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गुरुवार, 25 जून 2009

सम्पर्क फरवरी २००२: कोई था जो मेरे द्वार पर आया

मेरा नाम शताब सिंह है और मैं ज़िला सहारनपुर की बेहट तहसील के ग्राम लोदिपुर का निवासी हूँ। मैं एक अनपढ़ और ग़रीब परिवार में पला और बड़ा हुआ। मेरे माता-पिता इस स्थिति में नहीं थे कि वे मुझे पढ़ा सकते,इसलिए मुझे १० साल की उम्र से ही एक ज़मींदार के यहाँ पशु चराने की नौकरी पर लगा दिया गया। वहाँ मेरी उम्र के और भी बच्चे थे, जो बड़ी शैतानी करते थे उन्में से मैं भी एक था।

जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया, तो मेहनत मज़दूरी भी करने लगा। जो भी पैसे मज़दूरी से कमाता, बुरी संगति के कारण, बुरे कामों में उड़ा देता था। देखते देखते मैं २५ वर्ष का हो गया और इसी दौरान मेरी शादी भी हो गई। शादी होने के कारण मेरी ज़िम्मेदारी भी बढ़ गई और मेरे मौज-मस्ती के जीवन में विघ्न पड़ गया। लेकिन इत्तेफाक से मुझे एक अच्छी मेहनत करने वाली पत्नी मिल गयी। हम दोनो ही इकट्ठे मेहनत मज़दूरी करते और जो पैसा मिलता उसमें से कुछ बचा भी लेते। उस पैसे को मैं ब्याज़ पर भी दे देता था, और इसी पैसे से मैंने अपना घर भी बनाया। इसके बाद मैं फिर बुरी संगति में बैठने लगा, धीरे धीरे शराब भी पीने लगा और घर वालों को परेशान भी करने लगा। बात यहाँ तक बिगड़ी कि मुझे ग़लत कामों से रोकने पर मैं अपने माँ बाप को डाँट भी देता और उनकी पिटाई भी कर देता था। इस तरह मैं ने अपना सारा धन शराब में उड़ा दिया। अब मैं धीरे धीरे फिर कंगाली की कगार पर आ गया। मेरे मित्र मुझ से कटने लगे और मैं असहाय सा हो गया। अब मेरे सामने बहुत सारी समस्याएं मुँह फैलाए खड़ी हो गईं, रोज़ी रोटी के लाले पड़ गये और मैं बीमार रहने लगा। मैं इतना बीमार हुआ कि मेरी कमर 60० के कोण से झुक गई और मैं बहुत कमज़ोर हो गया। डाक्टरों ने मुझे हड्डी की टी०बी० बताई, मुझे लगने लगा कि मैं अब कुछ ही दिन जीवित रहुँगा। इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं न तो परमेश्वर को जानता था और न ही पहचानता था। बस मनुष्य द्वारा निर्मित इश्वरों और साधु-सन्तों में ही परमेश्वर को खोजता रहा।

इस हाल में ही एक दिन मैं टी०वी० पर एक कार्यक्रम देख रहा था, जिसमें मैंने देखा कि यीशु नाम के एक व्यक्ति ने बहुत से बीमारों को चंगा कर दिया। फिर भी लोग उसपर अत्याचार कर रहे थे और उस पर पत्थर मार रहे थे, अन्त में उसे क्रूस पर चढ़ा दिया गया। मैं सोच रहा था कि यह कौन व्यक्ति है जो इतना दुखः सहन करके भी कुछ नहीं बोलता? जो लोग उस पर अत्याचार कर रहे हैं उनके लिए प्रार्थना कर रहा है। मेरे मन में उसे जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उसी दिन शाम को मेरा एक रिशतेदार मेरे पास आया और बोला कि तुम भी चंगे हो सकते हो यदि तुम मेरे साथ चलो। लेकिन इसके लिए तुम्हें शराब बीड़ी आदि सभी गंदी आदतें छोड़नी होंगी। मैं चलने को तैयार नहीं था पर मेरे घर वालों ने मुझे उसके साथ ज़बरदस्ती भेज दिया।

उस स्थान पर पहुँच कर मैंने देखा कि जो चित्र मैंने टी०वी० पर देखा था, वही चित्र वहाँ भी लगा है। मेरे मन में कुछ विश्वास जागा कि यही व्यक्ति मुझे भी ठीक कर सकता है। संगति के बाद उन लोगों ने मुझे एक क्रूस की माला और यीशु का एक पोस्टर भी दिया। मैंने वहाँ संगति में कुछ पैसे भी दिये और कहा कि आप मेरे लिए प्रार्थना करें। उन्होंने कहा कि तुम्हें लगतार संगति में आना पड़ेगा और तुम ठीक हो जाओगे। मैं अपने परिवार के साथ निरंतर संगति में जाता रहा। वे लोग मुझे प्रार्थना करके तेल और पानी भी देते थे और कुछ दिन बाद मैं ठीक भी हो गया। स्वस्थ होने के बाद मैं फिर मज़दूरी करने लगा।

एक दिन मुझे पता चला कि ग्राम ताहरपुर में एक संगति है जो रात्रि में होने वाली थी। उसमें मैं भी शामिल हुआ। वहाँ पर मैंने एक व्यक्ति को देखा जो बहुत अच्छा प्रवचन देता था और उसके द्वारा बड़े बड़े आश्चर्यकर्म भी हुए। एक दिन मैंने उस व्यक्ति को शराब पीते हुए देखा, मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने संगति के एक व्यक्ति से इसके बारे में पुछा कि आप तो शराब पीने से मना करते हो और यह तो शराब पीता है। तब उसने कहा कि तीन दिन, शुक्रवार, शनिवार और रविवार को छोड़ आप किसी भी दिन शराब पी सकते हो। इतनी बात सुनकर मैंने फिर शराब पीना शुरू कर दिया। साथ ही कमर का दर्द फिर से उठ खड़ा हुआ और इतना बढ़ गया कि उसे दबाने के लिए मैं हर वक्त शराब पीने लगा। मेरी हालत लगातार बिगड़ती चली गई। धीरे धीरे माँ-बाप, रिशतेदार, यार सभी मेरा साथ छोड़ते गए। तब एक सम्बंधी मुझ पर दया करके मुझे हर्बटपुर के अस्पताल में छोड़ आया जहाँ मेरा इलाज चला। लेकिन मेरे पास न तो पैसे ही थे और न ही सहारा। दवा कहाँ से आएगी, इलाज कैसे चलेगा; इसी उधेड़-बुन में मैं पूरे दिन पड़ा रहता था। सोचता था कि बस अब ज़िन्दगी थोड़े ही दिनों की है।

मैं प्रार्थना करनी नहीं जानता था पर फिर भी प्रभु यीशु के नाम से टूटी-फूटी प्रार्थना कर लिया करता था। उसी का परिणाम हुआ कि एक दिन मेरे पास प्रभु का एक सच्चा दास आया, जिससे मेरी कोई जान पहचान नहीं थी। उसने मुझ से पूछा “आप के दरवाज़े पर जो निशान बना है वो क्या है?” मैंने कहा कि यह प्रभु यीशु के क्रूस का निशान है। उसने फिर सवाल किया कि क्या आप का उद्धार हो गया है और क्या आपके पाप क्षमा हो गए हैं? मैंने कहा मुझे पता नहीं कि उद्धार क्या होता है और पाप कैसे क्षमा होते हैं। उसने मुझ से कहा कि भाई बादशाही बाग़ में एक संगति होती है, आप वहाँ जाया करो। वहाँ आप पापों से मुक्ति और उद्धार के बारे में जान पाओगे। मैंने उसे वहाँ जाने का आश्वासन तो दिया पर नहीं गया। वह भाई फिर मेरे घर आया और पूछा कि “क्या आप बादशाही बाग़ गये थे?” मैंने असमर्थ्ता जताई कि किन्ही कारणों से मैं नहीं जा पाया। एक बार फिर मैंने उसे आश्वासन दिया कि मैं वहाँ ज़रूर जाऊँगा। एक दिन मैं हिम्मत करके वहाँ चला गया।

वहाँ बैठकर मुझे सब कुछ अजीब सा लगा। एक दिन वही भाई मेरे पास पुनः आया और उसने वही सवाल किया “क्या आप बादशाही बाग़ गए?” मैं ने कहा भाई मैं गया था और मुझे वहाँ बहुत अच्छा लगा लेकिन सच तो यह था कि मुझे वहाँ बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था। उसने मुझ से फिर से जाने के लिए कहा, फिर एक दिन वो ही भाई मुझे अपने साथ बादशाही बाग़ संगति में लेकर गया और वहाँ उसने मेरी मुलाकात कई विश्वासी भाईयों से करवाई। वहाँ उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए नए नियम पस्तक की एक प्रति भी दी।

इस बार मुझे कुछ अच्छा लगा और मेरे अन्दर प्रभु यीशु को जानने की उत्सुकता जागी। जैसे-जैसे मैं संगति में जाता रहा और प्रभु में बढ़ता रहा, तैसे-तैसे शैतान भी अपने हमले मुझ पर तेज़ करता गया। इधर मैं प्रभु में बढ़ रहा था उधर मेरी पत्नि और मेरी लड़की बिमारी में बढ़ रहीं थीं। मैं प्रार्थना करने लगा और भाईयों को भी प्रार्थना के लिए कहा। उन्होंने प्रभु के वचन के द्वारा मुझे बहुत हियाव दिया। धीरे धीरे मेरे सब पाप और बुरे काम छूतते चले गए। मैं सोच भी नहीं सकता था कि किसी तरह मेरे गन्दे काम छूट जाएंगे, लेकिन ऐसा हो गया। मैं बुरे दोस्तों की संगति से भी दूर चला गया। प्रभु की दया से, दाऊद के समान, मैं सब लौटा ले लाया।

अब प्रभु मुझ से अपने वचन के द्वारा बातें करने लगा और मेरा आनन्द बढ़ता गया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे पाप क्षमा हो जाएंगे, लेकिन प्रभु ने अपने वचन से मुझे विश्वास दिया कि उसने मेरे एक-एक पाप को काली घटा के समान मिटा दिया है। लेकिन एक समस्या मेरे साथ उत्पन्न हो गई। जैसे जैसे मैं प्रभु में बढ़ता गया तो मेरे समाज के लोग और रिशतेदार कहने लगे कि यह तो इसाई हो गया है। परन्तु सच तो यह है कि मैंने अपना धर्म नहीं बदला पर अपना कर्म बदला है। पहले मैं पापों में जीता था, अब मेरा पापों से छुटकारा हो गया है। अब मैं पूर्ण रूप से आश्वस्थ हूँ कि यदि मैं आज मर भी जाऊँ तो सीधे स्वर्ग जाउँगा क्योंकि प्रभु यीशु ने मेरे पापों को अपने उपर ले कर मेरा सारा कर्ज़ चुका दिया है और मेरे पापों को अपने लहू से धो दिया है। उसकी दया से आज मेरे पास शान्ति और आनन्द है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक़ अलग सी रचना लगी और आशावादी भी कि मुश्किलोँ मे इश्वर को याद करने से सहंशक्ति बदती है

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  2. आप की कहानी पढ कर मुझे भी बहुत पहले की एक घटना याद आ गयी उस शख्स ने भी इसी से मिलती जुलती कहानी मुझे सुनाई थी कि उस पर कैसे प्रभु यीशु की कृपा हुई और अब वह उन का यह संदेश लोगों की भलाई के लिए दूसरॊ को बता रहा है ताकी वे भी इसी तरह लाभ उठा सके।

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