स्वार्थ हमारे बचपन का साथी है। हमें बस अपने मतलब से ही मतलब रहता है। स्कूल से सवेरे ही वापस लौटता लड़का बड़ा ही खुश था; माँ को बतलाया “ममी छुट्टी हो गयी।” माँ ने खुशी से कूदते बच्चे से पूछा, “बेटा छुट्टी क्यों हो गयी?” बेटा बोला, “ममी, हमारी मैडम की ममी मर गयी।” माँ ने अपना सिर पकड़ लिया। बेटे ने माँ का हाथ पकड़ कर हिलाते हुए पूछा, “ममी-ममी क्या हमारी मैडम के डैडी अभी ज़िंदा हैं?” उसे एक और छुट्टी का इन्तज़ार था। इसी तरह से हम भी अपने मतलब के बारे में ही सोचते हैं। आज कितने सीना ठोक के गवाही देते हैं कि जीवन बदल गया, पर उनके सोच और स्वभाव में वही पुराना स्वार्थ सजा है। सच मानिए, अनपढ़ लोग भी ऐसों की ज़िन्दगी को आसानी से पढ़ लेते हैं। आप अपने बारे में कुछ भी कहते सोचते रहें, लोग आपके बारे में क्या कहते सोचते हैं? आपका दूसरों को बताते रहना कि मैंने यह किया या वह किया, सब आपका घमंड है जो आप में से बह रहा है; लोग तो आपके जीवन को पढ़ते हैं।
कहा जाता है कि सिकन्दर जब हिन्दुस्तान को जीतने के लिए चला तो पहले वह एक डायोजनीज़ नामक यूनानी फकीर से मुलाकात के लिए गया। फकीर वास्तव में फकीरी की हालत में जीता था। सेहत से तो बिल्कुल चिल्गोज़े की औलाद सा दिखता था पर बात सटीक और कड़क करता था। सिकन्दर ने उसके पास पहुँच कर उसे अपना परिचय दिया, “क्या तुम जानते हो मैं सिकन्दर महान हूँ?” फकीर बोला, “जो अपने आप को महान सोचता है, वह व्यक्ति कभी महान हो ही नहीं सकता।” ऐसे सीधे और साफ शब्द सिकन्दर नें कभी नहीं सुने थे; बल्कि किसी की हिम्मत ही नहीं थी जो सिकन्दर को ऐसा जवाब दे सके। वह तो चापलुसों और खुशामद करने वालों से घिरा रहता था। उसे लगा यह पहला ऐसा आदमी है जो ऐसा साफ सच कहने की हिम्मत रखता है और अपनी बात बिना मिलावट के कह भी देता है। उस समय वह फकीर ज़मीन पर पड़ा धूप सेक रहा था। सिकन्दर ने फकीर से कहा, “डायोजनीज़, कहो मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? तुम बूढ़े हो रहे हो, क्या एक घर बनवाकर तुम्हारी सेवा के लिए नौकर रखवा दूँ?” डायोजनीज़ बोला, “ अगर कुछ करना चाहते हो तो मेरे लिए इतना करो कि ज़रा हट कर खड़े हो जाओ। मेरी धूप मुझ से न छीनो। तुम खतरनाक आदमी मालूम पड़ते हो। तुम बहुतों का बहुत कुछ छीनने निकले हो और बहुतों के जीवन छीन लोगे। संसार को जीत लोगे पर शान्ति से कभी न जी पाओगे।” सिकन्दर दिल सख़्त करके यह दिल को छूती हुई बात सुनकर भी उसे टाल गया और उसके पास से चला गया। हिन्दुस्तान से सिकन्दर की लाश लौटी, उसकी जीत एक तरफ रह गयी। वास्त्विक विश्वास हमें नम्र बनाता है, घमंडी नहीं - आपका अपने बारे में क्या विचार है? “मन फिराओ, क्योंकि परमेश्वर का राज्य निकट है।”
इन बुरे दिनों में सबसे बुरी बात यह है कि ज़्यादतर विश्वासी विश्वास योग्य और ईमान्दार नहीं हैं। खरे कम, खोटे ज़्यादा हैं। कुछ तो मण्डली पर कलंक बन कर रहते हैं और मण्डली पर बोझ बन कर जीते हैं। वे विरोध और जलन से भरे रहते हैं, जबकि एक वास्त्विक विश्वासी अपने शत्रुओं का भी बुरा नहीं सोच सकता क्योंकि बाईबल उससे कहती है कि शत्रुओं का भी भला कर, बुराई को भलाई से जीत ले। परमेश्वर का वचन हमें विरोध और जलन की जगह ही नहीं देता है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि आपके मन में किन-किन के प्रति विरोध और जलन भरी है, और कितनों का बुरा देखने का आप इंतिज़ार कर रहे हैं। आपके सीने में ऐसे संपोले हैं जिन्हें आपने यदि अभी नहीं निकाला तो एक दिन वे आपको भयानक ताड़ना में झोंक देंगे। शैतान शुरू से ही ऐसे संपोले भाईयों के जीवन में बोता आया है। बाईबल की प्रथम पुस्तक, उत्पत्ति में ही देख लें, उसने हाबिल और कैन में, इसहाक और इशमाएल में, याकूब और एसाव में, याकूब और उसके भाइयों में कैसा बैर बोया। यूसुफ के भाईयों ने उसे बेच डाला और मुसीबतों में ढकेल दिया। अन्ततः जब वह मिस्र का प्रधान मंत्री बना तो उसके पास अपने उन भाईयों से सब बातों बदला लेने की पूरी सामर्थ थी, मौका था और कारण था। अगर नहीं था तो बस बदला लेने का स्वभाव नहीं था। यूसुफ ने ऐसे भाईयों को जो माफी के लायक ही नहीं थे, न सिर्फ माफ किया वरन उसने सदा उनका भला ही किया। उसने बुराई को भलाई से जीत लिया।
मेरे प्यारे पाठक, क्या आपके पास ऐसा दिल है कि आप उन्हें माफ कर सकें जिन्होंने आपके साथ बहुत बुरा किया या कहा हो? यदि ऐसा करने की क्षमता नहीं है तो प्रभु से माँगिए और कहिए “हे प्रभु मुझे ऐसा दिल दें कि मैं उन्हें माफ कर सकूं और ऐसा मौका दें कि मैं इनकी कोई भलाई कर सकूं ।” ऐसा करने के अलावा एक सच्चे विश्वासी के पास कोई दूसरा रासता है ही नहीं। जो क्षमा दे नहीं सकते उन्हें परमेश्वर से क्षमा पाने का भी कोई हक नहीं है। क्रूस पर से की गयी प्रभु की पहली प्रार्थना उन्हें क्षमा देने की थी जो क्षमा करने के लायक कतई न थे और न ही क्षमा माँग रहे थे, वरन भयानक पीड़ा उठा रहे निर्दोश प्रभु का ठठा कर रहे थे। उनके लिए प्रभु के शब्द थे, “ऐ बाप इन्हें क्षमा कर।”
“झटपट मेल-मिलाप कर लें कहीं ऐसा न हो... (मत्ती ५:२९)।” कहीं कुछ ऐसा न हो जाए जो आपके सहने की सीमा से बाहर हो और मौका निकल जाए। “बिना मेल-मिलाप के और बिना पवित्रता के परमेश्वर को कदापि देख नहीं सकते...(इब्रानियों १२:१४)।” “धन्य हैं वे जो मेल करवाने वाले हैं, क्योंकि वो परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे (मत्ती ५:९)।” “हमें मेल-मिलाप की सेवा सौंप दी है। (२ कुरिन्थियों ५:१८)”
ये जगत परमेश्वर का शत्रु है “सारा जगत शैतान के चंगुल में है (१ युहन्ना ५:१९)” लेकिन “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वो नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए। (युहन्ना ३:१६)”
आखिर घटियापन की भी कोई हद होती है। कितने विश्वासी विरोध से, बैर से भरे पड़े हैं, पर प्रचार बड़े ज़ोर से करते हैं। आप परमेश्वर की आवाज़ सुन कर भी नहीं मानते तो तैयार रहिए, परमेश्वर का कुल्हाड़ा बस जड़ पर रखा है “मन न फिराएंगे तो मैं उन्हें बड़े क्लेश में डालूंगा (प्रकाशितवाक्य २:२२)”। जब ऐसा होगा तो उनका क्या होगा जो ढिटाई की आत्मा से बंधे हैं, ऐसे लोगों के लिए तगड़ी ताड़नाएं तैयार हैं।
एक विश्वासी ने प्रार्थना में प्रभु से अपना दुखः बयान किया कि “हे प्रभु लोग मुझे मण्डली में ग्रहण नहीं करते, और अब तो उन्होंने मुझे मण्डली से बाहर भी निकाल दिया है।” प्रभु ने कहा, “तेरे साथ तो यह आज किया गया है, मैं तो १० साल से उस मण्डली में जाने का प्रयास कर रहा हूँ, पर वे मुझे आने ही नहीं देते”! यह शायद आपको मज़ाक लगे, पर यह बात वचन के अनुसार सच है। लौदीकिया की मण्डली ने प्रभु को बाहर निकाल दिया था और वह अन्दर आने के लिए द्वार खटखटा रहा था (प्रकाशित्वाक्य ३:२०)। यह प्रभु की दया ही है कि वो छोड़कर चला नहीं गया। वह अब भी लोगों के दिलों पर खटखटा रहा है, इस इन्तज़ार में कि कोई तो होगा जो उसकी आवाज़ सुनकर अपने दिल का द्वार उसके लिए खोलेगा।
प्यारे पाठक, क्या आप आज उसकी आवाज़ सुनकर उसके वचन के लिए अपना दिल खोलेंगे? सच मानिएगा ऐसा करने से आपकी सारी हार एक नई जीत में बदल जाएगी। परमेश्वर ने आपके लिए एक बड़ी भलाई सजाकर रखी है, बस आप अपनी बुराई से फिरने को तैयार हों। परमेश्वर ने आपको आपकी हालत दिखाकर आपकी आँखें तो खोल दी हैं, बस अब प्रार्थना के लिए आप अपना मूँह खोल दीजिएगा।
अब प्रभु से दूरी न बनाए रखिएगा। ख़तरे काफी करीब हैं, बस मन की दूरी को आज दूर कर डालें। पाप का पिता, शैतान, बहुत पास ही खड़ा है। वह कभी नहीं चाहता कि आप मेल-मिलाप कर लें। यह तो सच है कि अपमान को पी कर क्षमा देना सहज नहीं। हमारा अहंकार हमें माफी देने और माफी मांगने से हमेशा रोकता है। किंतु प्रभु की सामर्थ से यह संभव है। प्रभु हमें कुछ ऐसा करने को नहीं कहता जो उसने स्वयं ना किया हो और जिसकी सामर्थ वह हमें ना देता हो। बस वही उसके हैं जो उसका वचन सुनते और मानते हैं (लूका ८:२१)। जो उसका वचन सुनकर मानते नहीं, उनका प्रभु से कोई रिशता नहीं है, प्रभु कहता है “जब तुम मेरी बात नहीं मानते तो तुम मुझे हे प्रभु हे, प्रभु क्यों कहते हो? (लूका ६:४६)” आप, हाँ आप ही, आज उसकी आवाज़ को सुनकर मानेंगे या टालेंगे?
मेहरबानी से प्रार्थना कीजिए कि हम सम्पर्क को सही समय पर आपके पास पहुंचा सकें। हमें आपके सुझाव और सुधार से भरे पत्रों का इन्तज़ार रहेगा।
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