पवित्र आत्मा का
बपतिस्मा – भाग 3
कितने बपतिस्मे?
निहितार्थ
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कोई अलग से मिलने या लिए जाने
वाला बपतिस्मा नहीं है; और न ही इसे प्राप्त करने के लिए मसीही विश्वासियों को कोई
निर्देश दिए गए हैं। पवित्र आत्मा, पौलुस में हो कर स्पष्ट कहता है “एक ही
प्रभु है, एक ही
विश्वास, एक ही बपतिस्मा” (इफिसियों 4:5)। अब यदि उद्धार पाने के बाद
लिया गया एक तो पानी का बपतिस्मा है और फिर यदि उस तथाकथित शिक्षा के अनुसार
परमेश्वर के लिए प्रभावी होने के लिए एक और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा भी है, तो
फिर ये तो एक नहीं वरन दो अलग-अलग बपतिस्मे हो गए, और इफिसियों में दी गई ‘एक ही
बपतिस्मा’ होने की बात झूठी हो गई! अर्थात पवित्र आत्मा ने, जिसकी प्रेरणा से समस्त पवित्र शास्त्र लिखा गया
है (2 तीमुथियुस 3:16), वचन में झूठ डलवा दिया, उसी ने अपने ही बात काट दी, अपने
ही विषय गलती कर दी – जो कि असंभव है, ऐसा विचार करना भी घोर मूर्खता है।
अब क्योंकि जल का बपतिस्मा तो स्थापित है ही – यूहन्ना
बपतिस्मा देने वाला भी वही देता था (मरकुस
1:4-5, 8), प्रभु यीशु ने भी उस से वही बपतिस्मा लिया (मरकुस 1:9), प्रभु ने अपनी
महान आज्ञा में भी शिष्यों को यही देने के लिए कहा (मत्ती 28:19), और
प्रेरितों दो अध्याय में कलीसिया की स्थापना के साथ ही प्रथम मसीही विश्वासियों को
भी यही दिया गया (प्रेरितों 2:41), तथा तब से अब तक सभी मसीही विश्वासियों को दिया
जाता रहा है; इसलिए एक बपतिस्मे की गिनती तो यहीं पर इस पानी के बपतिस्मे के साथ
समाप्त हो जाती है। पवित्र आत्मा का बपतिस्मा अलग से पाने की शिक्षा देने वाले तो
फिर एक और अतिरिक्त बपतिस्मा लेने की शिक्षा देकर, जानते-बूझते हुए परमेश्वर के
वचन में गलती डालते हैं, परमेश्वर के वचन को झूठा बनाते हैं, अपनी गलत धारणा के
समर्थन के लिए वचन का दुरुपयोग करते हैं। जबकि प्रेरितों 11:15-18 में यह बिलकुल स्पष्ट कर दिया गया है, प्रभु के नाम और प्रभु द्वारा दी गई शिक्षा के आधार पर यह
साफ बता दिया गया है, कि पवित्र आत्मा प्राप्त करना और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा
एक ही हैं, इन्हें पृथक करने या अलग देखने की न तो कोई आवश्यकता है और न ही बाइबल
में कोई ऐसी शिक्षा अथवा निर्देश है।
अब इस पर ज़रा ध्यान कीजिए कि भक्ति और वचन के आदर के रूप
में शैतान ने कितनी चतुराई से लोगों को परमेश्वर के वचन को झूठा ठहराने और उसकी
अनाज्ञाकारिता करने के लिए झांसे में डाला है। इसीलिए पौलुस पवित्र आत्मा के
द्वारा ऐसी गलत शिक्षाओं को देने वालों के लिए सचेत करता है, “यह मैं इसलिये
कहता हूं, कि कोई
मनुष्य तुम्हें लुभाने वाली बातों से धोखा न दे” (कुलुस्सियों 2:4); “परन्तु मैं डरता हूं कि जैसे
सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के
साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं” (2 कुरिन्थियों 11:3)। जैसा हम पहले की चर्चाओं में
देख और स्थापित कर चुके हैं, प्रेरितों 11:16 तथा 1 कुरिन्थियों 12:13 में उल्लेखित
‘पवित्र आत्मा का बपतिस्मा’ अलंकारिक भाषा के प्रयोग द्वारा सभी वास्तविक मसीही
विश्वासियों को पवित्र आत्मा के द्वारा प्रभु की एक ही देह अर्थात कलीसिया में
समान रूप से सम्मिलित कर दिए जाने और समान स्थान तथा आदर प्रदान कर दिए जाने की
अभिव्यक्ति है; न कि भविष्य में किए जाने के लिए कोई निर्देश।
बपतिस्मा एक ही है – जल में डुबकी का बपतिस्मा, जिसे
मसीही विश्वास में आने के बाद ही प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु की आज्ञाकारिता पूरी
करने के लिए लेना है – बपतिस्मे से उद्धार नहीं है (प्रेरितों 2:38 की गलत
व्याख्याओं द्वारा बहकाए न जाएं; देखिए: क्या प्रेरितों के काम 2:38 यह शिक्षा देता है कि उद्धार के लिए बपतिस्मा लेना आवश्यक है?), उद्धार पाए हुओं के लिए, प्रभु के प्रति
समर्पित और आज्ञाकारी होने की गवाही देने के लिए बपतिस्मा है (मत्ती 28:19) –
बपतिस्मा उन्हें दिया जाना था जो शिष्य बन जाते थे; न की बपतिस्मा लेने से व्यक्ति
शिष्य बनता था)।
निहितार्थ
मसीह की देह, अर्थात उस की कलीसिया अस्तित्व में आ चुकी है; और जितनों ने
नया जन्म पाया है, अर्थात वे जो सच्चे मन से पापों से पश्चाताप करने, सत्यनिष्ठा
के साथ अपने पापों के लिए प्रभु से क्षमा माँगने, और वास्तविकता में अपना जीवन
पूर्णतः प्रभु को समर्पित करने के द्वारा मसीह यीशु में विश्वास में आ गए हैं, वे
स्वतः ही प्रभु की देह के अंग और पवित्र आत्मा का मंदिर बन जाते हैं, और परमेश्वर
पवित्र आत्मा उन के अन्दर निवास करने लगता है। यदि इस पद के आधार पर यह विचार रखा
जाए, कि केवल वे जिन्होंने अतिरिक्त पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया है, वे ही
प्रभु की देह के कार्यकारी और प्रभावी सदस्य हो सकते हैं, तो फिर यह एक बहुत
खतरनाक और बाइबल के बिलकुल विपरीत सिद्धांत
ले आता है – प्रभु की कम से कम दो देह होने का – एक देह वे जिन्होंने
पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाया है और दूसरी देह वो जिन्होंने यह बपतिस्मा नहीं
पाया है; पहले वाले तो प्रभु के लिए उपयोगी होंगे और दूसरे वाले उपयोगी नहीं होने
पाएँगे। ऐसी स्थित में स्वाभाविक है कि अनन्तकाल के लिए प्रभु की लगभग सभी आशीषें
और प्रतिफल पहले वाले लोगों के लिए होंगे, जबकि दूसरे वाले लोगों को अनंतकाल के
लिए लगभग खाली हाथ ही रहना पड़ेगा। अब आप स्वयं ही देख लीजिए कि भक्तिपूर्ण प्रतीत
होने वाला यह सिद्धांत वास्तव में कितना घातक, घिनौना, पवित्र शास्त्र के
प्रतिकूल, परमेश्वर के स्वभाव के बिलकुल विपरीत, तथा पूर्णतः तिरस्कार योग्य है।
साथ ही, एक बार फिर, यह लोगों को सत्य बताने की
ज़िम्मेदारी से बचने का प्रयास है; यह बताने के दायित्व से मुँह मोड़ना है कि यदि
उन्हें अपने जीवनों में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का अनुभव नहीं हो रहा है तो दो
ही संभावनाएं हैं, या तो उन्होंने वास्तव में उद्धार तथा नया जन्म नहीं पाया है,
इसलिए उन्हें इसे सुधारने के लिए तुरंत निर्णय और उपयुक्त कार्य करना चाहिए; अथवा,
उनके जीवन पवित्र आत्मा को पूर्णतः समर्पित नहीं हैं, वे वास्तव में पवित्र आत्मा
के आज्ञाकारी नहीं हैं, इस लिए वह उन में हो कर कार्य नहीं कर रहा है; और फिर इस
का भी तुरंत उचित सुधार करना आवश्यक है।
- क्रमशः
अगला लेख: पवित्र
आत्मा से भरना या परिपूर्ण होना क्या है? (भाग 1)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें