बहुत भटकने के बाद
(यह लेख, आई० आई० टी० - रूड़की में सीनियर रिसर्च स्कालर, एम० जी० पुथूरन, की गवाही, अर्थात उनके व्यक्तिगत अनुभव की अभिव्यक्ति, है।)
“...क्योंकि तुमने मुझे देखा, इसलिए विश्वास किया। परन्तु धन्य हैं वे जिन्होंने बिन देखे विश्वास किया।” - यहून्ना २०:२९
मैं बहुत भटकने के बाद प्रभु के पास आया, जिससे मैं शर्मिन्दा हूँ। क्योंकि मेरा कठोर हृदय प्रभु पर विश्वास नहीं करता था। ऊपर लिखा हुआ वचन केवल प्रेरित थोमा के लिये ही नहीं था जिसने विश्वास करने के लिये ठोस सबूत मांगा बल्कि यह बात मेरे लिये भी सच है।
मेरा नाम एम० जी० पूथरन है और मेरा जन्म केरला के एक पुराने रीति-रिवाज़ों को मानने वाले इसाई परिवार में हुआ। हमारे वंशजॊं ने २००० हज़ार साल पहले ही, उसी प्रेरित थोमा के द्वारा प्रभु यीशु मसीह को ग्रहण कर लिया था। जब थोमा, जो प्रभु यीशु मसीह का विशेष शिष्य था, भारत आया, तब मेरे पूर्वजों ने प्रेरित थोमा के द्वारा प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार को सुना।
बहुत छोटी उम्र से ही मैं एक अलगाव का जीवन जीता था। क्योंकि मेरी माँ मुझे सिखाती थी कि ‘बुरी संगति में नहीं पड़ना’ तथा ‘बुरे लोगों के से काम नहीं करना’। मेरे माता-पिता मुझसे और मेरी बहन से बहुत ही प्यार करते थे और हमारी बहुत चिंता करते थे। इसलिए मेरे लिए भी यह मुश्किल था कि मैं उनकी बात ना मानूँ। मैं इस बात का भी यत्न करता था कि मेरे किसी बुरे काम के द्वारा उनका अनादर ना हो। मुझे यह भी डर रहता था कि अगर मेरे माता-पिता को मेरे बुरे कामों के बारे में पता चल गया तो मैं उनका सामना कैसे करूँगा? मैं जानता था कि वे मुझे बुरी तरह दण्ड तो नहीं देंगे, परन्तु मेरा संबन्ध उनसे टूट जाएगा।
मेरे माता-पिता बहुत धार्मिक तो नहीं थे, परन्तु वे कोई भी भला काम करने से पहले और मुशकिलों में भी प्रार्थना करते थे। मैं यह भी विश्वास करता था कि कोई अदृश्य शक्ति है जिसका नाम परमेश्वर है, जो सब कुछ देखता है और जो सब कुछ करने की सामर्थ रखता है।
मैं अपने माँ-बाप, अध्यापकों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और दोस्तों की राय में एक अच्छा लड़का था। मेरे दोस्त मुझ पर भरोसा करते थे कि मैं हमेशा सच बोलता हूँ, और यदि किसी बात के बारे में सच जानना होता था तो वे केवल मुझसे ही पूछते थे। मैं अपनी दृष्टि में भला था और अपने दोस्तॊं से अपने आपको बेह्तर समझता था। मैं काफी ढीट था और यदि मैं कोई निर्णय लेता तो यह चाह्ता था कि मेरे माता-पिता भी उससे सहमत हों।
जैसे-जैसे समय बीतता गया मुझे विज्ञान में बहुत रुचि होने लगी। मैं समझता था कि परमेश्वर ने मुझे इस क्षेत्र में ज्ञान दिया है और यह उसका वरदान है मेरा नहीं। मैं सोचता था कि विज्ञान सारी मानव जाति को और हमारे देश को उनके सारे दुखों से छुड़ाकर समृद्धि और खुशी दे सकता है। मैं इस विशाल सृष्टि के भेदों और मानवीय दिमाग़ के भेदों को जानने के लिए भी रुचि रखता था। मैं ने तो यहां तक सोचा था कि मैं विज्ञान के द्वारा परमेश्वर को भी खोज लूँगा। इस तरह मेरा उद्देश्य था कि मैं सत्य को खोजूँ और आईन्स्टीन की तरह एक बड़ा वैज्ञानिक बनूँ।
१२वीं कक्षा के बाद मेरा दख़िला इंजिनियरिंग में हो गया और वहां छात्रों के लिये ये रिवाज़ होता था कि वे गन्दे शब्दों का इस्तेमाल करें, गन्दे काम करें, सिगरेट और शराब पीयें। सीनियर छात्र जूनियर छात्रों को निर्देश देते थे कि एक अच्छा इंजीनियर बनने के लिए ये सब करना बहुत ज़रूरी होता है। जबकि मैं इन चीज़ों से अलग रहता और अपने दोस्तों की दृष्टि में और अपनी दृष्टि में भला दिखता था। फिर भी चार सालों में मेरा मन बुरा हो चुका था। मैंने पाया कि मेरे हृदय के विचार बुरे और स्वार्थी हैं। मैं ने अपने अंदर यहाँ तक पाया कि भला बनने की जो मेरे अंदर अभिलाषा है वह भी अन्ततः मेरे अपने लिए ही है।
फिर मुझे एह्सास हुआ कि कोई ज़्यादा फर्क नहीं मुझ जैसे एक ‘भले आदमी’ में और एक ‘बुरे आदमी’ में। अगर मैं इस को इस तरह कहूँ, तो यह एक सड़े हुए अन्डे की तरह है जो अन्दर से पूरी तरह गंदगी से भरा हुआ है परन्तु बाहर से बिल्कुल साफ और सफ़ेद है। परन्तु जहां तक एक ‘बुरे व्यक्ती’ का सवाल है वह उस सड़े हुए अन्डे की तरह है जिसका छिल्का टूटा हुआ है और जिसकी बदबू बाहर आकर दूसरों को परेशान करती है। लेकिन दूसरी तरफ़ जहां तक एक ‘अच्छे व्यक्ती’ का सवाल है, वह भी उसी सड़े हुए अन्डे की तरह ही है, बस उसमें फर्क इतना है कि उसके उपर का छिल्का अभी तक टूटा नहीं है पर उसकी सड़ाह्ट और बदबू उसके अन्दर लगातार बनी हुई है। यहाँ दोनों ही व्यक्तियों की मूलभूत स्थिती एक जैसी ही है और आखिर में दोनों ही कूड़ेदान में पाए जाएंगे।
जब मैं आठवीं कक्षा में था तो उस दौरान मैंने कई बार बाईबिल के नए नियम को भी पढ़ा था। परन्तु उसमें मुझे बहुत कुछ समझ में नहीं आता था। मेरे अन्दर बहुत से सवाल और उलझने थीं कि क्या परमेश्वर वास्तव में व्यक्ति है या फिर वह कोई हमारी दिमाग़ी कल्पना है? परमेश्वर ने मनुष्य को इस तरह से क्यों बनाया? परन्तु उस नए नियम को पढ़ने के बाद मुझे एक बात का एह्सास हो गया था कि इस सांसारिक दुनिया से परे भी कोई है जिसको मैं अभी देख नहीं पा रहा हूँ। और जो कुछ मुझे सँसार में दिखाई देता है वह वास्तव में वह ही सब कुछ नहीं है। इस तरह विज्ञान की महिमा मेरी आँखों में घटती चली गयी। जिसके परिणाम स्वरूप मैं आत्मिक बातों तथा दार्शनिकता में बहुत रुची लेने लगा जिसमें उद्धार के मार्गों और मरने के बाद क्या होगा बताया गया था।
जब मैं एक इंजीनियर के रूप में काम कर रहा था, तो मेरा एक सहयोगी मेरे कमरे में आता था और वह मेरे साथ परमेश्वर के वचन की बातें बांटता था। यह मेरे लिए लाभदायक था और मैं उसके ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ। परन्तु मुझे एह्सास हुआ कि वह जो कुछ बोलता था वह सब सच नहीं था। तो मैंने शुरु से आख़िर तक बड़े ध्यान से बाईबिल अध्ययन करने का निर्णय किया। मैं बहुत सी बातों से कायल हुआ, परन्तु विशेषकर दो बातें मेरे मन में बैठ गयीं - (१) क्योंकि पुराने नियम में परमेश्वर के लोग कोई भी निर्णय लेने से पहले परमेश्वर से पूछ्ते थे, तो मुझे भी कोई भी काम करने से पहले परमेश्वर की इच्छा को जानना चाहिए। (२) मैं अपने भले कामों के द्वारा से जो मैंने इस जीवन में किए हैं परमेश्वर के सामने खड़ा नहीं हो सकता।
तब मुझे एह्सास हुआ कि मुझे एक निर्णय लेना है और मैं अपनी बहुत सारी योजनाओं के सहारे बहुत देर तक नहीं चल पाउँगा। जब मैंने इन बातों को प्रभु के सामने मान लिया तो मैंने यीशु मसीह को पूरे मानव इतहास में बिल्कुल अलग पाया। जो मेरे लिए मरा और जिस पर मैं भरोसा रख सकता हूँ और पूरे हियाव के साथ जिसको मैं अपने आप को सौंप सकता हूँ। परन्तु एक पद मुझे प्रभु के पास आने से रोकता था, “जो कोई अपना क्रूस उठाकर मेरे पीछे न हो ले, वह मेरा चेला नहीं।” इसी के साथ प्रभु यीशु ने नए नियम में एक व्यक्ति का उदाहरण दिया जिसने एक गुम्मट बनाना शुरू किया था और जिसको वह ख़त्म नहीं कर सका। क्योंकि मैं प्रभु यीशु पर विश्वास करता था और उसके महान प्रेम से आकर्षित था इसलिए सन् २००२ में, एक दिन घुटनॊं पर आकर मैंने अपने जीवन को प्रभु के हाथों में सौंप दिया। मैं जैसा भी अयोग्य था वैसा ही प्रभु के पास आ गया। अब मेरी सारी उलझने चली गयीं और मुझे एक बड़ी सन्तुष्टि मिली कि मेरी सत्य की खोज पूरी हुई और मेरे जीवन का अर्थ जो स्वयं प्रभु यीशु है, मैं ने पा लिया है। अब प्रभु यीशु ही मेरे लिये हर एक बात का उत्तर है। इसके बाद मैं प्रभु की इच्छा में निर्णय लेने की कोशिश करने लगा और प्रभु मेरी अगुवाई करता और अपने वचनों से मुझे सांत्वना देता और मुश्किल समयों में उसकी उपस्थिती मेरे साथ-साथ रहती थी। अब मैं जान गया कि प्रभु यीशु ही एक सच्चा परमेश्वर है।
प्रभु के अनुग्रह से मुझे केन्द्रिय सरकार अनुसंधान संस्थान (सी०-डाक०) में अस्थाई रूप से एक रिसर्च का काम मिल गया। जब मैं वहाँ पर काम कर रहा था, तो मेरे एक साथी ने मुझे मजबूर किया कि मैं एम० टैक० (गेट) की परिक्षा दूँ - क्योंकि मेरी नौकरी पककी नहीं थी और मैं ऊँची पढ़ाई के बारे में भी सोचता था। उस समय मैं सरकारी काम से एक दौरे पर था तो इसलिए मैं उस परिक्षा के लिए बहुत तैयारी नहीं कर सका। परिक्षा से पहली रात मैं बहुत ही दुखी हृदय से अपने भविष्य और परिक्षा के बारे में सोच रहा था। इसलिए मैं हिम्मत पाने के लिए प्रभु के पास आया और परिक्षा के परिणाम को प्रभु के हाथ में सौंप दिया कि चाहे अच्छा हो या बुरा जो भी हो, मैं उसे स्वीकार कर लूँगा। तब एक अजीब सी शान्ति मेरे हृदय में भर गयी और मैं परिक्षा की अपनी तैयारी बन्द करके बिना किसी भविष्य की चिन्ता किए शान्ति से सो गया।
अगले दिन सुबह मैंने बड़ी शान्ति से उस पेपर को लिखा। लेकिन फिर भी सोचा कि मुझे अच्छे अंक तो मिलंगे नहीं, क्योंकि मैंने इसके लिए बहुत ही कम तैयारी की थी और यह परिक्षा भी मैंने बी० टैक० करने के ४ साल बाद लिखी थी। परन्तु जब परिणाम आया, जो मैं इन्टरनैट पर देख रहा था, तो मैं अचम्भित रह गया और दस मिनिट तक अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका। पुरे भारत में मेरी रैंक ३६ थी। प्रभु ने उस रात के रोने को सुन लिया था। उसके बाद मुझे आई० आई० टी० रूड़की से बुलावा आया। मैं कभी भी उत्तर भारत में नहीं जाना चाह्ता था परन्तु प्रभु ने मुझे अपने वचन के कुछ पदों के द्वारा अगुवाई की।
इसके बाद मैं रूड़की आ गया। अन्जान जगह थी, ना कोई दोस्त था न कोई रिश्तेदार। लेकिन क्योंकि मैं प्रभु की आवाज़ सुनकर आया था तो प्रभु ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा और अपने लोगों की संगति भी दी। उनके उस दृढ़ निर्णय के द्वारा, जो उन्होंने प्रभु यीशु के लिये लिया था, मैं बहुत ही प्रोत्साहित हुआ, और उनके द्वारा परमेश्वर के वचन में से दिये हुए संदेशों से मैं आशीशित भी हुआ और प्रभु में म़ज़बूत भी हुआ। उनकी मेरे लिये चिन्ता और प्रेम ने मुझे उनके बीच में अपने घर का सा एह्सास दिया है।
प्रभु ने मेरे जीवन में कई अद्भुत काम किए हैं जिनको मैं कई बार भूल गया, लेकिन मैं प्रभु यीशु का धन्यवाद देता हुँ कि इन सारे पिछ्ले सालॊं में वह फिर भी मेरा प्रभु रहा है। मेरी यह इच्छा है कि जब कभी मेरी प्रार्थनाऒं का उत्तर न भी मिले तब भी मैं मुश्किलों में प्रभु पर भरोसा करता रहूँ। मैं आपको उभारता हूँ कि आप उसके करीब आएं और उसके महान प्रेम पर भरोसा करें और उसकी इच्छा के आधीन आ जाएं। इस प्रकार वह आपका व्यकतिगत उधारकर्ता बन जाएगा और आपको पापॊं की क्षमा प्राप्त होगी तथा आप उसके साथ अनन्त जीवन बिताएंगे। चाहे आप किसी भी देश, धर्म, वर्ग और किसी भी संस्कृति के हों, परमेश्वर की दृष्टि में एक समान हैं और परमेश्वर किसी का पक्षपात नहीं करता। प्रभु आपको अपने प्रेम के असीम खज़ाने से आशीश दे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें