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गुरुवार, 4 जून 2009

सम्पर्क नवम्बर २००२: आराधना का आधार

रात तो काफी गहरा चुकी थी। बाहर बड़े आंगन में काफी गहमा-गहमी थी। मौसम काफी ठंडा ज़रूर था, पर माहौल बहुत गरमाया हुआ था। कुछ लोग आंगन में आग के चारों ओर बैठे थे। शायद, जैसे ही किसी ने दबी आग पर कुछ लकड़ियाँ लगा कर आग दहकाई, तैसे ही आग के चारों ओर बैठे लोगों के चेहरे साफ दिखने लगे। महायाजक की लौंडियों में से एक वहाँ आई और पतरस को आग तापते देख कर कहा कि तू भी तो यीशु नासरी के साथ था। पतरस तुरन्त मुकर गया (मरकुस १४:६८)। प्रभु यीशु के साथ जीने-मरने की कसम खाने वाला वह चेला, उस एक रात में, मुर्गे के बांग देने के पहले, तीन बार कसम खाकर अपने प्रभु का साफ इंकार कर गया। दूसरी तरफ पतरस का प्रभु, सारी रात अपमानित और प्रताड़ित होता रहा। इस अपमान और ताड़ना के समय में एक पल ऐसा आया जब इन्कार करते हुए पतरस का सामना प्रभु से हुआ। प्रभु ने पतरस को देखा और अपनी आँखों से ही उससे कुछ कहा, शायद ये कि, “हाँ पतरस, मैं तुझे अब भी प्यार करता हूँ, मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूंगा, कभी नहीं त्यागुंगा” (लूका २२:६०-६२)। कैसा अद्भुत प्रेम, कैसी अद्भुत वफादारी, अपनी असहनीय पीड़ा में भी अपने इन्कार करने वाले कमज़ोर चेले को हियाव देना, उसे फिर से उठा कर खड़ा करना। इस प्रेम, इस अपनेपन का कोई सानी नहीं। ऐसा प्रेमी परमेश्वर ही आराधना का सच्चा हकदार है, उसका यह क्षमा करने वाला प्रेम ही हमारी आराधना का आधार है।

मैं आपसे, मनुष्य रूप में आए इस प्रभु परमेश्वर की कहानी कहना चाहता हूँ। आप इस कहानी को उसके प्यार के प्रकाश में देखिएगा। इसी का नाम मेरे सीने में बसता है। वही मेरी आराधना का आधार है।

* दो हज़ार साल पहले एक बहुत ही ग़रीब और मामूली परिवार में उसका जन्म हुआ, ऐसा परिवार जिसके पास न धन था, न संपत्ति और न कोई प्रभाव। बहुत ही ग़रीबी की हालत में पला-बड़ा हुआ और गुज़र किया । आज उसका प्रभाव सारे संसार में है, उसके वचन को आधार बनाकर कई देशों ने अपने संविधान बनाए हैं; समाज सुधरकों ने समाज के उत्थान की प्रेरणा और मार्ग दर्शन पाया है; रंग भेद, जाति भेद, लिंग भेद आदि से ऊपर उठ कर सभी इन्सानों के समान स्तर होने को समझा और समझाया है। समाज के हर वर्ग के लोग उसके अनुयायी हैं, धनवान भी, आलिम और दानिश्मंद भी, वैज्ञानिक भी, साधारण भी।

* एक देश के छोटे से दायरे में ही सम्पूर्ण जीवन जिया। उसके जीवन में केवल एक बार, उसके शिशुकाल में, उसकी जान बचाने को, उसके माँ-बाप थोड़े समय के लिए उसे देश की सीमाओं से बाहर ले गए। लेकिन आज संसार का कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ उसका नाम और उसके अनुयायी नहीं हैं।

* आम आदमी की तरह उसे भूख, प्यास लगती थी; कभी-कभी झील पर तैरती नाव में ही सो जाता था।

* उसने कभी डॉकटरी नहीं सीखी पर बिना दवाईयों के ही बिमारों को चंगा कर देता था और कोई फीस भी नहीं लेता था, हर टूटे दिल को जोडने की सामर्थ रखता है।

* उसने खुद कभी कोई किताब नहीं लिखी; पर आज संसार में कोई ऐसी लाईब्रेरी नहीं है जहाँ उससे संबंधित कोई किताब न हो। मानव इतिहास में आदमी की कलम से कभी किसी एक आदमी के बारे में इतनी किताबें नहीं लिखीं गयीं जितनी इसके बारे में लिखी गयीं।

* उसने कभी कोई गीत नहीं लिखा; लेकिन इसके बारे में, सारे संसार में, न केवल इतने गीत लिखे गए जितने किसी और के बारे में कभी नहीं लिखे गए; और इतने लोग उन गीतों को आज भी गाते हैं जितने किसी और के लिए नहीं गाते।

* वह कभी कोई सैनिक अधिकारी नहीं रहा, न कभी कोई हथियार चलाया न किसी को कभी मारा या सताया; लेकिन इसके प्रेम और कुर्बानी को संसार में पहुँचाने और बयान करने के लिए सबसे अधिक लोगों ने अपनी जान जोखिम में डाली, सबसे अधिक लोगों ने अपनी जान कुर्बान भी की और आज भी उस प्रेम और कुर्बानी के सुसमाचार का बयान करने के लिए सबसे अधिक लोग ऐसा करने को तैयार हैं।

* जो देश कभी इसके विरोधी थे, आज वही उसके अराधक हैं। सारे संसार में, हर सात दिन के चक्र के समाप्त होते ही, लाखों लोग इसकी आराधना के लिए इकठ्ठे होते हैं।

* उसके जन्म के दो हज़ार साल बाद भी, उसके अनुयायियों की संख्या, सारे विश्व में, समाज के हर वर्ग में से, बढ़ती ही जा रही है, कभी घटी नहीं है।

* इस देने वाले ने इतना दिया कि अपने आप को ही दे डाला। लगभग दो हज़ार साल पहले उसे नाश करने के लिए उसके समाज के हाकिमों ने षड़यंत्र रचकर उसे पकड़ा और झूठे मुकद्दमे के द्वारा क्रूस पर चढ़ा कर मार डाला। कब्र उसे रख न सकी और वह तीसरे दिन जीवित होकर, बंद कब्र से बाहर आ गया, चालीस दिन तक उन्हीं लोगों के बीच में रहा और उनके देखते हुए स्वर्ग पर चला गया। वह आज भी जीवित है और लोगों के जीवन बदल रहा है।

* उन बदले हुए जीवन वाले लाखों मनों की ऊंचाई पर विराजमान होकर आज उनका परमेश्वर कहलाता है। स्वर्गदूत इस बात को स्वीकारते हैं, सन्त सराहते हैं और शैतान उसके नाम से ही सहमता है।

* इस जीवित, सर्वसामर्थी, सर्वव्यापी, सर्वज्ञानी, शाश्वत, परमसत्य का नाम प्रभु यीशु है; वो मेरा उद्धारकर्ता है, मेरा प्रभु है, मेरा स्वामी है।

जो जन हमारे लिए सब कुछ होता है, हम उसके लिए सब कुछ कर गुज़रते हैं। क्या आपको मालूम है कि आप प्रभु यीशु के लिए सब कुछ हैं? इसीलिए वह आपके लिए सब कुछ कर गुज़रा। आप ही उसकी खुशी हैं, जैसे ही कोई मन फिराकर प्रभु में आता है, स्वर्ग में खुशी और जश्न मनता है। वह आपको अपनी जान से ज़्यादा प्यार करता है, इसलिए उसने अपनी जान आपके लिए दे दी।

मैंने प्रभु की एक बात पकड़ी है; एक बात है जिसके करने के लिए हमें मना करता है, लेकिन खुद करता है। देखिए वह क्या कहता है, “प्रभु को उस पर तरस आया और कहा मत रो” (लूका ७:१३); “तू क्यों रोती है?” (यूहन्ना २०:१५); “वह नगर के निकट आया तो नगर को देखकर रोया” (लूका १९:४१); “यीशु के आंसू बहने लगे” (यूहन्ना ११:३५); “वह आंसू बहा-बहा कर प्रार्थना करता था” (इब्रानियों ५:७)।
क्या बात इस प्यार की जो हमें रोता हुआ तो देख नहीं पाता और खुद हमारे लिए रोता है।



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