2. क्या पवित्र आत्मा प्रेरितों या कलीसिया के अगुवों
की सहायता से मिलता है?
(भाग 3 – तीन उदाहरणों की समझ)
अब उपरोक्त संबंधित बातों के आधार पर इन तीन उदाहरणों को
समझते हैं: पहली बात जो पहले ही कही जा चुकी है – इन में से किसी ने भी कभी
भी पवित्र आत्मा को पाने के लिए कोई प्रार्थना, प्रयास, या इच्छा नहीं दिखाई;
उन्हें जब पवित्र आत्मा दिया गया, वह परमेश्वर के समय, विधि और इच्छानुसार दिया
गया। केवल एक ने ही पवित्र आत्मा को दूसरों को देने की सामर्थ्य पाने की इच्छा
व्यक्त थी, शमौन टोनहा करने वाले ने, और उसका वास्तविक उद्धार ही नहीं हुआ था, और
उसके यह कहने के लिए उसकी तीव्र निंदा की गई, उससे पश्चाताप करने के लिए कहा गया! दूसरी
बात, यहूदियों से भिन्न ये तीनों वर्ग – सामरी, अन्य-जाति, और युहन्ना बपतिस्मा
देने वाले के शिष्य, इन तीनों के मसीही विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने का
उल्लेख केवल प्रेरितों के कार्य – जो कि पहली मसीही मण्डली के आरंभिक कार्यों का
इतिहास है, में ही दिया गया है। एक बार जब इन सभी वर्गों में से लोग आकर विश्वास
के द्वारा प्रभु की कलीसिया, उसकी देह के साथ जुड़ गए, तो इसके बाद कभी भी किसी भी
पत्री के लेखों में (जो सभी
कलीसियाओं के सुधार और विकास के लिए पवित्र आत्मा के द्वारा अनेकों बातों,
धारणाओं, परम्पराओं आदि को छोड़ने, सुधारने, या अपनाने के लिए बताए गए निर्देश हैं), कहीं भी यह शिक्षा नहीं दी गई है कि मसीही विश्वास में आने के बाद किसी
भी विश्वासी को पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए अलग से कुछ भी करने की आवश्यकता
है, और न ही कहीं भिन्न मसीही विश्वासियों की भिन्न पृष्ठभूमि से होने के किसी महत्व
के होने का कोई उल्लेख किया गया है। तीसरी बात, इन तीनों गैर-यहूदी समूहों
के लोगों को उदाहरण बनाकर कभी भी, परमेश्वर के वचन में कहीं भी यह शिक्षा नहीं दी
गई है, कि इनके समान ही, पवित्र-आत्मा पाने के लिए कलीसिया के किसी प्रेरित, या
अगुवे, या किसी विशेष जन की किसी मध्यस्थता की कोई आवश्यकता है। पत्रियों में कलीसिया
के अगुवों की जिम्मेदारियों को तो बताया और सिखाया गया है, किन्तु कहीं यह नहीं
कहा गया है कि उन्हें लोगों को पवित्र आत्मा प्राप्त करने में सहायक भी होना
चाहिए। चौथी बात, इन तीनों को आधार बना कर बाइबल में कभी भी कहीं पर भी ऐसी
कोई शिक्षा तो दूर, हलका सा कोई संकेत भी नहीं आया है कि ये घटनाएं उदाहरण हैं कि
पवित्र आत्मा पाने के लिए कुछ प्रतीक्षा, या कुछ विशेष करना पड़ता है, पवित्र आत्मा
उद्धार पाते ही तुरंत ही नहीं मिल जाता है।
अर्थात, प्रेरितों के कार्य में उल्लेखित ये घटनाएं, उन
विभिन्न गैर-यहूदी वर्गों के कलीसिया में यहूदियों के साथ ही मिला कर एक कर दिए
जाने का प्रतिनिधित्व मात्र करने के उदाहरण थीं। एक बार जब कलीसिया सब प्रकार के
लोगों से मिल कर एक बन गई तो फिर उन्हें किसी भी आधार पर अलग-अलग देखने की कोई
आवश्यकता नहीं रह गई। इनमें तीसरी घटना में, पौलुस द्वारा यूहन्ना बपतिस्मा देने
वाले के शिष्यों से पूछा गया एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, जो कि आरम्भ में दिए गए
तर्क – पवित्र आत्मा वास्तविकता में उद्धार पाते, मसीही विश्वास में आते ही मिल
जाता है, की एक और पुष्टि है। पौलुस ने पूछा, “...क्या तुम ने विश्वास करते समय
पवित्र आत्मा पाया? उन्होंने
उस से कहा, हम ने तो पवित्र आत्मा की चर्चा भी नहीं सुनी” (प्रेरितों के काम 19:2)। अर्थात पौलुस को यही
स्वाभाविक आशा थी कि जब वे लोग मसीही विश्वास में आए थे, तो उन्होंने तब ही पवित्र
आत्मा प्राप्त कर लिया होगा। किन्तु आगे के वार्तालाप (पद 3-7) से स्पष्ट होता है
कि वास्तव में वे सच्चे मसीही विश्वास में आए ही नहीं थे, इसलिए पवित्र आत्मा पाने
का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। और जब वे पौलुस की सेवकाई के द्वारा वास्तव में वे
लोग मसीही विश्वास में आए, तो उन्होंने पवित्र आत्मा भी तभी तुरंत ही पा लिया।
इसलिए इन उदाहरणों का यह कहने और सिखाने के लिए प्रयोग
करना कि पवित्र आत्मा अलग से मिलता है, इस बात से संबंधित तथ्यों की गलत समझ रखना
और व्याख्या करना है। यह ऐसे गलत निष्कर्ष निकलना और सिखाना है, जिनका परमेश्वर के
वचन के आधार पर कोई समर्थन नहीं है। जब इन घटनाओं को भी उनके सही संदर्भ में और
परमेश्वर के वचन की अन्य सम्बंधित शिक्षाओं के साथ देखा जाता है तो सत्य उजागर हो
जाता है।
- क्रमशः
अगला लेख: क्या पवित्र
आत्मा अगुवों या प्रेरितों द्वारा हाथ रखने से मिलता है?
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