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बुधवार, 11 मार्च 2009

संपर्क अप्रैल-२००८ लेख: मेरे बाप की बात

हज़ार बातों की एक बात,
मेरे बाप की बात!
दो लड़कों में बहस हो रही थी। बड़ा लड़का छोटे को समझा रहा था कि सूरज पूरब से निकलता है। छोटा बोला, “मेरे डैडी तो कहते हैं कि सूरज नहीं निकलता, पृथ्वी घूमती है। तो सूरज कैसे निकेलेगा?” बड़ा बोला, “मैं तो सालों से सूरज को पूरब से निकलता देख रहा हूँ।” छोटा बोला भई, मैं तो अपने डैडी की बात पर विश्वास करता हूँ।” सही कौन है? वह जो अनुभव पर विश्वास करता है या वह जो अपने बाप पर विश्वास करता है? हम अपने स्वर्गीय बाप की बात (उसके वचन) पर विश्वास करते हैं। दूसरे वे हैं जो संसार और अपने अनुभवों पर विश्वास करते हैं।
यह भी जान लो कि हमारा विश्वास किसी आश्चर्यकर्म का मोहताज नहीं। हमारा विश्वास तो परमेश्वर के जीवित वचन के सहारे ही जीवित है (यूहन्ना ४:४१,४२)।
 वचन की सचाई हमें प्रभावशाली बनाती है। पर शैतान कभी नहीं चाहता कि हम प्रभावशाली बनें। इसलिए वह पूरी कोशिश करता है कि प्रभु की मेज़, आराधना और प्रार्थना की प्रभावशाली सच्चाईयों को हम रस्मों में बदल दें। यह रस्में वचन की सच्चाई की जान निकाल देती हैं। फिर सिर्फ एक ख़ाली शरीर रह जाता है और सच्चाई उसे छोड़ चुकी होती है। हमारे लिये मेज़ में सम्मिलित होना, आराधना करना और प्रार्थना करना, सब मरे हुए काम बन जाते हैं। हम सोचने लगते हैं कि यह सब सही है - हम आराधना, प्रार्थना और उपवास, सब वचन के अनूसार ही तो करते हैं। फरीसी भी अपने बारे में यही सोचते थे। इसलिए उनकी प्रार्थनाएं, उपवास और दान सब मरे हुए काम थे।
आज बहुत से मसीही, मसीही तो कहलाते हैं पर मसीह उनके जीवन में नहीं है। बहुत से विश्वासी तो हैं पर उनमें विश्वास नहीं है। उनके बीच में प्रभु की मेज़ तो है पर प्रभु नहीं है। इसलिए कितने विश्वासी आत्मिक बेसुधी में आ गये हैं। वे अब जीवित तो कहलाते हैं पर हैं मरे हुए (प्रकाशितवाक्य ३:१)।
एक प्यारी सी बात

उम्मीद एक बड़ी अजीब सी चीज़ है। हार में भी जीत की राह देखती रहती है। अंधेरे में भी प्रकाश की आस लगाये रहती है। विश्वासी की निराशा में भी आशा जन्दा रहती है। क्योंकि उसकी आशा जीवित वचन पर होती है, जो कहता है, "मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा और ना कभी त्यागूँगा। (इब्रानियों १३:५)।”

यहोशू ने इतनी लड़ाईयाँ लड़ीं और जीतीं। प्रभु ने उसे कहीं नहीं बताया या सिखाया कि युद्ध का नियंत्रण कैसे करना है। लेकिन उसे ये ज़रूर बताया कि वचन को रात-दिन मनन कैसे करना है (यहोशू १:८)| प्रभु का वचन कहता है, “मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो;... ” (कुलुस्सियों ३:१६)।

जो आदमी पवित्र आत्मा से भरा होता है वह परमेश्वर के वचन से भरा होता है और वचन परमेश्वर है। परन्तु जो आदमी सँसार के ज्ञान और विचारों से भरा होता है उसे आप शीघ्र ही विनाश में देखोगे। सँसार ज्ञान से और अपनी योजनाओं से हर दिन भरता ही जा रहा है अब उसको हम उसके विनाश में ही देखेंगे।
आज ही, कल की बात

प्रभु भविश्यवाणी इस लिये नहीं करता कि हमारी आने वाली बातों को जानने की जिज्ञासा को संतुष्ट करे, पर इसलीए कि हम आने वाली घटनाओं के लिए तैयार हो जाएं। परमेश्वर ने हमारे भविष्य का इतिहास लिखकर अपने वचन में दिया है। इतिहास तो हमेशा बीते हुए समय का ही लिखा जाता है, पर भविष्य का तो मात्र अनुमान ही लगाया जाता है। परमेश्वर का वचन ही एक ऐसी इकलौती किताब है जिसमें उसने भविष्य का इतिहास लिखा है ताकि परमेश्वर का जन जीवित वचनों से सचेत किया जा सके।

बहस काफी गरमा चुकी थी। खिसियाए हुए लड़के ने बोला, “इतनी सारी किताबों में लिखा है कि दुनिया गोल है।” दूसरा लड़का कमर पर हाथ रखकर बोला, “अबे अकल से पैदल तुझे ये दुनिया गोल दिखाई देती है... कहां है गोल?... चपटी है ये तो।” तीसरा छोटा लड़का भी बीच में हाथ मटकाते हुए बोला, “अरे यार सुनो तो सही, क्यों लड़ते हो? दुनियां ना तो गोल है और ना ही चपटी... सीताराम जी बोलते हैं दुनियां तो ४२० है।” हम सँसार को सँसार के ज्ञान से, अपनी समझ से या फिर अनुभव से समझने की कोशिश करते हैं।

मेरी नाक के उपर एक चश्मा रखा है। अगर मैं उसे अलग कर दुँ तो सब धुंधला जाएगा। ऐसे ही वचन के सहारे ही हम सँसार को सही रूप में देख पाते हैं। वरना सारा आत्मिक दर्शन धुंधला जाएगा, और फिर हम वचन के साहारे नहीं, समझ के साहारे ही जीने लगेंगे।

साफ सी बात

जब हमें सत्य को कहने के मौके मिलते हैं तो हम उन मौकों को खो देते हैं और ऐसे खोये हुए मौके हमारा बहुत कुछ खो देते हैं। हम डरते हैं कि सत्य को कहने से कहीं बवाल ना खड़ा हो जाये। इसलिए कई बार कई विश्वासी बड़े ही सुरक्षित तरीके अपनाते हैं। सत्य को साफ कहने से झिझकते हैं और समझौतेवादी नीति अपना लेते हैं - “इतना तो चलता है... इतना तो करना ही पड़ता है... क्या करें... ।” हम सोचते हैं इस तरह दो नाव पर पैर रखकर कुछ पल तो पार हो ही जाएंगे। पर सच मानिये पल ही पार होंगे, कभी भी पूरे पार नहीं हो पाएंगे। यह एक दुख की बात है। सालों इतना दुख सहा और सही शिक्षा पायी। पर अन्त आते-आते ग़लत को ग़लत जानकर भी ग़लत से समझौता कर जाते हैं। पतरस को परमेश्वर की बात पर कम अपने ऊपर ज़्यादा विश्वास था। यदि वह प्रभु के वचन को गम्भीरता से लेता और उस पर सोचता तो तीन बार क्या एक भी बार इन्कार नहीं करता। जब बार-बार प्रार्थना के लिये प्रभु जगाने के लिये आया तब भी वह नहीं जागा। इसीलिए वह बुरी तरह से हारा। उसकी शर्मनाक हार का एक यही कारण था।

जाने के बाद, उसके आने की बात

जब प्रभु के आने में देर होने लगी और रात गहराने लगी, तब दसों कुँवारियों का जीवन उंघने लगा। पर प्रभु ने कुछ जगाने वालों को रखा है, जो कहते हैं “देखो दूल्हा आ रहा है...”(मत्ती २५:६)| “हे सोने वाले जाग, मुर्दों में से जी उठ...”(इफिसियों ५:१४)। वे इस तरह सोते हुए जीवनों को परमेश्वर के वचन के द्वारा जगा देते हैं, ताकि सब कुछ ठीक-ठाक करके हम दूल्हे के स्वागत के लिए तैयार हो जाएं।

सम्पर्क भी इसी बड़ी सच्चाई को अपनी छोटी सी सेवाकाई के द्वारा आपको सतर्क करने का एक प्रयास मात्र है।

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