पवित्र आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? – भाग 2
समझना (1)
सामान्य समझ के अनुसार भी यह कोई भेद की या किसी विशेष
अतिरिक्त समझ से समझी जाने वाली बात नहीं है। जैसे कि हम देखते हैं कि प्रेरितों 2:4 में, अन्य चेलों के साथ, पतरस ने भी पवित्र आत्मा पाया, और प्रेरितों 4:8 में उसने पवित्र आत्मा से भर कर मसीहियों का विरोध कर रहे अधिकारियों का प्रभावी
एवं सफल रीति से सामना किया और उनके सामने प्रभु परमेश्वर का प्रचार किया। पतरस और
यूहन्ना के लिए, उनकी अपनी योग्यता, शिक्षा, और हैसियत के आधार पर यह बहुत असाधारण
तथा उनके सामर्थ्य के बाहर का कार्य था, क्योंकि वे ‘अनपढ़ और साधारण’ मनुष्य थे
(प्रेरितों 4:13), और उनके सामने वचन में पारंगत और विद्वान तथा उच्च अधिकारी लोग
थे; लेकिन फिर भी बिना किसी घबराहट या गलती के उन दोनों ने उन विद्वान उच्च
अधिकारियों को निरुत्तर कर दिया (प्रेरितों 4:14); और वे लोग
पहचान गए की ऐसा उन दोनों के प्रभु के साथ रहने के कारण संभव हुआ है।
प्रेरितों 13:52 में फिर से आया है कि चेले पवित्र आत्मा
तथा आनंद से भरते रहे – यह बारंबार होता ही रहा, अर्थात वे उसकी सामर्थ्य से कार्य करते ही रहे; न कि यह
कि थोड़े-थोड़े समय बाद पवित्र आत्मा उनमें से चला जाता था, और उन्हें फिर से उसे
प्राप्त करना पड़ता था – यह तो हो नहीं सकता था, क्योंकि प्रभु ने उन से वायदा किया
था कि पवित्र आत्मा सर्वदा उन के साथ रहेगा (यूहन्ना 14:16);
और ऊपर हम देख चुके हैं कि पवित्र आत्मा को, अन्दर एक स्तर बनाए रखने के लिए,
थोड़े-थोड़े भागों में नहीं लिया जा सकता है।
पौलुस के लिए आया है कि उसने प्रेरितों 9:17 में पवित्र
आत्मा पाया, या, परिपूर्ण हो
गया, और फिर प्रेरितों 13:9 में जब उसे शैतान की शक्ति का सामना करना पड़ा तो लिखा
है कि उसने यह पवित्र आत्मा से भर कर किया। वचन ऐसा कोई संकेत या शिक्षा नहीं देता
है कि इन लोगों को पवित्र आत्मा फिर से, या परिस्थिति के अनुसार किसी भिन्न प्रकार
का, या फिर किसी भिन्न मात्रा में दिया गया; न ही यह कि वह
छोड़ कर जा चुका था और उसे फिर से तथा अब पहले से अधिक मात्रा में दिया गया; और तब
उन्होंने उससे “भर कर” कार्य किया। पवित्र आत्मा तो वही और उतना ही था जो आरंभ में
उन्हें मिला था; जो भिन्न था वह था परिस्थिति के अनुसार प्रभु की आधीनता और
आज्ञाकारिता में हो कर उनके द्वारा पवित्र आत्मा की सामर्थ्य का प्रभावी रीति से
उपयोग करना, और कार्य को उसकी सामर्थ्य से पूरा करना।
वास्तव में यह “पवित्र आत्मा से भर कर कार्य करना” कोई
अनोखी या अनूठी बात नहीं है, जो केवल कुछ ही लोगों के लिए होती हो । किन्तु बहुत से प्रचारक इसे ऐसी
अनोखी और अनूठी बात बना कर ही अनुचित प्रस्तुत करते रहते हैं, अपने वर्चस्व को बनाए रखने, और अपने आप को प्रभावी
और असामान्य दिखाने के लिए इसकी गलत शिक्षा देते रहते हैं, जो बाइबल के तथ्यों से
बिलकुल मेल नहीं खाती है। अभिव्यक्ति, “पवित्र आत्मा से भर
कर कार्य करना”, प्रतिदिन की सामान्य भाषा और भाषा के उपयोग
के अनुसार ही है।
हम सभी के द्वारा प्रतिदिन उपयोग एवं अनुभव की जाने वाली
कुछ अभिव्यक्तियों पर ध्यान कीजिए: जब आप कभी कहते, पढ़ते, या सुनते हैं कि, "उसने
प्रेम से भर कर...," या "वह आनंद से भर गया,और उसने..." या "उसने क्रोध से भर कर...", आदि, तो आप इसे कैसे समझते हैं? क्या आप यह समझते
हैं कि व्यक्ति ने नए सिरे से या किसी विशेष अनोखी रीति से ऐसा प्रेम, आनंद, क्रोध, आदि को प्राप्त
किया, जो सामान्यतः अन्य लोगों में नहीं होता है, या जैसा अन्य लोगों के पास नहीं होता है, और तब वह कार्य किया? या आप बिना किसी विशेष प्रयास अथवा माथापच्ची के सहज ही समझ जाते हैं कि
उस व्यक्ति ने उसमें पहले से ही विद्यमान उस बात का एक विशेष बल के साथ किसी
विशिष्ट कार्य के लिए, अथवा विशिष्ट परिस्थिति में विशेष रीति से उपयोग किया,
या उसे कार्यान्वित किया?
बस यही अभिप्राय पवित्र आत्मा से भरकर कार्य करने से है।
यह बस यही कहने का तरीका है कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी में पहले से ही विद्यमान
पवित्र आत्मा की सहायता से उसने कुछ अनोखा या असामान्य कर दिया, कुछ ऐसा जो उस
व्यक्ति की सामान्य योग्यताओं और क्षमताओं के आधार पर वह नहीं कर सकता था, जैसा कि
हम ऊपर पतरस, यूहन्ना, और पौलुस के उदाहरणों में देख चुके हैं।
- क्रमशः
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भाग 3 – समझना
(2)
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