सूचना: ई-मेल के द्वारा ब्लोग्स के लेख प्राप्त करने की सुविधा ब्लोगर द्वारा जुलाई महीने से समाप्त कर दी जाएगी. इसलिए यदि आप ने इस ब्लॉग के लेखों को स्वचालित रीति से ई-मेल द्वारा प्राप्त करने की सुविधा में अपना ई-मेल पता डाला हुआ है, तो आप इन लेखों अब सीधे इस वेब-साईट के द्वारा ही देखने और पढ़ने पाएँगे.

गुरुवार, 21 मई 2009

सम्पर्क अक्टूबर २००३: मुझे मिल गया मेरा छुड़ाने वाला

मेरा नाम दीपक मसीह है और मेरा जन्म १९६९ में एक इसाई परिवार में हुआ। हम छः भाई हैं। जब मैं चार साल का था तब मेरे पिताजी का देहांत हो गया था। परिवार बड़ा और ग़रीब होने के कारण सब भाई छोटा मोटा काम करने लगे। मेरी मां भी एक मिशन स्कूल में आया का काम करती थी, इसलिए मुझे भी उस स्कूल में दाखिला मिल गया। घर के सब सदस्य काम करते थे, और कोई मुझे पूछने वाला न होने के कारण मैं छोटी ही उम्र में बिगड़ गया। छोटी कक्षा से ही मैंने स्कूल से भागकर सिनेमा देखना सीख लिया। इसी दौरान सिनेमा के बाहर खाने-पीने की दुकान लगाने वाले से मेरी दोस्ती हो गई। वहीं से मुझे शराब-सिग्रेट पीना, ब्किट ब्लैक करना और अन्य कई बुरी लतें लग गईं। यहीं से मेरा बुरा जीवन शुरू हुआ और बुराई में धंसता ही चला गया।

इसी बीच मेरी मुलाकात एक और लड़के से हुई जो कि मेरी तरह ही था और देखते ही देखते हम दोनों में बहुत गहरी दोस्ती हो गई। हम दोनो साथ रहते और सिनेमा देखते। आए दिन कहीं न कहीं लड़ाई-झगड़ा करना और किसी न किसी के साथ मार-पीट करना, यही हमारी दिनचर्या थी। अब यहां तक होने लगा कि हमारी बदमाशी का फायदा उठाने के लिए लोग हमें अपने लिए इस्तेमाल करने लगे।

एक दिन मैं और मेरा दोस्त ऐसे ही ‘काम’ से अलग-अलग गए। लौटने पर मुझे पता चला कि मेरे दोस्त ने किसी को जान से मार दिया और वह भाग गया है। इसलिए मुझे उसके परिवार को भगाकर, खुद भी भागना पड़ा। इस तरह पुलिस केस बनते चले गए और घर पर पुलिस का आना-जाना शुरू हो गया। मेरा दोस्त पकड़ा गया और उसे जेल हो गई। कुछ समय बाद वह जेल से छूट गया। इसके बाद ऐसी कई और घटनाएं हुईं। उसका परिवार बुरी तरह बरबाद हो गया और उसके पिताजी की उसके दुशमनों ने हत्या कर दी।

अब मैं बहुत बेचैन रहने लगा। पुलिस मेरे पीछे थी और मैं उस से छिपकर जी रहा था। रात को अगर पुलिस की जीप की आवाज़ सुनाई देती तो मेरी आंख खुल जाती। इसलिए मैं अपने घर की छत पर सोता था ताकि भागने में आसानी रहे। कई बार सोचता था कि मैं मरने के बाद नरक में जाऊंगा क्योंकि मेरे काम बुरे हैं। यदि आज मैं इन्हें छोड़ भी दूँ तो भी मेरे पहले पाप मुझे नरक लेकर जाएंगे ही, यदि नहीं छोड़ता तो कभी न कभी मेरे दुशमन मुझे मार डालेंगे। इसी उधेड़-बुन में मैं काफी परेशान रहने लगा। अब मुझे एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो मुझे इन सब परेशानियों से छुटकारा दे सके।

इसी दौरान १९९२ में यू०पी० में नयी-नयी सत्ता में आयी भाजपा सरकार ने छोटे-बड़े सभी बदमाशों को पकड़कर मारना और जेल में डालना शुरू कर दिया। एक दिन किसी कारणवश हमारे यहाँ के एक लड़के को पुलिस ने पकड़ लिया और पूछ-ताछ के दौरान उसने हम सब के घर के पते बता दिये जिसके कारण हमारा एक साथी भी पकड़ा गया। हम फिर से अपनी जान बचा कर भागे। अब हम सब अलग-अलग थे। मैं सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ? मैंने निर्णय लिया कि मैं अपने जीवन को नये सिरे से शुरू करूंगा और मैं यह सब छोड़ दूँगा। लेकिन कुछ समय के बाद जब मैं घर वापस आया तो मेरे साथी भी वापस आ गये और फिर से वही दौर शुरू हो गया। एक दिन हम सब साथी एक व्यायामशाला इकट्ठे होकर में ताश खेल रहे थे, जोकि मेरे घर के करीब ही थी। लेकिन मेरा मन वहां नहीं लग रहा था और मैं कई बार वहां से गया। एक बार मैं दूसरे की छत से होकर अपने घर आया तो क्या देखता हूँ कि हमारे यहां कुछ लोग आये हुए हैं जो प्रभु यीशु के बारे में बता रहे थे। मैं उनको जानता था, उनमें से एक ने मुझसे बैठने के लिए कहा। मैंने कहा बस रहने दो मैं ऐसे ही ठीक हूँ, लेकिन मुझे ढोंगियों से नफरत है। उसने बुरा नहीं माना पर प्यार से कहा, “परखकर देखो परमेश्वर कैसा भला है (भजन संहिता ३४:८)।” जब तक परखकर नहीं देखोगे तो आप उसे जानोगे कैसे? मैंने वहां से जाने के लिए जैसे ही दरवाज़ा खोला तो एक अनजानी सी शक्ती ने मुझे रोक लिया। मैंने अपने मन में कहा कि सुनने में क्या बुराई है, कहीं यह चिपक थोड़ी ही जाएगी। मैं वहां रुक गया। वे क्या प्रचार कर रहे थे मुझे कुछ समझ में नहीं आया। उन्में से एक भाई नेत्रहीन था और वह अपने जीवन के बारे में गवाही देकर बता रहा था कि उसके जीवन को प्रभु यीशु ने कैसे बदल दिया। जब वह बताते हुए रो रहा था तो उसके साथ मैं भी रो रहा था। ऐसी खुशी मुझे इससे पहले कभी महसूस नहीं हुई थी। उस समय मैंने एक निर्णय लिया कि अब मैं इन लोगों के साथ रहूँगा, क्योंकि मैंने उनमें सच्चाई को देखा। उन्होंने मुझे बाईबल के नए नियम की एक प्रति देकर कहा कि इसे पढ़ना और प्रार्थना करके प्रभु को परखकर देखो। रात को सोने से पहले जब मैं उस नये नियम को पढ़ने बैठा तो बिजली चली गयी। मैंने प्रार्थना की तो बिजली आ गयी। यह मेरे लिए किसी आश्चर्यकर्म से कम नहीं था। मैंने प्रार्थना की कि प्रभु मुझे पाँच बजे उठा दीजिए और मैंने देखा कि मेरी आंख पाँच बजे से पहले ही खुल गयी। इससे मेरी खुशी बढ़ती चली गयी। इसके बाद मैंने संगति में जाना शुरू कर दिया और मेरे जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आना शुरू हो गया।

रविवार की आराधना के दिन जब मैं प्रभु के लोगों की संगति में गया तो मेरा दिल खुशी से भरा था। वहाँ मैंने प्रभु-भोज में भी हिस्सा लिया, यह सोच कर कि मैं एक इसाई हूँ। अगले रविवार के दिन प्रभु-भोज के समय रोटी में हिस्सा लेने के बाद मैंने दाख़्ररस लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया ही था कि प्रभु-भोज दे रहे भाई ने कहा कि जो कोई व्यक्ति पाप में है और बीड़ी-सिग्रेट या और कोई नशा करता हो तो कृप्या इसमें भाग न ले। यह सुनकर मैंने अपना बढ़ाया हुआ हाथ तुरंत नीचे कर लिया। सभा के बाद एक भाई और उसकी माँ ने मुझसे पूछ लिया कि मैंने ऐसा क्यों किया? मैंने कहा क्योंकि मैं तम्बाकू खाता हूँ और उसके बगैर मैं रह नहीं सकता। उन्होंने तभी बाईबल में से एक पद मुझे दिखाया जिसमें लिखा था ककि तुम्हारी देह पवित्र आत्मा का मंदिर है, जो इस मंदिर को नाश करेगा, परमेश्वर उसे नाश करेगा - १ कुरिन्थियों ३:१६, १७। उसके बाद मैंने प्रार्थना-उपवास करके प्रभु से मेरी इस कमज़ोरी से छुटकारे के लिए सहायता मांगी और प्रभु की दया से मुझे सब नशे से छुटकारा भी मिल गया।

लेकिन अब भी मुझ से कुछ न कुछ पाप होता ही था। मैं अब भी अपने पाप के स्वभाव से परेशान था। मुझे एक पद- १ युहन्ना १:७ बताया भी गया था, फिर भी मुझ से पाप हो ही जाता था। मैंने एक भाई से इस विषय में बात की। उसने मुझे समझाया और पूछा कि क्या कोई मनुष्य काम शुरू करके उसे अधूरा छोड़ता है? मैंने कहा कि नहीं। तब उसने कहा कि जो काम प्रभु ने तुम्हारे जीवन में शुरू किया है वह उसे पूरा किए बिना तुम्हें कैसे छोड़ सकता है? वह अन्त तक इस काम को तुम्हारे जीवन में पूरा करेगा। उसने मुझे बताया कि पापों की क्षमा के लिए मूँह से प्रभु यीशु का अंगीकार करना ज़रूरी है-रोमियों ९:९,१०। उसी रात को मैंने अपने सारे पापों के लिए प्रभु से क्षमा मांगी और प्रभु ने मुझे पापों की क्षमा का निश्चय भी दिया।

अब मेरे जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया। मैं अब तक कोई काम धंधा नहीं करता था। इस विषय में एक भाई ने मुझे बताया कि प्रभु के वचन में लिखा है कि जो काम न करे वह खाने भी न पाए - २ थिस्सलुनीकियों ३:१०। अतः मैंने फैसला किया कि मैं काम करे बगैर नहीं खाऊंगा। लेकिन मुझे मेरे दुश्मनों का डर भी सताने लगा कि अगर बाहर निकलूँगा तो वे मेरे आड़े आएंगे। इसलिए मैंने बाज़ार से फल लाकर अपनी ही गली में बेचना शुरू कर दिया। इसके बाद मैंने सबज़ी बेचना शुरू कर दिया। जो भी मिलता उसे मैं अपनी गवाही भी देता। लोग आश्चर्य में थे कि इसे क्या हो गया? एक दिन मेरे कुछ दुश्मन मिले और प्रभु ने उनके सामने खड़े होकर मुझे उनसे माफी माँगने की हिम्मत भी दी। मैंने उनसे माफी माँगी तो हुआ यह कि वो हंसकर मुझे छोड़कर चलते बने।

इसके बाद मुझे एक स्कूल में नौकरी भी मिल गयी, लेकिन १५ दिन बाद ही मुझे नौकरी से निकाल भी दिया गया। निकले जाने का कारण था कि मैंने स्कूल में परमेश्वर के वचन का प्रचार किया था। मैं बहुत रोया कि मेरी नौकरी प्रभु के प्रचार की वजह से गयी। एक भाई ने मुझे तसल्ली दी कि प्रभु के सेवकों ने तो अपनी जान तक दे दी, मुझे तो सिर्फ नौकरी ही छोड़नी पड़ी है, यह तो खुशी की बात है। फिर मुझे आई०टी०सी० सिग्रेट फैकट्री में नौकरी मिल गयी। इसी दौरान दिल्ली में पवित्र महासभा होने वाली थी। उस महासभा में नये लोगों के बपतिस्मों की तैयारी हो रही थी। मुझे भी बपतिस्मा लेने के बारे में बताया गया। मैंने कहा मुझे क्या ज़रूरत है क्योंकि मैं तो एक इसाई परिवार से हूँ, सो मैं नहीं लूँगा, मेरा बपतिस्मा तो बचपन में ही हो चुका है। फिर मुझे बताया गया कि यह प्रभु की आज्ञा है। एक रात को जब मैं प्रभु का वचन पढ़ रहा था तो यह पद मेरे सामने आया, “क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये बपतिस्मा न पाएं, जिन्होंने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पाया है? (प्रेरितों के काम १०:४७)” इससे मैं आश्वस्त हो गया और मुझे यह समझ में आ गया कि यह प्रभु की आज्ञा है। अगले दिन बपतिस्में हुए और मैंने भी बपतिस्मा लिया। प्रभु की इस आज्ञा को पूरी करने के द्वारा जो खुशी मुझे उस समय मिली मैं उसे आज तक नहीं भूला। उसी समय मुझे बाईबल में से एक प्रतिज्ञा मिली - यशायाह ४८:६, जिसने मुझे मेरी सेवकाई बता दी, कि मुझे चुप नहीं बैठना है और मुझे प्रभु की सेवा करनी है।

एक दिन किसी भाई ने मुझ से पूछा कि “तुम क्या काम करते हो?” मैंने बताया कि मैं सिग्रेट फैक्ट्री में काम करता हूँ। उसने इस बात से खेद प्रकट किया और कहा कि यह ठीक नहीं है। वह मुझे समझाने लगा कि यदि कोई ताड़ के पेड़ के नीचे बैठकर दूध पीए तो क्या कोई उस पर विश्वास करेगा? बल्कि वह यही कहेगा कि ताड़ी पी रहा है। उसके बाद मैंने वह नौकरी छोड़ दी और घरों में रंग-रोगन करने का काम करने लगा, इसके बाद और भी कई कम बदले।

इसी दौरान मेरी शादी हो गयी और फिर प्रभु ने हमें आशीश के रूप में दो बच्चे-एक बेटी और एक बेटा भी दिए। मैं काफी समय तक पारिवारिक समस्याओं से होकर भी गुज़रा, जिसके कारण मेरे आत्मिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए। कई बार पूरी तरह से प्रभु की सेवा करने की भी ठानी, लेकिन नहीं कर पाया। बस अपना काम भी करता रहा और प्रभु की सेवा भी करता रहा। ३१ दिसम्बर २००० की रात्री सभा में प्रभु ने मुझे अपने वचन से एक प्रतिज्ञा दी, “हे अति प्रीय पुरुष, मत डर, तुझे शांति मिले; तू दृढ़ हो और तेरा हियाव बन्धा रहे (दानियेल १०:१९)।” इसके बाद प्रभु ने मेरे परिवार में शान्ति दी और मैं पूरी तरह से प्रभु की सेवा में आने के लिए फिर से प्रार्थना करने लगा।

उन दिनों जिस कम्पनी में मैं काम कर रहा था, वह कम्पनी भारत छोड़ कर चीन चली गयी और ३१ जुलाई २००३ को मुझे उससे मुक्त होना पड़ा। क्योंकि प्रभु ने मुझे पूरी तरह उसकी सेवा करने के लिए बोझ दिया था, अब मैं प्रभु की दया से अपने आस-पास के इलाकों में प्रभु की सेवा कर रहा हूँ। मेरा आप से निवेदन है कि आप मेरे और मेरे परिवार के लिए प्रार्थना करें कि प्रभु मेरी सहायता करे और मैं उस सेवकाई को, जिसके लिए उसने मुझे बुलाया है, पूरा कर सकूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें