पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? –
भाग 2
समझना (2)
यदि व्यक्ति पवित्र आत्मा के निर्देशानुसार चलता नहीं है
(गलातियों 5:16, 25), उसकी आज्ञाकारिता के द्वारा उसकी सामर्थ्य को प्रयोग नहीं करता है,
तो पवित्र आत्मा उसके जीवन में अप्रभावी तथा निष्क्रिय रहता है
(इफिसियों 4:30; 1 थिस्सलुनीकियों 5:19)। इसे इस उदाहरण द्वारा समझिए - आपके घर में बिजली का कनेक्शन
और तार लगे हैं और उन तारों में बिजली प्रवाहित होती रहती है; किन्तु जब तक आप कोई कार्यशील, एवं बिजली से चलने वाला उपयुक्त उपकरण उसके
साथ जोड़कर बिजली को अपना कार्य नहीं करने देते हैं, तब तक उस
बिजली की आपके घर में उपस्थिति निष्क्रिय एवं प्रभाव रहित है। आप जैसा और जितना
शक्तिवान उपकरण जोड़ेंगे और बिजली को उस में से प्रवाहित होकर कार्यकारी होने देंगे,
उतना ही आप उस विद्यमान बिजली की सामर्थ्य को प्रत्यक्ष देखेंगे, और
उसका सदुपयोग करेंगे। उपकरण चाहे छोटा और कम शक्ति का हो, अथवा
बड़ा और अधिक शक्ति का, उसमें प्रवाहित होने वाली बिजली एक ही
और समान गुणवत्ता की होगी। उस बिजली की सामर्थ्य का प्रदर्शन तथा उपयोग उस उपकरण द्वारा
बिजली का प्रयोग करने की क्षमता पर निर्भर होगा।
इसी प्रकार से आप जितना अधिक परमेश्वर के प्रति
आज्ञाकारी और समर्पित रहेंगे, जितना उसके वचन के अनुसार चलेंगे, जितना परमेश्वर को
और उसके वचन को अपने जीवन में उच्च स्थान और आदर देंगे, उतना
अधिक पवित्र आत्मा की सामर्थ्य आप में होकर कार्य करेगी, प्रकट
होगी। यदि आपका आत्मिक जीवन कमज़ोर रहेगा, तो आपको अपने जीवन
में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य भी उतनी ही कम अनुभव होगी तथा दिखाई देगी। यदि आप
मात्र औपचारिकता पूरी करने के लिए बाइबल का एक छोटा खंड पढ़ना, और कुछ औपचारिक
प्रार्थना दोहराना भर ही कर सकते हैं – और बहुतेरे तो यह भी नहीं करते हैं, तो फिर
आप कैसे आशा रख सकते हैं कि आप के जीवन में पवित्र आत्मा की जीवंत तथा सामर्थी
उपस्थिति दिखाई देगी?
बच्चों को नियमित स्कूल में जाना होता है, बैठ कर, और
ध्यान देकर पढ़ना होता है, ठीक से अपना गृह कार्य करना होता है, परीक्षाओं में
उत्तीर्ण होना पड़ता है, तभी वे ज्ञान और समझ में बढ़ने पाते हैं, और जीवन में कुछ
कर पाने के योग्य होने पाते हैं। यह उनके प्रतिदिन कुछ मिनिट तक स्कूल के विभिन्न
गलियारों में हो कर भाग आने तथा शेष दिन को अन्य बातों में व्यतीत करने के द्वारा
नहीं होता है। इसी प्रकार से आत्मिक पाठशाला में भी उचित समय के लिए बैठना, वहां
पर्याप्त समय बिताना, तथा ध्यान दे कर पवित्र आत्मा से सीखना, और जीवन के अनुभवों
की परीक्षाओं से हो कर निकलना होता है। तब ही प्रभु का जीवन और सामर्थ्य व्यक्ति
के जीवन में दिखाई देती है।
प्रत्येक वास्तविक नया जन्म पाया हुआ मसीही विश्वासी
पवित्र आत्मा का मंदिर है और पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में सदा विद्यमान है,
बसा हुआ है (2 तीमुथियुस 1:14)। मसीही विश्वासी जब अपने आत्मिक स्तर एवं परिपक्वता के अनुसार,
पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और आज्ञाकारिता में होकर परमेश्वर की
महिमा एवं कार्य के लिए कुछ ऐसा करने पाता है, जो उसके लिए
अपने आप से, या किसी मानवीय सामर्थ्य अथवा ज्ञान या योग्यता से
कर पाना संभव नहीं था, तो वह पवित्र आत्मा से भरकर कार्य
करना होता है, जैसा कि हम ऊपर पतरस, यूहन्ना और पौलुस के उदाहरणों से देख चुके हैं।
क्योंकि सामान्यतः सभी मसीही विश्वासी परमेश्वर और उसके
वचन के प्रति अपने विश्वास, समर्पण,
और आज्ञाकारिता में न तो एक सामान स्तर के होते हैं, और न ही सभी उस
स्तर के होते हैं जितने कुछ विशिष्ट लोग अपनी मसीही आज्ञाकारिता और परिपक्वता के
कारण होते हैं, इसलिए ऐसा लगता है कि पवित्र आत्मा से भरकर
कार्य करना, अर्थात पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से कुछ अद्भुत या विलक्षण काम करना,
केवल कुछ विशिष्ट लोगों के लिए ही संभव है। किन्तु यह भ्रांति है; और इस भ्रान्ति का दुरुपयोग ‘पवित्र आत्मा से भरने’ की आवश्यकता की गलत
शिक्षा को सिखाने और प्रचार करने के लिए किया जाता है। आत्मिकता और आज्ञाकारिता
में बढ़िए, और आप भी पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से भरकर कार्य
करने वाले हो जाएंगे।
बड़ा ही सामान्य और स्वाभाविक सा उदाहरण है, आप किसी भी दुर्बल और रोगी मनुष्य से वैसा
और उतना ही शारीरिक परिश्रम करने की आशा नहीं रखेंगे जो एक स्वस्थ और बलवंत मनुष्य
सहजता से कर सकता है।
जब तक संसार और सांसारिकता के साथ समझौते का रोग हम
मसीही विश्वासियों को आत्मिक रीति से दुर्बल और आत्मिक रीति से अस्वस्थ बनाए रखेगा;
जब तक कि हम संसार के लोगों की आज्ञाएँ मानने और उन लोगों के लिए काम करते रहने को
प्राथमिकता देने के लिए, परमेश्वर और उस के वचन की आज्ञाकारिता को अपने जीवनों में
उन से विचले दर्जे का स्थान देते रहेंगे, तथा उसे एक सर्वोपरि अनिवार्यता के स्थान
पर सुविधा के अनुसार किया गया कार्य बना कर, अपनी आत्माओं को दुर्बल बनाए रखेंगे, हम
भी वह सब कदापि नहीं करने पाएंगे जो एक आत्मिक जीवन में स्वस्थ और सबल व्यक्ति के
लिए कर पाना संभव है। और हम भी इस प्रकार की गलत शिक्षाओं को गढ़ने और प्रचार करने
वालों के भ्रम द्वारा ठगे जाते रहेंगे, इधर-उधर उछाले जाते रहेंगे (इफिसियों 4:14)।
परमेश्वर ने हमें अपनी पवित्र आत्मा के द्वारा आवश्यक
सामर्थ्य तथा अपने वचन के द्वारा उपयुक्त मार्गदर्शन दे रखा है; अब यह हम पर है कि
हम उसका सदुपयोग करें और प्रभु के योग्य गवाह बनें।
- क्रमशः
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आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? भाग 3 – निहितार्थ
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