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मंगलवार, 26 मई 2009

सम्पर्क अप्रैल २००३: मैं अकेला नहीं

मेरा नाम सतीश है और मैं मेरठ का रहने वाला हूँ। अपने परिवार में मैं अकेला ही लड़का था। जब मैं पाँच वर्ष क था तब मेरी माँ चल बसी। उसके बाद पिताजी ने दूसरी शादी करी जिससे उनके दो बच्चे और हुए। कुछ समय तो ठीक-ठाक चला, फिर माँ और पिताजी के बीच काफी झगड़े होने लगे। उसी दौरान हमारे मकान में एक किराएदार दम्पति रहने लगे। उनके पास भी कोई सन्तान नहीं थी। कुछ समय बाद वह किराएदार चल बसा; और माँ-पिताजी के बीच झगड़े इतने बढ़े कि माँ अपने मायके चली गयी। किराएदार के मरने के बाद पिताजी ने उसकी पत्नि के साथ सम्बंध बढ़ाने शुरू कर दिये और बात शादी तक आ गयी। जब माँ को पता चल तो वह अपने परिवार के साथ आई और मार-पीट तक हुई। सबने पिताजी को समझाया, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं मानी और तीसरी शादी भी कर ली। कुछ समय बाद पिताजी का भी देहाँत हो गया। अब यह जो तीसरी माँ थी, घर का जो भी कीमती सामान था, सब बेचकर अपने घर चली गयी।

अब, १५ वर्ष की उम्र में, मैं अकेला रह गया। क्योंकि मुझे कोई कहने-समझाने वाला नहीं था, मेरी संगति बुरे लड़कों से होने लगी। लड़ाई-झगड़ा करना, शराब पीना, जुआ खेलना, चोरी करना- यह सब आदतें मुझे लड़कपन से ही लग गयीं और बढ़ती गयीं। मेरी बूआ को मुझ पर तरस आया और वह मुझे अपने गाँव ले गयीं। वहाँ भी मेरे अन्दर कोई सुधार नहीं आया। तब परिवार में यह फैसला हुआ कि मेरी शादी कर दी जाए, और १६ वर्ष की उम्र में ही मेरी शादी हो गयी। मेरे भी दो बच्चे, एक लड़का और एक लड़की पैदा हुए, लेकिन मेरी बुरी आदतों के कारण मेरी पत्नि अपने घर चली गयी। मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि अब कोई रोक-टोक नहीं थी। मैं मौज मस्ती करता और सोचता था कि अगर वह नहीं आएगी तो और बहुत सी हैं। इस तरह मैं भी अपने बाप के नक्श-ए-कदम पर चलने में लगा हुआ था। हुआ यही कि पत्नि के घर वालों ने एक साल इन्तज़ार करके, उसकी शादी दूसरी जगह कर दी। समय बीतता गया, मैंने दूसरी शादी कर ली, फिर तीसरी शादी भी कर डाली।

बुरे कामों के कारण मुझे १९८९ में जेल भी जाना पड़ा। क्योंकि मुझ पर आतंक्वाद का केस लगा था, इसलिए मुझे कुछ निश्चित नहीं था कि मैं जेल से कब निकलूँगा, ५ साल में या १० साल में, या निकलूँगा भी कि नहीं। यही सोच कर मैंने अपनी पत्नि से कहा कि मेरा कोई भरोसा नहीं, मेरी मानो तो तुम दूसरी शादी कर लो। उसने कहा, चाहे कुछ भी हो मैं इन्तज़ार करूँगी, और इस तरह उसने मेरा पूरा साथ दिया। मेरे जेल जाने से मेरे कुछ रिशतेदार बहुत परेशान थे, वहीं कुछ खुश भी थे कि अब तो यह जेल में ही मर जाएगा क्योंकि ज़्यादा शराब और सिग्रेट के सेवन से मेरे फेफड़े खराब हो चुके थे। जेल में मैं कई देवताओं की पूजा-अर्चना बड़ी लगन से करने लगा। ३४महीने बाद मैं जेल से बाहर आया। अब बुरा ही करने की कई योजनाएं मेरे अन्दर थीं। परन्तु मेरी पत्नि ने मुझे समझाया और मुझे मेरी लड़की की कसम दी। तब हम गाँव छोड़कर दिल्ली चले गये। वहाँ एक फैकट्री में मुझे काम मिल गया लेकिन अपने क्रोध के कारण मैं वहाँ भी रह नहीं पाया। तब मैं मेरठ अपने गाँव वापस आ गया। यहाँ भी अपने क्रोधी स्वभाव के कारण मैं कहीं भी किसी काम में टिक नहीं पाया। जो भी मैंने थोड़ा बहुत कमाया था, वह सब दो साल तक खाली बैठकर खर्च कर डाला, बल्कि ऊपर से और कर्ज़ भी हो गया। अब मैं बहुत परेशान था कि क्या करूँ?

तभी एक भाई मेरे पास आया और कहने लगा, “क्या तुम रूड़की में होने वाली एक सभा में चलोगे?” मैंने कहा, “तुम मेरी हालत जानते हो, मेरे पास किराया-भाड़ा कुछ भी नहीं है।” उसने कहा, “किराए की चिंता मत करो, सब प्रबंध हो जाएगा, बस तुम चलो।” ३१ दिसम्बर की सुबह वह भाई मेरे पास फिर आया और बोला कि अपने परिवार को भी साथ ले चलो। मैंने सोचा कि चलो, वहाँ रोटी तो मिल ही जाएगी।

सभा शुरू हुई, और परमेश्वर के वचन यूहन्ना ५:२ ने मुझ से बात की, जिसमें एक कहानी थी कि एक कुण्ड था, उसके पास बहुत से बीमार इस आशा में पड़े थे कि कब उस कुण्ड का पानी स्वर्गदूत के द्वारा हिलाया जाए। पानी हिलते ही जो कुण्ड में पहिले उतरता, उसकी चाहे जो बीमारी क्यों न हो वह चंगा हो जाता था। वहाँ एक मनुष्य था जो ३८ वर्ष से इस उम्मीद में था कि पानी हिलने पर कोई उसे भी उस कुण्ड में उतार दे, लेकिन किसी को उस पर तरस नहीं आया। प्रभु यीशु को उस पर तरस आया और प्रभु ने उससे पूछा, “क्या तू चंगा होना चाहता है?” उसने कहा हाँ; तब यीशु ने कहा, “अपनी खाट उठा कर चल फिर।” उसी समय वह बीमार चंगा हो गया। मुझे लगा कि यह सब बातें तो मेरे जीवन में हैं; क्योंकि मेरे जीवन में तो पाप ही पाप था जो एक तरह से बीमारी ही थी। संदेश के अंत में प्रचारक ने निमंत्रण दिया कि जो कोई प्रभु यीशु के सामने अपने पाप मानना चाहता है वह अपना हाथ दिखा दे। मैंने तुरंत अपना हाथ ऊपर कर दिया। भाई ने प्रार्थना की और प्रभु ने उसी समय मेरे पाप क्षमा कर दिए। उस समय पाप क्षमा होने का वह अदभुत अनुभव मुझे आज तक है। फिर उसी समय एक भाई से मुलाकात हुई और उस भाई ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। यह सब देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गये। फिर एक भाई की गवाही सुनी। सब कुछ अलग था, इससे पहिले मैंने ऐसा कहीं नहीं देखा था। मुझे बहुत अच्छा लगा और उसी समय मैंने फैसला किया कि मैं इन लोगों के साथ ही रहूँगा। फिर जहाँ भी प्रभु की प्रार्थना सभा होती मैं वहीं जाने लगा।

कुछ दिनों बाद प्रभु की दया हुई और मेरी सिलाई की दुकान भी खुल गयी और सबसे अच्छी बात यह हुई कि संगति हमारे घर पर ही होने लगी; जो प्रभु की दया से आज तक बनी है। मेरे घर में प्रभु ने शांति, आनंद और आशिष दी। अब मैं और मेरा परिवार आनंद से रह रहे हैं, लेकिन कभी-कभी घर में क्रोध आ जाता है और गवाही को खराब करता है। इसलिए मेरे और मेरे परिवार के लिए प्रार्थना कीजिए। अब अंत में मैं यह कहना चाहता हूँ कि जो मैंने अब तक अनुभव किया है, मेरे और हर एक विश्वासी के जीवन के लिए ज़रूरी है कि - संगति में बने रहें, रविवार की आराधना में अवश्य सम्मिलित हों, प्रभु के भय में रहें और प्रभु की गवाही भी दें।

5 टिप्‍पणियां:

  1. नये जीवन के लिए शुभकामना।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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    1. parmeswar yahowa pawitar aatma yeshu masih pita aap ko bouhat ashis de prabhu ka dhnywad ki prabhu ne aap ko chuna.

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    2. parmeswar yahowa pawitar aatma yeshu masih pita aap ko bouhat ashis de prabhu ka dhnywad ki prabhu ne aap ko chuna.

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  2. जैसे ईश्वर की आप पर कृपा हुई वैसे सब पर हो ।

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  3. Aap or hum sada parmeswar k ghar par rhenge ye vayda jaroor poora hoga.

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