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मंगलवार, 23 जून 2009

सम्पर्क फरवरी २००२: आराधना का आधार

प्रार्थना कहीं पर स्वार्थ की पतली गली से होकर भी जा सकती है, पर आराधना स्वार्थ से कहीं परे, प्यारे प्रभु को एक खुले आकाश में दिल से गाती है।

जब स्नेह भरी सेवा शब्दों के साथ करते हैं तो वह स्तुती का स्वरूप धारण कर लेती है।

विशाल सागरों की अपनी सीमाएं हैं, शब्दों की भी अपनी सीमाएं हैं, मानव की सोच की भी अपनी ही सीमाएं हैं।पर प्यारे प्रभु के प्यार की कोई सिमाएं नहीं। वह दया का ऐसा सागर है जो मुझ जैसे को प्यार कर सकता है, क्षमा दे सकता है।

परमेश्वर अपने इकलौते पुत्र को पीड़ा की चरम सीमाओं के समय क्रूस पर भूल सकता है, त्याग सकता है; पर उसका एक अजीब प्यार है जो मुझ जैसे से वाय्दा करता है कि मैं न तुझे कभी छोड़ुंगा न त्यागुंगा।

यह वास्तविक सच्चाई है कि मेरे पास याकूब का सा स्वभाव है, पर इसमें ज़रा भी शक नहीं कि मेरे पास याकूब का परमेश्वर भी है, जो मुझे कभी नहीं छोड़ेगा।

एक व्यक्ति बहुत कुड़कुड़ा रहा था कि उस के पास एक जोड़ी जूते भी नहीं हैं, तभी उस्की नज़र एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जिसके पास दोनों पैर ही नहीं थे। वह धन्यवाद से भर गया और बोला, “प्रभु भले ही मेरे पास जूते नहीं, पर दोनो पैर तो सही सलामत हैं।”

हर ‘असम्भव’ के ‘अ’ को हटाकर ‘सम्भव’ करना, केवल परमेश्वर के लिए ही सम्भव है। मौत पर विजय पाना असम्भव था, पर उसने इसे सम्भव बना डाला। मेरे जीवन से मेरे पापों को हटाना मेरे लिए कभी सम्भव था ही नहीं, पर उसने इसे सम्भव बना डाला।

कुछ विश्वासी शैतान से बहुत परेशान रहते हैं। लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनसे शैतान बहुत परेशान रहता है - ये वे हैं जो हर हाल में प्यारे प्रभु को भजते हैं, शैतान के आगे समर्पण नहीं करते, उसका सामना करते हैं।


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