता है, इसलिए यदि उन्हें लगता है कि उनके अन्दर पवित्र आत्मा नहीं है, तो इसके दो ही अर्थ हो सकते हैं – या तो उन्होंने उसे पाया ही नहीं है; अर्थात उनका मसीही विश्वास में होने का दावा सही नहीं है, और उन्हें इसके लिए उपयुक्त पश्चाताप और समर्पण करना चाहिए। या फिर वे पवित्र आत्मा की आज्ञाकारिता और समर्पण में नहीं जी रहे हैं, जिस कारण से वह उनके जीवन में कार्यकारी नहीं हो रहा है। इसलिए या तो वे अपने उद्धार पाने को सुनिश्चित कर लें, या फिर यदि उनका उद्धार सच्चा है तो अपनी इच्छा के अनुसार करना छोड़ कर, परमेश्वर के वचन और पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के अनुसार करना आरम्भ कर दें (गलातियों 5:25), जिससे वह उनके जीवन में कार्यकारी तथा प्रभावी हो सके। आवश्यकता पवित्र आत्मा को मांगने की नहीं है, आवश्यकता है सच में उद्धार पाने और फिर उसके प्रति समर्पित और आज्ञाकारी रहने की है।

 इसलिए लूका 11:13 को आधार बनाकर यह कहना कि पवित्र आत्मा प्रभु से मांगने से मिलता है, इसलिए हमें प्रभु से प्रार्थना का के पवित्र आत्मा मांगना चाहिए, प्रभु के कथन की गलत व्याख्या और समझ है। इस पद के आधार पर यह गलत शिक्षा देना अनुचित है। इस पद को उसके सही सन्दर्भ तथा सम्बंधित पदों के साथ देखने से ही उसकी बात की वास्तविकता समझी जा सकती है।

- क्रमशः

अगला विषय: विशेष प्रयास – प्रेरितों और अगुवों की सहायता – भाग 1

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