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बुधवार, 27 मई 2009

सम्पर्क अप्रैल २००३: कहीं यह कहानी आपकी तो नहीं

किसी ने एक कहानी कही। एक किसान से कहा गया कि एक दिन में जितनी भूमि पर तू चल लेगा, उतनी भूमि तुझ को दे दी जाएगी, पर शर्त यह है कि सूरज डूबने से पहिले, जहाँ से चलना शुरू किया है, वहीं वापस भी पहुँचना है। यदि सूरज डूबने तक वापस नहीं पहुँचा तो कुछ भी नहीं मिलेगा। किसान सारा दिन, बिना आराम किये या खाने-पीने को रुके, तेज़ी से चलता रहा ताकि ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीन ले सके। शाम ढलने लगी तो उसे ध्यान आया कि वापस भी लौटना है, और उसने जलदी जलदी लौटना शुरू किया। तेज़ी से ढलते सूरज के पूरा ढलने से पहिले वापस पहुँचने के प्रयास में उसने दौड़ना शुरू किया। दिन भर चल कर वह काफी थक चुका था, अब दौड़ने की शक्ति उसमें नहीं थी। वह कभी दौड़ता, कभी गिरता, फिर उठता, फिर दौड़ता। सूरज लगभग ढलने ही को था, और वह किसान भी थकान और कमज़ोरी से बुरी तरह से बेहाल हो चुका था। लेकिन मंज़िल को निकट देख, उसने एक अंतिम प्रयास में अपनी पूरी जी जान लगा दी। ढलते सूरज की अंतिम किरणों के ढलने से ज़रा पहिले वह मंज़िल पर पहुँच कर गिर पड़ा और गिरते ही दम तोड़ दिया। ज़मीन तो उसे दे दी गई, पर केवल उतनी, जितनी उसे दफनाने के लिए ज़रूरी थी। उसकी दौड़ खाली हाथ शुरू हुई थी और खाली हाथ ही ख़त्म हो गई। स्वार्थ में अंधा हमारा समाज अपने लालच की मृगतृषणा के पीछे, अपनी बरबादी के अंजाम से बेख़बर ऐसे ही दौड़ता जा रहा है। किसे फुर्सत है कि ज़रा रुक के सोचे कि हर कोई खाली हाथ इस दुनिया में आता है और खाली हाथ ही चला भी जाता है। इस दुनिया की भाग-दौड़ में कमाया हुआ अगर कुछ साथ जाएगा तो वह है ज़िन्दगी का हिसाब-किताब, बाकि सब तो यहीं रह जाएगा।

एक सर्वेक्षण के अनुसार, एक आम बच्चा, हाई स्कूल तक आते-आते, लग्भग बीस हज़ार घंटे के टी०वी० प्रोग्राम देख चुका होता है। इन्हीं प्रोग्रामों में वह लगभग एक लाख विज्ञापन भी देख चुका होता है। इन प्रोग्रामों और विज्ञापनों को देखकर उसका कच्चा और कोमल दिमाग़ सीखता है कि सिग्रेट पीने से शान दिखती है, शराब पीने से मस्ती आती है, यौन संबन्धों में ज़बर्दस्त मज़ा है और इसके लिए न तो शादी तक रुकने और न ही शादी की सीमओं में रहने की कोई आवश्यक्ता है। वह बचपन से ही इस झूठी शान, मौज-मस्ती और वासना की कामना अपने मन में पालने लगता है।

हम एक नये समाज की संरचना कर रहे हैं, जहाँ शादी के पहिले ४ सालों में ही ५०% दम्पतियों के पारिवारिक संबन्धों में कड़वाहट आ जाती है। आदमी ऐसी कड़वाहट, किसी न किसी रूप में, जीवन भर झेलता रहता है। हमारा सारा समाज साँप की तरह ज़हरीला होता जा रहा है। बस हम अपने स्वार्थ में ही सिमटे हुए जी रहे हैं और स्वार्थ के ग़ुलाम कभी फर्ज़ का एहसास नहीं कर पाते। हर ग़रीब और मजबूर आदमी से चाहे जो करवा लो, क्योंकि उसकी बहन, बेटी और पत्नि की इज़्ज़त को सब बिकाऊ समझते हैं। सत्य को कहने का एहसास और सत्य को सहने की क्षमता हमारे समाज में समाप्त होती जा रही है।

जहाँ इमान्दारी नहीं वहाँ बेईमानी अपने आप कानून बन जाती है। उदाहरण स्वरूप - रिश्वत देंगे तो काम होगा नहीं तो अटका रहेगा। यहाँ एक भुगतान, वहाँ एक नज़राना, यही प्रचलन है; जो इसका पालन नहीं करता वह ‘परिणाम’ भुगतता है। हमारे समाज का एक व्यवस्थित और ज़रूरी व्यवसाय ‘बेईमानी’ है। धोखे बहुत ही सस्ते हैं। हर जगह, हर माल के साथ कम से कम एक धोखा तो मुफ्त में मिल ही जाता है। एक आम धोखा है दिखावे की ईमान्दारी। अधिकांश लोगों को मक्कारी में महारथ हासिल होती है, और ऐसे मक्कार लोग ही चापलूसी कर पाते हैं। इसी चापलूसी की सीढ़ी के सहारे वे सफलता को प्राप्त करते हैं। पैसे की दौड़ में प्रेम, परिवार, फर्ज़, आदर्श सब कहीं पीछे छूट गये हैं।

सौ सालों में संसार इतना ज्ञानी हो गया है कि आज्ञानता के कामों की सारी सीमाएं लांघ गया है। हमारे धर्म गड़बड़ा गये हैं। वे आदमी को आदमी से जोड़ने की बजाए तोड़ने में लगे हैं। धर्म ने धर्म के नाम पर मानवता की हत्या कर डाली है और आदमी को हत्यारा बना डाला है। धर्म ने धर्म के नाम पर ही हमारे मनों में प्रेम नहीं वरन बैर बोया है और इस बैर भाव ने हमारे विवेक को अंधा कर डाला है। परमेश्वर तो सिर्फ एक ही है और वह सबका है। जैसे हमारे पास एक ही सूर्य है और वह सबका है, सबको प्रकाश देता है। न वह स्वदेशी है न विदेशी। न ही अमरीकन है न अफ्रीकन, न हिन्दू है न मुसलमान। अगर हम कहने लगें ‘सूर्य’ हमारा है, ‘सन’ तुम्हारा है, ‘आफ़ताब’ मुसलमानों का है, और इस बात के पीछे लड़ने-मरने पर उतारू हो जाएं, तो क्या यह निहायत ही बेवकूफ़ी नहीं है? क्या हमने अपनी सामन्य बुद्धी भी किसी दुष्ट महाजन के पास गिरवी रखवा दी है? परमेश्वर एक है और वह सबका है। वह सबको प्यार करता है और कोई फर्क नहीं करता। फर्क तो सिर्फ आदमी की सोच में है।

धर्म ने बड़ा भ्रम पैदा कर रखा है और हमारे दिमाग़ों में नफरत और बँटवारे की ऊँची दीवारें खड़ी कर दीं हैं। नफरत की इन ऊँची दीवारों के सामने, आदमी बहुत बौना हो गया है। हमारे नेताओं ने इन ऊँचीं दीवारों पर काँच के टुकड़े बिछा दिए हैं। अब कोई हाथ बढ़ाकर तो देखे। इन्हीं धर्मों ने इन्सानियात की जड़ों में सामप्रदायिक्ता का ज़हर भरकर इन्सान को हैवान बना दिया है। परमेश्वर किसी ख़ास धर्म के दायरे में लोगों को प्यार नहीं करता। उसने सारे जगत से एक समान और एक सा प्यार किया। आप किसी भी धर्म के क्यों न हों, परमेश्वर के लिए इसका कोई महत्व नहीं है। संसार में करोड़ों लोग इसाई धर्म को मानने वाले हैं। वे हर इतवार को अपनी हाज़िरी दर्ज कराने गिरजे में जाते हैं। इनके पास इसाई ‘धर्म’ है पर अधिकांश के जीवन में मसीह बिलकुल नहीं है। यदि सच्चाई जीवन में नहीं है तो धर्म का क्या अर्थ रह जाता है? अधर्म की कमाई का एक हिस्सा धर्म के कामों में लगाकर आप धर्मी नहीं बन जाते। वैसे भी, अधिकांश्तः दान देने का काम तो नाम कमाने के लिए ही किया जाता है। लालाजी ने अपने सामने अपने ईश्वर की फोटो लगा रखी है, वे उसके आगे अपना सिर झुकाकर बेईमानी करना शुरू कर देते हैं, इस विश्वास में कि उनका इश्वर उनकी सहायता करेगा, बेईमानी करने में भी और पकड़े जाने पर छुड़ाने में भी।

कुछ तो ऐसे हैं कि आप उन्हें ज़रा सही बात समझा कर तो देखें, आपको तुरन्त ‘बाज़ारु’ भाषा में उनसे जवाब मिलेगा, “हाँ हम तो ऐसे ही हैं, बताओ आप क्या करोगे? मेरे भविष्य को तय करने वाले आप कौन होते हो? आपको मुझे भला-बुरा बताने की ज़रूरत नहीं है। मेरी ज़िन्दगी है, मैं अपने ढंग से जीना चाहता हूँ, आपसे मतलब?” आपको ऐसा लगेगा जैसे उसे भली बात बताकर आपने ततईयों के छत्ते में हाथ डाल दिया हो। उन्हें तो बस अपने मतलब की बात सुनने से मतलब है। वे सिर्फ कानों की खुजली मिटाना चाहते हैं, अन्दर का पाप नहीं। एक दफा एक डॉक्टर साहब शराबियों की एक सभा में उन्हें समझा रहे थे कि शराब पीने के कैसे-कैसे बुरे परिणाम होते हैं। डॉक्टर सहिब ने अपनी बात प्रमाणित करने के लिये काँच के एक बर्तन में शराब भरी और दूसरे में पानी, फिर एक केंचुआ लिया और उसे पानी भरे बर्तन में डाल दिया। केंचुआ बड़े आराम से पानी में तैरने लगा। फिर उन्होंने उस केंचुए को पानी से निकाल कर शराब भरे बर्तन में डाल दिया। उसमें डालते ही केंचुआ टुकड़े-टुकड़े होकर गल गया। डॉक्टर साहब ने समझाया कि शराब से कैसे भयानक परिणाम होते हैं। तब डॉक्टर साहब ने वहाँ बैठे एक शराबी से पूछा, “क्यों जनाब अब आप समझे कि शराब हमारे पेट में जाकर क्या करती है?” शराबी खड़ा होकर बोला, “हाँ डॉक्टर साहब, मैं समझ गया कि शराब हमारे पेट में जाकर क्या करती है - ये हमारे पेट में पल रहे सारे कीड़े मार देती है!” डॉक्टर साहब ने अपना सिर पकड़ लिया।

मियाँ मानव की खोपड़ी कूड़ादान है जिसमें सब तरह की गन्दगी भरी पड़ी है। बस मुँह का ढक्कन खुलते ही बदबू बाहर बहने लगती है। मानव मन बुराई से बुरी तरह से बंधा है। लेकिन वह अपने दोष मानने की बजाए उन्हें दूसरों पर थोपने में लगा रहता है। ज़रा सोचिए, क्या दूसरों पर दोष थोपने से अपने दोष दूर हो सकते हैं? इससे हमारे अंदर के छिपे अहंकार को तुष्टी प्राप्त होती है। हर बात में दोष ढूंढना कुछ लोगों की आदत है। वे हमेशा अपने दिमाग़ की बत्ती बुझाकर देखते हैं। वे सूरज को भी दोषी ठहरा देते हैं, कहते हैं कि सूरज काली परछाईयों को पैदा करने के लिए निकलता है। सब सवालों को एक तरफ सरका कर हमारा अहंकार अड़ा खड़ा रहता है। अपने को सही साबित करने में लगे रहते हैं, पर अपना दोष मानने को तैयार नहीं होते। पति-पत्नियों में देखिए कि वे कैसे एक दूसरे में दोष ढूँढते रहते हैं, और एक दूसरे पर दोष देने के मौके नहीं चूकते। वे अपनी किस्मत को तो कोसते हैं, वे अपना घर तोड़ने को तो तैयार रहते हैं, उनके मासूम बच्चे, उनके अभद्र सामजिक व्यवहार की शर्म की पीड़ा को ढोते हैं, पर वे अहंकार को छोड़ एक दूसरे से क्षमा माँगने को तैयार नहीं होते।

हो सकता है कि आपके पारिवारिक रिशते ऐसी ही समस्याओं से निकल रहे हों। आपके परिवार में सुख के सिवाए सब कुछ हो। ऐसे ‘सब कुछ’ के होने का क्या अर्थ रह जाता है? कभी-कभी तो कोई भी अपना नहीं लगता। लगता है कि सब मतलब से ही साथ लगे हैं। मन में बहुत सूनेपन और उदासी का एहसास पनपता है और अपनों से भी विश्वास खिसक जाता है। आदमी चिंताओं से घिरा चिता तक चला जाता है। वह लगतार जीवन में पतझड़ को ही जीता है। मनचाही होती नहीं, बस अनचाही घटती है। बात-बात में विफलता, निराशा और खिसियाहट ही मिलती है। ऐसे में मौत माँगती ज़िन्दगियों की कमी नहीं जो आत्महत्या कर लेना चाहती हैं, या फिर सब कुछ छोड़कर कहीं भाग जाना चाहती हैं। लेकिन चाहे परिवार छोड़ दो, पत्नि छोड़ दो, रिशते छोड़ दो, सब कर लो; फिर भी चैन नहीं मिल पाएगा। यह सच है कि गधा कभी आदमी नहीं बनेगा, पर आदमी रोज़ गधा बनकर जीता है। इतने कामों के बोझ में दबीं, सड़कों की भीड़ में मरती-खपती ये बेचैन ज़िन्दगियां, सुकून कैसे और कहाँ पाएंगी? ऐसे जीवन से थके हुए लोगों से प्रभु कहता है, “हे थके और बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें चैन दूँगा (मत्ती ११:२८)।” वह धर्म देने की बात नहीं करता।

शायद आप बहुत जलदी गुस्सा खाने वाले व्यक्ति हैं। एक नंगी नागफनी सा स्वभाव है, जिसे कोई छू कर तो देखे। यह गुस्सा आपके अन्दर की कहानी कहता है कि आप अन्दर से कितने कमज़ोर हैं, आप में काबू रखने की ताकत नहीं है। जब आदमी अपशब्द या गाली बकते हैं तब सन्देश देते हैं कि वे अपने पर से नियंत्रण खो चुके हैं। शायद दुखों ने दीमक की तरह आपके जीवन को खोखला बना दिया हो। इस साल आपके स्वासथ्य नें आपका साथ न दिया हो, रोज़गार गड़बड़ा गया हो या फिर आपके प्रीय जनों में से कोई आपके साथ न रहा हो। जब तक आप यहाँ हैं तब तक परेशानियों और मुश्किलों का अन्त नहीं है। अभी तो बहुत सारी अनहोनी होनीं बाकी हैं। लेकिन परमेश्वर आपके दिल की टीसती परेशानियों को बहुत पास से पहिचानता है, उनसे आपको आराम भी देना चाहता है।

हम कितनी ही परतों और परदों के पीछे अपने अन्दर के असली आदमी को छिपाए रहते हैं, पर परमेश्वर तो हमें अन्दर तक जानता है। वह जानता है कि हम सबने पाप किए हैं और यही पाप हमारी सारी बेचैनी व परेशानी के कारण हैं। बुराई से भरा मन बुराई उगलेगा और बुराई झेलेगा। आपको एक बदलाव की ज़रूरत है, बुराई और पाप से भरे मन को बदलने की ज़रूरत है, जीवन बदलने की ज़रूरत है, धर्म बदलने की नहीं। शायद आप पर यह परम सत्य उजागर नहीं हुआ कि प्रभु यीशु ही परमेश्वर है। जैसे सूर्य एक है और वह सबको एक सा प्रकाश देता है, वैसे ही प्रभु यीशु भी एकमात्र परमेश्वर है। प्रभु यीशु ने कहा, “मैं जगत की ज्योति हूँ (यूहन्ना ८:१२)।” यह ज्योति हमारे अन्दर की असली हालत को उजागर करती है। पाप का अन्धकार कितना ही गहरा और पुराना क्यों न हो, ज्योति के सम्मुख ठहर नहीं पाता। आपकी ज़िन्दगी चाहे कितने अन्धेरों से क्यों न गुज़री हो, ज्योति को स्वीकारते ही सारे अन्धेरे दूर हो जाते हैं। जब ज्योति मन में आती है तो पाप का अन्धेरा फिर ठहर नहीं पाता।

यह बात सच और मानने के लायक है, क्योंकि पवित्रशास्त्र कहता है कि यीशु पापों की क्षमा देने के लिए ही आया है। सब पापों की सम्पूर्ण क्षमा देने की क्षमता प्रभु यीशु में ही है। जैसे ही आप पाप से क्षमा पाएंगे, वैसे ही पाप की सज़ा से भी मुक्त हो जाएंगे। जब तक आदमी अपने पाप से जुड़ा है तब तक वह बेचैनी से, परेशानी से और अपने विनाश से से जुड़ा है। जब तक जीवन में दोष होगा, तब तक कभी सन्तोष नहीं होगा। आदमी रोष से, विरोध और बेचैनी से भरा रहेगा। पैसे से, शक्ति से भले ही हम गिरजे, मस्जिद, और मन्दिर बनवा सकते हैं,पर भले और प्यार करने वाले लोग कभी भी पैदा नहीं कर सकते। टैक्नोलोजी जीवन में सुविधाएं तो पैदा कर सकती है, अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरी भी दे सकती है, पर अच्छी ज़िन्दगी कदापि नहीं दे पाएगी। क्या किसी ने कभी सिर्फ यश, पद और पैसा पाकर शान्ति और सन्तोष पाया है?

डर हर इन्सान के जीवन में हमेशा रहता है। कुछ हो जाने का डर, मन की छिपी बात खुल जाने का डर, हर हाल में हार जाने का डर, जीने में भी मर जाने का डर। कहा जाता है कि एक राजा था। जब उसकी उम्र मौत के निकट सरकने लगी तब उसे मौत का डर सताने लगा। मौत से बचने के लिए उसने एक ज़बरदस्त सुरक्षित महल बनवाया जहाँ चिड़िया भी पर नहीं मार सकती थी। जब राजा बाहर से उस महल का निरीक्षण कर रहा था, तो सड़क पर खड़ा एक फकीर राजा को देखकर हंस रहा था। राजा ने उसे बुलवाया और पूछा कि वह क्यों हंस रहा है, फकीर बोला, “जिस मौत के डर से तू ने यह महल बनवाया है, वह मौत तो बड़े आराम से अन्दर पहुँच कर तुझे मार जाएगी”। हो सकता है आप मौत के वार से कई बार बच निकले हों, पर ऐसा नहीं कि हर बार मौत का वार खाली ही जाएगा। मौत एक सच्चाई है और आपको उसका सामना करना ही है। मौत के बाद क्या होगा, यह एक सवालिया चिन्ह नहीं सवालिया मीनार है। मौत के बाद भी एक भविष्य है। परमेश्वर का परम सत्य वचन कहता है “मनुष्य का एक बार मरना फिर न्याय का होना नियुक्त है (इब्रानियों ९:२७)।” आखिर बचकर कहाँ भागोगे? सब छिपे और खुले पापों का हिसाब होगा। मौत ही भयानकता नहीं, बलकि पापों के साथ मौत में जाने वालों के लिए असली भयानकता तो मौत के बाद है!

प्रभु यीशु के बारे में हमारे दिमागों में पुरानी परतें चढ़ी हुई हैं। हर बार यीशु का नाम लेते ही इसाई धर्म, विदेशी धर्म, धर्म परिवर्तन इत्यादि विचार उछल कर सामने आते हैं। यीशु प्रभु आपका धर्म नहीं आपका जीवन बदलता है। ‘धर्म’ के डर को मत पकड़े रहिए, अन्यथा जीवन भर डर में ही जीएंगे, डर में ही मरेंगे और अन्त में एक डरावनी जगह ही पहुँचेंगे। प्रभु यीशु कहता है “मत डर, मैं तुझे...बनाऊंगा (मत्ती ४:१९)।” पापों की क्षमा मांगने में क्या बुराई है? क्षमा मांगने में डर क्यों लगता है? यह डर हमें कुछ करने नहीं देगा। बस आप सच्चे मन से एक प्रार्थना “प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा करें” जहाँ भी, जैसे भी हों कर के देखें। क्या आप कभी अकेले में अपने आप से मिले हैं? क्या आपने अपने अन्दर की यात्रा की है? क्या आपने अपने अन्दर का हिसाब-किताब देखा है? क्या आपने अपने विवेक का कभी सामना किया है? करके देखिए, आप पाएंगे कि हमारा विवेक हमें और हमारे मन को अपनी अदालत में खड़ा करके दिखाता है कि मन कितनी गन्दगी से, जलन से, बदले की भवना से और विरोध से भरा है। वह दिखाता है कि हम कैसे झूठे, मक्कार और धोखेबाज़ हैं। हमने कितने गन्दे काम छिप-छिप कर किये हैं, कितनी रिश्वत दी और ली है, कैसा व्यभिचार और दोगलापन हमारे अन्दर भरा है। कितनी निराशा और बेचैनी अन्दर भरी है। आप बहाने बना सकते हैं- कुछ नहीं होता इतना तो चलता है, सभी तो करते हैं ये तो दुनिया का दस्तूर है, इनके बिना काम कैसे चलेगा इत्यादि-इत्यादि। आप खतरे से खेल रहे हैं, अपने आप से झूठ बोलना सब से खतरनाक बात है। जब प्रभु यीशु ने आपके आगे क्षमा रखी है, आशीष और आनंद रखा है तो फिर क्यों श्राप और बेचैनी से बंधे खड़े हैं? सिर्फ एक प्रार्थना से सारे श्राप आशीष में बदल डालिए। एक बार पुकार कर तो देखिए “हे प्रभु यीशु मुझ पर दया कर।”

प्रभु करे कि आपका मन इस लेख के शेष भाग के अर्थों को गम्भीरता से ग्रहण कर सके। हमारे अन्दर ‘क्या’ और ‘क्यूँ’ हैं जो हमें बहुत परेशान करते हैं। “ये सब क्या है?” “अब क्या होगा?” “ऐसा क्यूँ हो रहा है?” “मेरा क्या होगा?” यह सब बातें आदमी के स्वभाव का एक हिस्सा हैं। अक्सर हमारा जीवन ऐसे ही सवालों से घिरा रहता है, और सवालों के उत्तर ढूँढने में ही असली काम के मौके हाथ से निकल जाते हैं। प्रभु यीशु के द्वारा पापों कि क्षमा की बात सुनते ही लोग ऐसे ही ‘क्या’ और ‘क्यूँ’ के सवालों में उलझना-उल्झाना शुरू कर देते हैं। उनका ध्यान अपने पापों की ओर नहीं जाता, तर्क और बहानों की ओर जाता है। साल के शुरू में दो जन आपस में बात कर रहे थे। एक बोला “यार, बहुत समय लग चुका है, कैसे भी करके इस साल तो इस काम को निपटा ही दूँगा”। विडंबना देखिए, साल निपटने से पहले, यार निपट गया। कैलेन्डर के पन्नों पर फैला यह साल भी फड़फड़ाता हुआ फुर्र से उड़ जाएगा। हम बीते सालों के साथ इस साल को भी दफन कर जाएंगे। एक मौका हर साल के साथ हमारे पास से चला जाता है। हर बात का एक समय होता है, फिर समय समाप्त हो जाता है। कुछ समय पहले आपने यह लेख पढ़ना शुरू किया था, कुछ समय में यह लेख समाप्त हो जाएगा। हर इन्सान को समय की सीमा में जीना है, अचानक ही उसके जीवन का समय समाप्त हो जाएगा और संसार से उसकी विदाई हो जाएगी।

हम आने वाले दिनों में क्या देखने वाले हैं? आने वाले कल की सच्चाई को आप बाईबल के पन्नों में आज ही पढ़ सकते हैं। बाईबल किसी धर्म विशेष का धर्मशास्त्र नहीं है बलकि यह पवित्रशास्त्र है जो सब के लिए है। ६००० साल का इतिहास गवाह है कि अनेक कोशिशों के बावजूद, बाईबल की एक बात भी कभी झूठी साबित नहीं हुई है। इस पवित्रशास्त्र के अनुसार, आने वाला समय बहुत क्रूर और डरावना होगा, दिल हिला देने वाली खबरों से भरा होगा। अभी अफगानिस्तान में हुए यद्ध के घाव भरे भी नहीं थे कि इराक में भीषण युद्ध की आग भड़क उठी है। शायद अगली बार मैं और आप इसके शिकार हों; तब पल भर में हमारे घर खंडरों में बदल जाएंगे, हमारी आँखों के सामने हमारे बच्चे बिलख-बिलख कर दम तोड़ रहे होंगे, हर तरफ तबाही होगी, हम चिल्लाएंगे पर कोई सुनने वाला नहीं होगा। एक कहर से उभर नहीं पाएंगे कि दूसरा आ पड़ेगा। आने वाली घटनाओं को देखकर लोगों के जी में जी नहीं रहेगा। आप और हम ऐसे हालात से बहुत दूर नहीं हैं। कैसे इतना सब बरदाश्त करेंगे? भयानक और लाइलाज बिमारियाँ इंतिज़ार कर रहीं हैं, इतनी दर्दनाक तकलीफें आने वाली हैं कि मारे दर्द के “लोग अपनी ज़बान चबा डालेंगे” (प्रकाशितवाक्य १६:१०)। वे मौत माँगेंगे लेकिन मौत उनसे भागेगी (प्रकाशितवाक्य ९:६)। हम विनाश के सालों में जी रहे हैं। बस इंतिज़ार कीजिए एक और भयानक खबर का। आदमी की आखिरी बरबादी शुरू हो चुकी है। ख़तरे गहरा रहें हैं, और यह ख़तरे हमसे बहुत दूर नहीं हैं। यह चेतावनी मात्र नहीं है, यह एक निश्चित भविश्य है जो भोगना है। पवित्रशास्त्र कहता है “आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे पर मेरी बातें नहीं टलेंगी” (मत्ती २४:३५)। “उन्होंने कुशल के मार्ग को नहीं जाना” (रोमियों ३:१८)। “कोई धर्मी नहीं” (रोमियों ३:१०)। “सबने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं” (रोमियों ३:२३)। “परमेश्वर चाहता है कि सब मनुष्यों का उद्धार हो” (१ तिमुथियुस २:४) चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या वर्ग के क्यों न हों। प्रभु यीशु कहता है “मैं चाहता हूँ तू शुद्ध हो जा” (मरकुस १:४१)। प्रभु फिर कहता है “कितनी ही बार मैंने चाहा...पर तुमने न चाहा” (मत्ती २३:३७)। कोई व्यक्ति निर्दोष कैसे हो सकता है? यदि उस दोषी व्यक्ति के दोष क्षमा हो जाएं, तो वह निर्दोष भी हो जाएगा और फिर दोष के दंड से मुक्त भी हो जाएगा। “तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र (अर्थात प्रभु यीशु) को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है” (मरकुस २:१०)। “अब जो मसीह यीशु में हैं उनपर दंड की आज्ञा नहीं” (रोमियों ८:१)।

पवित्रशास्त्र की सच्चाई से ज़्यादातर लोग अन्धेरे में हैं। पवित्रशास्त्र की पहली और सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि प्रभु यीशु पापों की क्षमा देने के लिए आया। उसने क्रूस पर अपने प्राण हमारे पापों की क्षमा के लिए दिए। वह मर कर तीसरे दिन जी उठा। उसका क्रूस पर बहा लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है। यदि हम इस बात पर विश्वास करें और एक प्रार्थना करें “हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया कर” तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है (१ यूहन्ना १:९)। बाढ़, अकाल, सूखा, बेरो़ज़गारी, भूकम्प, आतंकवाद और युद्ध, किसी में कोई कमी नहीं बची है, सब बढ़ते ही जा रहे हैं। रही-सही कमी मज़हबी दंगों ने पूरी कर डाली है। आदमी का मन क्रोध, जलन, बैर, अहंकार और अशान्ति से भरा है, तभी तो हमारे घर और समाज और देश कलह, झगड़ों और परेशानियों से भरे हैं।

कहीं यह कहानी आपकी और आपके घर की तो नहीं? कहीं आप अपने बारे में तो नहीं पढ़ रहे हैं? कहीं ये बातें आपको कुरेद तो नहीं रहीं हैं? कहीं आपका विवेक आपको कुछ याद तो नहीं दिला रहा है? कहीं आपका अहंकार आपको अपने पाप स्वीकारने से रोक तो नहीं रहा है? कहीं किसी व्यक्ति के द्वारा मन में बैठाया कोई झूठा तर्क या डर आपको पाप क्षमा मांगने से तो नहीं पलट रहा है? यदि हाँ तो स्मरण रखिए , आपको किसी नए धर्म की कोई आवश्यकता नहीं है, सिर्फ पापों की क्षमा की आवश्यक्ता है। अपने पाप और उसके भयानक अंजाम को हमेशा के लिए विदाई देने को आपको केवल एक छोटी प्रार्थना सच्चे दिल से करनी है “ हे यीशु मुझ पापी पर दया कर, मेरे पाप क्षमा कर।” इस क्षमा को प्रभु यीशु से लेने का फैसला भी आप ही को करना है और न लेने का अंजाम भी आप ही को भुगतना है।

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