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गुरुवार, 21 मई 2009

सम्पर्क अक्टूबर २००३: मैंने प्रभु यीशु को कैसे जाना

मेरा नाम अनुरोध सक्सैना है। मेरा जन्म लखनऊ में और पालन पोषण उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले में हुआ। परिवार में किये जाने वाले सभी रीति-रिवाज़ों को देखकर मैंने भी उन्हें अपनाया। नौवीं कक्षा से मैंने घर के पास स्थित एक प्रसिद्ध मन्दिर में अपने एक अच्छे मित्र के साथ, जो उस मन्दिर में जाता था, जाना शुरू किया और लगातार तीन साल तक जाता रहा। मन्दिर जाने का उद्देश्य अच्छे अंक प्राप्त करना और विवेक शुद्ध रखना था। अपनी पढ़ाई की मेज़ पर भी मैं ईश्वर की मूर्ति के सामने धूप जलाता था। लेकिन यह सब करने के बाद भी मुझ में इन सब बातों के लिए न तो कभी कोई लगन हुई और न ही कोई परिवर्तन आया।

अपनी बारहवीं कक्षा पास करने के बाद मैंने रूड़की विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास की, जिसके द्वारा मुझे रूड़की विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया और मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने रूड़की आ गया। बहुत शीघ्र ही मैं हास्टल की ज़िन्दगी और वहाँ की स्वतंत्रता का मज़ा लेने लगा। साथ ही मैंने एक मन्दिर भी ढूँढ लिया और मैं अक्सर वहाँ जाने लगा।

एक दिन एक व्यक्ति ने मुझे विश्वविद्यालय में होने वाली एक प्रार्थना सभा में, जिसमें वहीं के कुछ छात्र आते थे, आमंत्रित किया। वहाँ पारमेश्वर के वचन का अद्धयन भी होता था। सभा के बाद एक भाई ने मुझे नए नियम की एक प्रति दी और फिर से अगली सभा में आने के लिए भी आमंत्रित किया। इस तरह मैं बार-बार वहाँ जाने लगा। कुछ ही समय के छोटे से अन्तराल में मुझे यह एहसास हो गया कि परमेश्वर और उसका वचन बहुत पवित्र हैं और उसकी दृष्टी में एक छोटा सा ग़लत विचार भी पाप के बराबर है।

अब मैं इससे पूरी तरह सहमत था कि केवल यही परमेश्वर ‘परमेश्वर’ कहलाने के योग्य है। इससे पहले मेरी धारणा यह थी कि प्रभु यीशु इसाई धर्म का ईश्वर है। लेकिन अब मुझे समझ में आया कि प्रभु यीशु की वास्तविक्ता क्या है और वह इस संसार में क्यों आए। मुझे यह निश्चय भी हो गया कि यह बात बिल्कुल सत्य है कि प्रभु यीशु ने क्रूस पर इस जगत के पापियों के लिए अपनी जान दी और वह मर कर फिर तीसरे दिन जी उठे। उन्होंने अपना बहुमूल्य लहू हमें शुद्ध करने के लिए बहाया। यदि हम उन्हें अपने हृदय में ग्रहण करते हैं तो हम पापों से क्षमा और अनन्त जीवन पाते हैं।

यह सुसमाचार सुनने के बाद मैंने कई बहानों में छिपना शुरू कर दिया जो मैं ईमान्दारी से आपके सामने प्रभु की महिमा के लिए रखना चाहता हूँ।

१. यदि मैंने प्रभु यीशु के पीछे चलने क निर्णय कर लिया तो मुझे बहुत उदास रहना पड़ेगा। मैं सोचता था कि यदि मैं विश्वासी बन गया तो मुझे लम्बा और दुखी चेहरा लेकर इस संसार में घूमना पड़ेगा। मुझे बस सीधे मूँह चलना पड़ेगा, न तो मैं दाएं देख सकूँगा और न बाएं। मेरे पास कोई खुशी नहीं होगी जब तक मैं दूसरे संसार में न पहुँच जाऊं। दूसरे शब्दों में यूँ कहिए कि मुझे दुखी, खिन्न और उदासी से भरा जीवन जीना पड़ेगा। न तो मैं सिनेमा देखने जा पाऊंगा और न ही कोई सांसारिक आनंद ले पाऊँगा।
लेकिन नहीं प्रिय पाठक मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि केवल प्रभु यीशु ही है जो हमारे जीवन में सच्ची खुशी, शान्ति और आनंद देता है। वह ‘शान्ति का राज्कुमार’ है (यशायह ९:६), परन्तु कठिन तो पापी का मार्ग होता है (नीतिवचन १३:१५)।

२. मैं सोचता था कि यदि मैंने यह निर्णय कर लिया तो मैं विश्वास में नहीं रह सकूँगा और निश्चय ही गिर जाऊंगा, क्योंकि मैं उस स्तर पर चल नहीं पाऊंगा।
लेकिन नहीं प्रिय पाठक, मैं आपको बताना चाहता हूँ यह सत्य नहीं है। जब्कि मैं अभी भी कमज़ोर हूँ और बहुत सी गलतियां कर जाता हूँ लेकिन प्रभु यीशु हमें कभी नहीं छोड़ता, कभी नहीं त्यागता। हम सब उसकी भेड़ें हैं और वह हमारा सच्चा चरवाहा है, जिसने हमारे लिए अपने प्राणों को दे दिया, वही हमारी रक्षा और अगुवाई करता है। वह हमारे लिए सदा जीवित है। हमारी निर्बलताओं और अज्ञानता में प्रभु यीशु ही हमारे प्रति सबसे अधिक धैर्य रख सकता है और रखता भी है; ताकि हमें अपने पाप के अंगीकार, उस पाप से पश्चाताप और उसकी क्षमा का अवसर सदैव उपलब्ध रहे। आप तभी खड़े रह पाएंगे जब परमेश्वर आपके साथ खड़ा होगा।

३. मैंने यह सोचा कि मैं इस निर्णय को कुछ समय के लिए टाल देता हूँ और इसके बारे में बाद में सोचूँगा, अभी तो मेरे पास बहुत पढ़ाई और काम है।
लेकिन नहीं प्रिय पाठक, प्रभु हमारे प्रति बहुत अनुग्रहकारी है लेकिन कोई यह नहीं जानता कि मृत्यु कब आकर इस अव्सर को छीन लेगी “मनुष्यों के लिए एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है (इब्रानियों ९:२७)।” क्या आप उस आग की झील में अनन्त काल के लिए अपने जाने का ख़तरा मोल ले सकते हैं?

४. मैं यह सोचता था कि परमेश्वर की सेवा करना बहुत कठिन है।
लेकिन नहीं! यह मेरी ग़लतफहमी थी। मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या परमेश्वर किसी का कर्ज़दार रह सकता है? क्या शैतान एक सरल स्वामी, और परमेश्वर एक कठिन स्वामी है? प्रभु इन विचारों को दूर रखे।

५. मैंने परमेश्वर के वचन को पढ़ने के लिए बहाना किया। मैंने सोचा कि यदि मैं एक ही बार में परमेश्वर के वचन को पढ़कर इसे समझ जाऊंगा तो ठीक है।
लेकिन नहीं! सूर्य के नीचे और पृथ्वी पर बाईबल के समान कोई भी पुस्तक नहीं है। प्रिय पाठक मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कोई भी व्यक्ति जिसने परमेश्वर के वचन को शुरू से अन्त तक पढ़ा है, उसके बारे में ग़लत धारणा नहीं रख सकता। जब तक मैं स्वयं पूरी तरह ध्यान से पढ़ न लूँ, मैं कैसे अपनी राय उसके बारे में दूसरों पर प्रकट कर सकता हूँ? ऐसा करना तो झूठ बोलना होगा।

इन बहानों के साथ-साथ मेरे पाप भी बहुत थे और मुझे बहुत मुश्किल समय में से होकर गुज़रना पड़ा। फिर एक दिन, मैंने उपवास रखकर अपने पापों से पश्चाताप किया और प्रभु से प्रार्थना की कि मुझे अपने बहुमूल्य लहू से धो दे, और उसने मुझे निराश नहीं किया।

प्रिय पाठक, मैंने अपना हृदय खोलकर, अपने अन्दर के वो सब बहाने जो मुझे पश्चाताप करके प्रभु यीशु को अपना मुक्तिदाता ग्रहण करने से रोकते थे बता दिए हैं। इसलिए यदि आप में से कोई भी अपने आप को ऐसे ही किसी बहाने के पीछे छिपाए हुए है तो मेरा आप से बहुत विनम्र निवेदन है कि आप विलम्ब न करें। परमेश्वर का वचन कहता है-“देखो अभी वह उद्धार का दिन है (२ कुरिन्थियों ६:२)”। आप बहानों से छुटकारा नहीं पा सकते। जैसे मैंने इतना समय व्यर्थ बरबाद कर दिया, आप न करें।

मैं सुसमाचार के बारे में जनता था, जैसे आप में से बहुत सारे पाठक भी जानते होंगे; लेकिन सिर्फ जानना ही काफी नहीं है। परमेश्वर के वचन में लिखा है कि, “तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा (यूहन्ना ८:३२)।” यह नहीं लिखा कि सत्य के बारे में जानोगे, परन्तु यह कि सत्य को जानोगे तब स्वतंत्रता मिलेगी। “परमेश्वर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है (प्रेरितों के काम १७:३०)।” अपने दुष्ट कार्यों को त्याग कर उस क्रोध से भागो, ऐसा न हो कि तुम भी “बाहरी अन्धकार में डाले जाओ जहाँ रोना और दातों का पीसना होगा (मत्ती २५:३०)।”

प्रभु के अनुग्रह से मेरा विवाह एक विश्वासी लड़की से होने वाला है और मैं नौकरी भी कर रहा हूँ। मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है कि जो भी इस गवाही को पढ़ते हैं, वो प्रभु यीशु को ग्रहण करने के लिए एक निर्णय भी ले सकें, जो पापियों का मित्र है। उसको ग्रहण करने में विलम्ब न करें।




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