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रविवार, 10 मई 2020

पवित्र आत्मा को पाना – भाग 4 – भरना या परिपूर्ण होना – भाग 3 – निहितार्थ




पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 3

निहितार्थ

इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है, जैसे कि उपरोक्त ‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ के गलत शिक्षा के साथ है, मसीह की देह, उसकी कलीसिया को दो भागों में विभाजित करना – वे जन के पास यह भरपूरी या परिपूर्णता ‘है’, और वे जिन के पास यह ‘नहीं है।’ और फिर इस से, जिनके पास ‘है’ उन में ‘उच्च श्रेणी का होने,’ ‘बेहतर क्षमता और कार्य-कुशलता वाले होने,’ और ‘परमेश्वर से आशीष और प्रतिफल पाने पर अधिक दावा रखने’ की भावनाओं के द्वारा; तथा जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें इस ‘विशिष्ट विश्वासियों’ के समूह में सम्मिलित होने और उस समूह के लाभ अर्जित कर पाने के निष्फल व्यर्थ प्रयासों को करते रहने के चक्करों में फंसा देते हैं। दोनों ही स्थितियों में, अंततः परिणाम एक ही है – वास्तविक मसीही परिपक्वता और प्रभु के लिए प्रभावी होने में गिरावट (1 कुरिन्थियों 3:1-3) – जिनके पास ‘है’ उन में इस के कारण उठने वाले घमंड, वर्चस्व, तथा अधिकार रखने की भावनाओं के कारण; और जिनके पास ‘नहीं है’ उन्हें एक पूर्णतः अनावश्यक और अनुचित कार्य में समय गंवाने और व्यर्थ प्रयास करने में लगा देने के द्वारा, जिससे वे मसीही विश्वास, परमेश्वर के वचन, और प्रभु के लिए प्रभावी होने में बढ़ न सकें।

इस के अतिरिक्त, इस एक छोटी सी और अ-हानिकारक प्रतीत होने वाली बात से संबंधित गलत शिक्षा में शैतान ने एक बार फिर से परमेश्वर के विरुद्ध बहुत बड़ा षड्यंत्र लपेट कर ‘भक्ति की आदरणीय बात’ के रूप छिपा कर हम में घुसा दिया है। और हमारा इसलिए इस बात के प्रति सचेत होना, उस की सही समझ रखना, इस गलत शिक्षा से निकलना, और बच के रहना कितना अनिवार्य है (2 कुरिन्थियों 2:11)। पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने के पश्चात, उस की प्रभावी उपस्थिति एवं सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए बाद में किसी अन्य प्रक्रिया के द्वारा एक भिन्न पवित्र आत्मा से भर जाने अथवा ‘परिपूर्ण’ होने के अनुभव का संभव होने की बात कहने से तो यही अर्थ निकलता है कि पवित्र आत्मा को बांटा जा सकता है, उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है, उसे किस्तों या टुकड़ों में लिया या दिया जा सकता है, आदि।

ये सभी बातें न केवल वचन के विरुद्ध हैं, वरन पवित्र आत्मा के त्रिएक परमेश्वर का स्वरूप होने का इनकार करने का प्रयास करती हैं। यह गलत शिक्षा पवित्र आत्मा को पवित्र त्रिएक परमेश्वर के एक व्यक्ति के स्थान पर, एक  वस्तु बना देती है जिसे काटा, छांटा, और बांटा जा सकता है और फिर मनुष्यों के प्रयासों द्वारा दिया या लिया जा सकता है। और सब से अनुचित यह कि यह शिक्षा, परमेश्वर पवित्र आत्मा को मनुष्य के हाथों का खिलौना बना देती हैं, कि मनुष्य अपने व्यवहार और आचरण, अर्थात अपने कर्मों के द्वारा निर्धारित और नियंत्रित कर सकता है कि पवित्र आत्मा कब, किसे, कैसे, और कितना दिया जाएगा, और फिर वह उस मनुष्य में क्या और कैसे कार्य करेगा!

अर्थात पवित्र आत्मा तो फिर परमेश्वर नहीं रहा वरन मनुष्य के हाथों की कठपुतली हो गया। और क्योंकि त्रिएक परमेश्वर के तीनों स्वरूप – परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा समान और एक ही हैं, इसलिए या तो फिर शेष दोनों स्वरूप भी उस कठपुतली के समान हो गए, अन्यथा पवित्र त्रिएक परमेश्वर में विभाजन है, पवित्र आत्मा शेष दोनों से भिन्न और पृथक है, शेष दोनों से कुछ कम है, जिसका अर्थ है कि पवित्र त्रिएक परमेश्वर का सिद्धांत झूठा है, और परमेश्वर का वचन जो यह सिद्धांत सिखाता है, वह भी झूठा है।

इस गलत शिक्षा को स्वीकार करने का अर्थ है कि परमेश्वर मनुष्य की मुठ्ठी में आ गया; और अब मनुष्य उसे अपनी इच्छानुसार नियंत्रित और उपयोग करेगा! परमेश्वर इस घोर विधर्म के विचार से भी हमारी रक्षा करे, हमें इस के घातक फरेब में कभी भी न पड़ने दे। ये सभी गलत शिक्षाएं परमेश्वर और उसके पवित्र वचन को झुठलाने और उसे हमारे जीवनों में अप्रभावी करने के लिए बड़ी चतुराई तथा परोक्ष रीति से किए गए शैतान के हमले हैं; हमारे लिए इन शैतानी षड्यंत्रों को ध्यान दे कर समझना और उन से दूर रहना, और शैतान के इन छलावों में फँसने से बच कर रहना बहुत अनिवार्य है।

 - क्रमशः

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