“न तो कोई शब्द है और न कोई भाषा” (भजन १९:३)
फिर है क्या? बिन शब्दों का संदेश!!
“हे आलसी चीटियों के पास जा” ( नीतिवचन ६:६)
चीटियों के जीवन की कहनी में एक सिरे से प्रवेश करके पहाड़ सी सच्चाई को खोजेंगे... चीटियाँ शब्दों से तो प्रचार नहीं करतीं क्योंकि शब्द तो उनके पास हैं ही नहीं। पर एक जीवन है जो प्रचार करता है। हाँ उनके जीवन की जड़ें कुछ सच्चाईयों से जुड़ी हैं।
चीटियों के पास काम तो बड़ा है पर समस्याएं भी कुछ कम नहीं। शरीर और सामर्थ भी बहुत छोटी है। पर अपनी हिम्मत और एकमनता के बल पर यह छोटा सा जीव बड़े काम कर जाता है। वे इस तरह जुड़कर जीती हैं कि उनका जीवन एक उदाहरण बन जाता है। हार तो वे मानती ही नहीं। लक्ष्य पर नज़र रखती हैं और इस तरह मुसीबत को पार कर जाती हैं।
गार्मियों में ही सर्दियों की तैयारी कर लेती हैं। इस बात का उन्हें हमेशा ध्यान रहता है कि... “वे दिन आने वाले हैं कि जिसमें कोई काम नहीं कर पाएगा” (यूहन्ना ९:४)। इसी बात को सामने रखकर वे जीती हैं। मुश्किलों के दिनों में वे मुश्किलों से भागती नहीं पर उनका पूरा सामना करतीं हैं। मामूली काम को भी पूरे मन और यत्न से करती हैं। अच्छे से अच्छे परिणाम देने के लिए जी जान लगा देती हैं। वे अपनी ताकत को व्यर्थ में खर्च नहीं करतीं। वह मैदान छोड़कर भागने वाला जीव नहीं है। इसीलिए विजय हमेशा उनका स्वागत करती है और परमेश्वर का वचन उनकॊ आदर देता है।
यह जीव तो छोटा सा है और उसके पास जीवन भी बहुत छोटा है। जीवन का महत्व इस बात से नहीं है कि जीवन बड़ा है या छोटा। पर महत्व तो इस बात का होता है कि हमने कैसा जीवन जिया?
इस समुदाय का हर अंग अपना काम पूरा करता है। वे व्यक्तिगत स्वार्थ से नहीं जुड़ी रहतीं। अगर वे आपस में एकमनता से जुड़ी ना हों तो अलग-अलग होकर कुछ भी नहीं कर सकतीं। जो विश्वासी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ही जुड़ा रहता है और सिर्फ अपने ही बारे में सोचता है और अपने ही लिए जीता है, वह एक ओछा विश्वासी है। चाहे उसके पास सँसार कि हर खुशी भी हो तो भी वह कभी खुश नहीं रह पाएगा।
वे जन्दगी को इस तरह जीती हैं कि जीतना ही है। वे हर दिन जीत के लिए जीती हैं और हर हार को जीत में बदल देतीं हैं। इसलिए जन्दगी को ऐसे ही नहीं जीना है... जो जय पाए वो ही जीवन का मुकुट पाएगा।
चीटियाँ आपस में बेहतर सम्बंध बनाए रखतीं हैं। विनम्रता उनकी कमज़ोरी नहीं है। इसी विनम्रता ही से वे समूह में काम कर पाती हैं। विनम्रता, संगति और अनुशासन उनके विकास का मूल मंत्र है। अकाल के दिनों में भरपूरी के साथ विजय के जीवन को जी लेतीं हैं। सच तो यह है कि सृष्टि में इनकी कोई औकात नहीं फिर भी औकात वालों को सही समझ देने के लिए बहुत बड़ी सौगात हैं। ऐसी ही संगति की सौगात प्रभु ने हमें भी दी है।
क्या इस कहानी ने आपके अन्दर झांका है?... कोई विश्वासी इतना अंधा तो नहीं कि वह अपने अन्दर ना झांक सके और इतना कमज़ोर भी नहीं कि अपनी कमज़ोरी के लिए प्रभु से सामर्थ न मांग सके।
इस बात के बाद आप क्या करेंगे?... इस छोटे जीव ने कुछ बड़े सवाल आपके जीवन पर ला खड़े किये हैं। अब इन बातों पर आप सोचेंगे या उन्हें ऐसे ही छोड़ देंगे?... यह बात हम आप पर ही छोड़ देते हैं।
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