यह अंक आपके हाथ में सिर्फ इसलिए है क्योंकि बहुत सारे हाथ प्रार्थना में लगे रहे। मैं उन सब के लिए अपने दिल से परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ। मैं कभी भी इस अंक को आपके पास नहीं ला पाता। सच मानिएगा यह बहुत से भाई-बहनॊं के सहयोग से सम्भव हो पाया है।
एक आदमी एक तैराक के साथ नदी पर तैरना सीखने के लिए गया। नदी के किनारे पत्थरॊं पर काफी काई जमी थी। उसका उस्ताद अभी कपड़े उतार ही रहा था कि मियाँ का पाँव किनारे पर फिसला और ज़ोर से गिरे। तभी उस्ताद ने देखा कि मियाँ तो तेज़ी से वापस लौट रहे हैं। उस्ताद चिल्लाया, “मियाँ कहाँ चले?” मियाँ बोले, “उस्ताद जी मामला बड़ा ख़तरनाक है, अभी तो पैर बाहर ही फिसला है, अगर कहीं नदी में उतरते ही फिसल जाता तो क्या होता? पहले मैं तैरना सीखूँगा तभी पानी में उतरूँगा।” क्या यह तर्क सही है? पर बिना पानी में उतरे क्या कोई तैरना सीख सकता है? ऐसा ही एक डर है जो हमें आगे नहीं बढ़ने देता।
जब-जब हम हार का सामना करते हैं, तब-तब अक्सर हम हिम्मत भी हारना शुरू कर देते हैं। पर हार भी एक अच्छा अनुभव बन सकती है। अगर हम हार के कारणॊं से सीख लेते हैं तो वही हार हमारे लिए कई जीतों के द्वार खोल देती है (रोमियों ८:२८)। हार हमें सिखा देती है कि हम अपने उपर विश्वास रखना छोड़ दें। तब हम विश्वासयोग्य परेमेश्वर पर ही विश्वास रखकर चलने लगते हैं। शायद आपकी परेशानियॊं ने, आपके स्वाभाव या आपके परिवार ने आप को हरा डाला होगा। डरिएगा नहीं! आप हारे हैं, आपका परमेश्वर नहीं हारा। आपका परेमेश्वर आपकी परेशानियों से बहुत सामर्थी है।
परमेश्वर के वचन की हर कहानी कुछ कहती है। वह मुझसे और आपसे और हर एक हारे हुए इन्सान से कहती है देख! एक बड़ी जीत तेरा इन्तज़ार कर रही है। मरकुस ५:२२-४२ में दो हारे हुऒं की कहानी है। याइर नामक एक आराधनालय के सरदार के घर में १२ साल पहले एकलौती खुशी ने जन्म लिया था। यही लड़की आज मरने के करीब थी। यह व्यक्ति प्रभु के पास आया। प्रभु फौरन उसके घर की ओर चला। तभी एक और औरत जिसके जिस्म में १२ साल पहले बीमारी के रूप में एक दुख ने जन्म लिया था वहाँ आई। अब वह शरीर से और पैसे से पूरी तरह हार चुकी थी। पर उसने मन में यह माना था कि अगर मैं प्रभु यीशु के आँचल को छू लूँगी तो चँगी हो जाऊँगी। उसके पास एक विश्वास था और सामने एक मौका भी। पर उसके सामने एक बड़ी भी़ड़ थी जो एक दूसरे पर गिरी पड़ती थी। प्रभु के पास पहुँचना उसकी पहुँच से बाहर था। अजीब बात यह हुई कि १२ साल से बिमार यह स्त्री एसी भीढ़ को पार कर प्रभु के पास पहुँच गई। यह असम्भव बात सम्भव कैसे हुई? प्रभु ने कहा था, “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता उसे खींच ना ले” (यूहन्ना ६:४४)। प्रभु की शक्ति ही उसे प्रभु के पास खींच लाई। प्रभु के एक स्पर्श ने ही उस स्त्री की निराशा को आशा में और उसकी हार को जीत में बदल डाला।
चँगाई पाकर यह स्त्री उस भीड़ में चुपचाप छिप जाना चाहती थी। पर वह प्रभु के सामने छिप न सकी। उसको बड़ी भीड़ के सामने एक छोटी गवाही देनी ही पड़ी। पर यह देर उस बाप के लिए जिसकी इकलौती बेटी अपनी आखरी साँसे ले रही थी, एहसास दे रही थी कि यह देरी कहीं हमेशा की दूरी न पैदा कर डाले। परन्तु उस स्त्री की गवाही इस डरे हुए बाप के लिए ज़रूरी थी। इतने में बेटी की मौत खबर ने उसकी आखरी उम्मीद को भी मसल डाला। परन्तु प्रभु ने पूरी तरह हारे हुए इस व्यक्ति से कहा, “मत डर, केवल विश्वास रख ।” मौत ने जिसे हरा दिया, उस मौत को प्रभु ने हरा दिया। ज़रा सोचिएगा! अब कौन सी हार है जो आपको हरा पाएगी?
हारे हुए मूसा ने मौत मांगी, निराश एल्लियाह ने मौत मांगी और सब कुछ लुटे हुए अय्यूब ने मौत मांगी। अपने स्वभाव से हारा हुआ पौलूस भी चिल्लाया, “मैं कैसा अभागा मनुष्य हुँ, कौन मुझे... छुड़ाएगा” (रोमियों७:२४)। प्यारे प्रभु ने उनकी हार को ही नहीं, पर उन्हे ही बदल डाला।
सच मानिए, मैंने खुद भी सालॊं एक शर्मनाक हारा हुआ जीवन जीया है; जहां मुझे आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा रास्ता सूझता नहीं था। यह वही हारे हुए हाथ हैं जो आज विजय का सन्देश आपके लिए लिख रहे हैं। इसे कहते हैं क्रूस पर बहे हुए लहू की सामर्थ।
यह अंक आपको कैसा लगा हमें ज़रूर लिखिएगा। आपके पत्र हमें हियाव और आपके सुझाव हमें सुधार देते हैं।
प्रभु में आपका
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जवाब देंहटाएंAkhilesh shukla
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