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मंगलवार, 10 नवंबर 2009

सम्पर्क दिसम्बर २०००: परमेश्वर के वचन से सम्पर्क

जब यह साल बिल्कुल आखिरी सिरे पर खड़ा है, तो आईये यूहन्ना की पुस्तक के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह को देखें। “यूहन्ना” शब्द का अर्थ है यहोवा अनुग्रहकारी है। १९२९ की बात है, भाई वॉचमैन-नी से किसी ने बड़ा पैना सा सवाल किया, जो सीधे उसके सीने में उतर गया। सवाल था - “क्या तुम वैसे ही प्रभु के लिये जीते हो, जैसे शुरु मेंप्रभु के लिये जीते थे?” भाई वॉचमैन-नी टूट गया। भाई ने दिल की ईमानदारी से मान लिया कि जैसे शुरु में प्रभु के लिये जीने की उसकी इच्छा थी, अब उसमें वह वैसी इच्छा नहीं रही। उसने स्वीकारा कि उसका बहुत कुछ चला गया, पर सबसे बड़ी बात यह कि प्रभु के लिये जीने की इच्छा ही चली गई। लेकिन फिर भी उस अनुग्रहकारी परमेश्वर यहोवा ने वॉचमैन-नी को क्या से क्या बना डाला।

“मैंने परमेश्वर क ऐसा दिल दुखाया कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दियाताकि मैं नाश न होऊँ परन्तु अनन्त जीवन पाऊँ।” यूहन्ना की इस पुस्तक का यही उद्देश्य है - आप विशवास करके नाश न हों परन्तु अनन्त जीवन पाएं। अपने इस सुसमाचार में यूहन्ना ५० से ज़्यादा बार ‘जीवन’ शब्द का प्रयोग करता है, जैसे- ‘जीवन पाओ और बहुतायत का जीवन पाओ’, ‘जीवन का जल’, ‘जीवन की रोटी’, ‘जीवन की ज्योती’, ‘विश्वास करो और जीवन पाओ’आदि।
किसी ने कहा है कि जब हम विश्वास से परमेश्वर की तरफ देखते हैं तो हम आशा से आगे देखने लगते हैं और दूसरों की तरफ ओर से देखने लगते हैं। लेकिन जब हम परमेश्वर की तरफ शक से देखते हैं तो हम आगे निराशा से देखना शुरु करते हैं और दूसरों की तरफ नफरत से देखना शुरु कर देते हैं। यूहन्ना कहना चाहता है कि जब हम विश्वास से जीने लगते हैं तब ही हमारा जीवन जीने के लायक होता है। यूहन्ना के इस सुसमाचार का ५० प्रतिशत भाग प्रभु यीशु के जीवन की घटनाओं के बारे में बताता है और शेष ५० प्रतिशत प्रभु यीशु के उपदेशों के बारे में। जैसे हमने देखा था यूहन्ना के नाम का अर्थ है ‘यहोवा अनुग्रहकारी है’ और इस अनुग्रह को हम बड़ी सफाई से युहन्ना के जीवन में देखते हैं। यूहन्ना जब्‌दी नाम के एक सम्पन्न मछुआरे के घर में जन्मा था, उसकी माँ का नाम सलोमी था और उसका भाई याकुब प्रभु यीशु का सबसे पहिला चेला था जो प्रभु के लिये बलि हुआ (प्रेरितों १२:१२)। यूहन्ना शायद सबसे बड़ी उम्र में प्रभु के पास गया। याकूब और यूहन्ना दिल की ईमान्दारी से प्रभु से प्यार करते थे, लेकिन फिर भी मनुष्य थे। परमेश्वर का सत्य वचन बाईबल परमेश्वर के किसी भी प्रियजन का भी दोष दिखाने में कतई संकोच नहीं करती, क्योंकि वह सत्य है और सत्य सब कुछ साफ-साफ प्रकट कर देता है। इनकी सम्पन्न्ता के कारण इनमें एक स्वभाविक घमंड था। इन्हें दूसरों को अपने बराबर देखना पसंद नहीं था, वरन इनमें बड़ा बनने की प्रब्ल इच्छा थी। मत्ती २०:२०-२८ में हम एक घटना पाते हैं जहाँ यूहन्ना और याकूब ने अपनी माँ सलोमी को प्रभु के पास सिफारिश करने भेजा। प्रभु ने उससे पूछा कि वह क्या चाहती है? वह बोली के मेरे यह दोनो पुत्र तेरे राज्य में एक तेरी दाहिने और दूसरा बाएं बैठें। प्रभु अपने चेलों से कह चुका था कि तुम बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्त्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे। सिंहासन तो मिल ही चुके थे, अब बात थी कि प्रभु के दाएं और बाएं किसे बैठने को मिलेगा। इससे पहिले कि कोई और यह स्थान हथिया ले और हम पीछे रह जाएं, प्रभु के साथ यह बात अभी से तय कर ली जाए। फिर, प्रभु यह भी कह चुका था कि अगर दो जन एक मन होकर कुछ माँग लें तो वह उनके लिए हो जाएगा (मत्ती १८:१९)। इन दोनो ने माँ के सहारे माँग तो लिया, लेकिन प्रभु उनके मन के स्वार्थ और उनकी महत्त्वाकाँक्षा को जनता था इसलिए उसने कहा कि तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो, यह स्थान पहिले ही से परमेश्वर पिता ने निर्धारित कर दिये हैं।

इसी अनुग्रहकारी प्रभु ने अपने अनुग्रह से नये नियम की पाँच पुस्तकें, जो नये नियम का २० प्रतिशत भाग हैं, यूहन्ना के द्वारा लिखवाईं। इसी के द्वारा नये नियम की सबसे छोटी पुस्तक - यूहन्ना की दूसरी पत्री, और बाईबल का सबसे छोटा पद - यूहन्ना ११:२८ लिखा गया, और इसी के द्वारा बाईबल का सबसे अधिक उद्वत किया गया पद - यूहन्ना ३:१६ भी लिखा गया। यूहन्ना ही एक अकेला चेला था जो प्रभु के क्रुस के पास, प्रभु के साथ उन अन्तिम क्षणों में खड़ा था, और जिसे प्रभु ने अपनी माता की ज़िम्मेवारी सौंपी (यूहन्ना १९:२६,२७)। यूहन्ना रचित सुसमाचार में प्रभु यीशु के जीवन का चित्रण अन्य तीनों सुसमाचारों से भिन्न रूप में है। प्रभु यीशु मनुष्य भी था और ईशवर भी परन्तु इसका यह मतलब नहीं कि वह आधा मनुष्य और आधा परमेश्वर था। वह सम्पूर्ण परमेश्वर और सम्पूर्ण मनुष्य था। यूहन्ना इस मनुष्य प्रभु यीशु के ईश्वरीय स्वरूप को प्रस्तुत करता है। वह प्रभु यीशु की बुनियादी सच्चाईयों को एक विशवास योग्य रूप में गम्भीर पाठक के समने लेकर आता है। प्रभु ने ऐसे व्यक्तियों को भी, जो क्या थे, उन्हें क्या बना डाला। वास्तव में परमेश्वर अनुग्रहकारी है।

सृष्टी कितनी विशाल और समझ कि सीमाओं से कितनी परे है, फिर इस सृष्टीकर्ता परमेश्वर का तो क्य कहना! एक ऐसे असीम परमेश्वेर ने पृथ्वी और मनुष्यत्व की सीमाओं में आकर एक मनुष्य देह धारण की। मेरा प्यारा प्रभु क्या था और वह मेरे लिये क्या बन गया। दूसरी तरफ मैं क्या था और उसने अपने अनुग्रह से मुझे क्या बना दिया।

परमेश्वर के इस अनुग्रह को, परमेश्वर के अनुग्रह से आगे आने वाले दिनों में, ‘सम्पर्क’ के अगले अंकों में देखेंगे।

क्रमशः

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