सूचना: ई-मेल के द्वारा ब्लोग्स के लेख प्राप्त करने की सुविधा ब्लोगर द्वारा जुलाई महीने से समाप्त कर दी जाएगी. इसलिए यदि आप ने इस ब्लॉग के लेखों को स्वचालित रीति से ई-मेल द्वारा प्राप्त करने की सुविधा में अपना ई-मेल पता डाला हुआ है, तो आप इन लेखों अब सीधे इस वेब-साईट के द्वारा ही देखने और पढ़ने पाएँगे.

गुरुवार, 12 मार्च 2009

संपर्क अप्रैल-२००८ लेख: कहीं खो न जाएं

कहीं खो न जाएं
एक पागल ने मोहल्ले में काफी उत्पात मचा रखा था। इसीलिए उसे शहर के अधिकारियों ने पाँच साल के लिए पागलखाने भेज दिया। जब उसके पागलखाने से छूटने के लगभग पाँच महीने रह गए थे, अचानक एक दिन उसने अपने काम में व्यस्त एक सफाई कर्मचारी के पीछे से आकर फिनाएल के रखे हुए डिब्बे को पूरा पी लिया। इस घटना के बाद वह बहुत ही बुरी दशा से होकर निकला। बस यूँ कहिए कि वह मरते-मरते ही बचा। जैसे ही वह ठीक हुआ तो उसके साथ एक अजीब घटना घटी जिसके साथ उसका दिमाग़ भी ठीक हो गया।
तब वह पागल पगालखाने के अधिकारी के पास गया और कहने लगा कि “मैं अब ठीक हो गया हूँ। कृप्या मुझे इस पागलखाने से जाने की इजाज़त दे दीजिए।” अधिकारी मुस्कराते हुए कहने लगा, “अभी जाओ, फिर देखेंगे।” क्योंकि अकसर कई पागल उसके पास आते और ठीक होने का दावा करते थे। अतः इसके निवेदन को किसी ने कोई महत्व नहीं दिया। अब उसे पाँच महीने काटने बड़े मुश्किल हो गए। यूँ कहिये कि एक-एक दिन काटना भारी हो गया। रात-रात पागल चिल्लाते और ऊट-पटांग हरकतें करते। इस व्यक्ति ने साड़े चार साल से अधिक उनके साथ बिताए। अब जब केवल पाँच महीने ही काटने थे तो यह उसके लिए असंभव हो रहा था। सोचिए साड़े चार साल कैसे काट दिए परन्तू पाँच महीने क्यों नहीं काट पाया? सालों सँसार के साथ जीने के बाद जब किसी व्यक्ति का जीवन बदल जाता है और अपनी सही समझ में आ जाता है तब उसके लिए सँसार के लोगों के साथ जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए प्रभु ने आपको अपनी संगति में बुलाया है (१ कुरिन्थियों १:९)|
भजन ८४:३,४ में प्रभु यह नहीं कहता कि वह धन्य है पर यह कहता है कि क्या ही धन्य हैं वे जो प्रभु के भवन में रहते हैं। प्रभु का भवन ही स्वर्ग का द्वार है और यहीं से स्वर्गिय आशिषें आती हैं। अक्सर विश्वासी अपने बच्चों को प्रभु की आशिषों से वंचित रखते हैं, ऐसे कितने ही कारण हैं, जैसे - आज बहुत गर्मी है, कल सर्दी थी, परसों बरसात थी, आज स्कूल का होमवर्क बहुत है, और इस हफ्ते परीक्षाएं हैं। इस तरह से हम अपने बच्चों को प्रभु के घर से अर्थात आशिष के घर से अलग कर जाते हैं फिर सोचते हैं कि प्रभु हमारे बच्चों को आशिष दे। मैं सोचता हूँ कि ९० प्रतिशत विश्वासियों ने अपने बच्चों को इन्हीं कारणों से सँसार में ढकेल दिया है। शायद वे सँसार में बहुत धन कामा लें पर आत्मिक रूप से वे सँसार में सिर्फ गवांएंगे ही। उड़ाऊ पुत्र ने बाप के घर से अलग होकर खोया ही। पर जैसे ही बाप के घर से जुड़ा वह सब का सब लौटा लाया।

आज आप जो अपने बच्चों के जीवन में बोएंगे कल वही तो काटेंगे। सँसार में कहीं हमारे बच्चे खो न जाएं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें