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बुधवार, 3 जून 2009

सम्पर्क नवम्बर २००२: सम्पादकीय

प्रभु यीशु के प्यारे नाम से सम्पर्क आपके सम्मुख है। क्षमा चाहते हैं कि यह अंक काफी देर से आपके हाथों में पहुँचा पा रहे हैं। आपकी प्रार्थनाएं और पत्र हमें हमेशा हियाव देते हैं। हमारी अभिलाशा है कि स्याही से छपी इस छोटी काग़ज़ी किताब से आप परमेश्वर की आवाज़ को सुन सकें। यह बात आप पर है कि आप उसकी बात को स्वीकारें या ठुकराएं। आप कह सकते हैं कि ये लोग पुरानी कहानी, बासी शब्दों के साथ फिर हमारे सामने परोसने में लगे हैं। सम्पर्क आपके हाथ में है, आप सम्पर्क के हाथ में नहीं। आप जब चाहें इसे खोल कर पढ़ सकते हैं, जब मन ऊबे तो बंद कर सकते हैं, यदि झुंझला जाएं तो फेंक सकते हैं और फाड़कर जला भी सकते हैं। यह बात आपके हाथ में है। पर प्रभु की दया से सत्य को साफ कह देना सम्पर्क का कर्तव्य है। प्रभु करे कि जो लिखा है, उसके वास्तविक अर्थ को आप समझ सकें।

पवित्रशास्त्र कोई मुर्दा लाश नहीं है, परन्तु परमेश्वर की जीवित सामर्थ है। परमेश्वर का वचन बीज है और उसमें जीवन है जो बढ़ने और फलने को मचलता है। बस उसे एक अच्छी भूमि की ज़रूरत है, जिससे तीस गुणा, साठ गुणा, सौ गुणा फल सके। पवित्रआत्मा तो तैयार है पर बहुतों का मन पवित्रआत्मा की बात मानने को तैयार नहीं है; वे आत्मा को बुझा देते हैं, उसको शोकित कर उसकी आवाज़ को दबा डालते हैं। वे सारी सम्भावनाओं को खुद ही समाप्त कर डालते हैं।

ऐसे विश्वासी धीरे-धीरे स्वभाविकता को उतार कर मक्कारी को पहन लेते हैं। वे हमेशा दूसरों पर दोष लगाते मिलेंगे और अपनी मजबूरियाँ गिनाते रहेंगे। वे मौका और मौसम देख कर चलते हैं। वे प्रार्थना सभा, बाईबल अद्ध्यन की सभाओं से अलग होकर, धीरे-धीरे आराधना सभा के दिन भी गोल होने लगते हैं। इनके जीवन में प्रभु की मेज़ का कोई विशेष महत्त्व नहीं रह जाता। कितनों ने खुद अपनी गवाही की ही हत्या कर डाली है; बस विरोध से भरे रहते हैं। कहीं यह आपके व्यवहार का चित्रण तो नहीं है?

आपको लगभग हर मंडली में कुछ बड़े मंझे हुए झूठे विश्वासी मिल जाएंगे। तोते के रटने के समान, बाईबल के पदों को दिमाग़ से रट कर तो रखते हैं पर उसे दिल में ज़रा जगह नहीं देते, निज जीवन में कतई लागू नहीं करते; उस वचन से उनमें बूंद भर भी परिवर्तन नहीं होता। इन्होंने मंडलियों में बड़ा अनर्थ कर डाला है। वे पवित्रशास्त्र का उपयोग अर्थशास्त्र की तरह करते हैं। इनका प्रचार पैसा बनाने का साधन मात्र है। शैतान ने इन्हीं झूठे लोगों पर प्रभु का काम बिगाड़ाने का दयित्व सौंपा हुआ है। यह जितनों को जितना भरमा सकते हैं उतना भरमा देते हैं। ऐसे तिकड़मी लोग मंडलियों में दोष लगाते और विरोध उपजाते हैं और प्रभु का पैसा भी मार लेते हैं। शैतान इनकी जी तोड़ सहायता करता है। वे परमेश्वर की सहनशीलता को तुच्छ जानते हैं। वे दूसरों के लिए भारी और ऊंचे सिद्धांतों को स्थापित करते हैं पर मसीही जीवन के मूलभूत सिद्धांत-प्रेम, दया और क्षमा को हमेशा दबा देते हैं। जीवित वचन कहता है “वे एक ऐसे भारी बोझ को, जिसको उठाना कठिन है, बांधकर उन्हें मनुष्यों के कंधों पर रखते तो हैं; परन्तु आप उन्हें अपनी उंगली से भी सरकाना नहीं चाहते” (मत्ती २३:४,५)। ये सब काम वो लोगों को दिखाने के लिए करते हैं। सच तो यह है कि इन्होंने अपनी बरबादी की कब्र खुद ही खोद ली है।

बच्चों की कहानी बड़ों को सुनाने का अवसर मिला है, कहानी जानी पहिचानी है, सबने कभी न कभी तो सुनी होगी। आस-पास की दुकान, मकान के सभी चूहों ने एक एमरजैन्सी मीटिंग बुलाई। मामला था कि लाला की बिल्ली ने बड़ा आतंक मचा रखा था। चूहों कि पूरी कौम खतरे में थी, अस्तितव का सवाल था। बिल्ली के करीब आने की खबर कैसे लगे, कि समय रहते जान बचाकर भागा जा सके, इसी समस्या का हल ढूंढना था। बहुत विचार-विमर्श हुआ, अलग-अलग तरिके सुझाए गए, पर कोई भी तरीका जमा नहीं। काफी देर बाद एक बूढ़े चूहे ने सिर खुजाते हुए सुझाव दिया ‘अरे मूर्खों, सरल सी बात है, बिल्ली के गले में घंटी बांध दो।’ सुझाव सुनते ही चूहों ने ज़ोरदार तालियां पीटीं, बड़ी वाह-वाही हुई। एक छोटा चूहा डोरी के साथ एक छोटी घंटी ले भी आया। अब सवाल उठा कि घंटी कौन बांधेगा? सब एक दुसरे का मूँह देखते रहे पर कोई आगे नहीं आया। अन्त में उसी बूढ़े चूहे से पूछा गया कि अब आप ही कोई राह बताईए। बूढ़े चूहे ने जवाब दिया, ‘देखो भाई, हम तो सिद्धांत प्रतिपादित करते हैं, यानि थ्योरी बताते हैं; प्रैकटिकल तो खुद ही करो।’ चूहों की सभा बिना किसी नतीजे पर पहुँचे बर्ख़ास्त हो गयी। लेकिन अगले दिन सभी चूहे यह देखकर अवाक रह गये कि बिल्ली के गले में घंटी बंधी थी। पूछ-ताछ हुई तो मालूम चला कि जो छोटा चूहा घंटी लाया था, उसी ने बांध भी दी और अभी ज़िन्दा भी है। चूहों ने उसे बुलाकर उससे पूछा कि यह कैसे किया? वो बोला, कुछ खास नहीं, बस नींद की गोली कुतर कर बिल्ली के दूध में डाल दी, जब वो गहरी नींद में सो गयी तो काम कर डाला।

अक्सर यह देखा जाता है कि छोटे ईमान्दार विश्वासी, बड़े-बड़े काम बड़ी खामोशी से कर जाते हैं; जबकि बड़े-बड़े नामधारी विश्वासी छोटी-छोटी बातों पर बड़ी-बड़ी राजनीति खेलते रह जाते हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने विवेक को जलते हुए कोयले से दाग़ लिया है। इस अन्त के समय में तो ऐसे लोगों की भरमार होगी। इनका विनाश ऊंघता नहीं, बस परमेश्वर का धैर्य ही है जो इनके इस विनाश को रोके हुए है। इन लोगों को देखकर हमें निराश और हताश होने की ज़रूरत नहीं, बस प्रभु मुझ पर और आप पर दया करे कि हम इन्के साथ न लग जाएं।

जाते-जाते प्रभु के प्रेम की एक कहानी आपके सामने रखना चाहता हूँ। बाईबल में, लूका ७:११-१७ के पन्नों में, नाइन शहर की एक विधवा की कहानी खुदी है जो अपने इकलौते बेटे के जनाज़े में चल रही थी। वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि अपने जवान बेटे को अपनी ही आँखों के सामने दफनाना पड़ेगा। बेटे की बिमारी मौत में बदलते ही उसकी आखिरी उम्मीद भी ढह गयी। इस विधवा के दिल पर क्या बीती होगी? सही एहसास तो हम नहीं कर पाएंगे। माँ ने रात-दिन जागकर, सब कुछ करके देखा होगा। अब जन्म देने वाली माँ जीवन देने में असहाय और अस्मर्थ थी। वैसे तो हमने कितनों के अंतिम संसकार होते हुए देख होंगे, उन्में सम्मिलित भी हुए होंगे। पर जब हम किसी अपने को अंतिम विदाई देते हैं तो दिल पर क्या बीतती है, शब्दों में उस दर्द को ब्यान करने की सामर्थ नहीं है। जैसे-जैसे कब्रिस्तान करीब आता जाता, माँ बार-बार बेटे के चेहरे को चूमती, थोड़ी ही देर में उस चेहरे को हमेशा के लिए कफन से ढाँक दिया जाएगा और लाश पर मिट्टी डाल दी जाएगी। वो माँ कैसे बिलखती हुई लौटेगी अपने सुनसान खाली घर में। लोग शब्दों से आगे क्या सहारा दे पाएंगे? तभी शहर से बाहर जाता हुआ वह जनाज़ा, शहर के अन्दर आते प्रभु यीशु और उसके साथ चल रहे चेलों से रू-ब-रू हुआ। परमेश्वर का बेटा, बेटे के वियोग में तड़पती माँ को देखकर अपने आप को रोक न सका। उस माँ को देखकर प्रभु को तरस आया और प्रभु ने उससे कहा ‘मत रो’ (लूका ७:१३)। ठीक जीवन के सबसे अंधियारे समय में, उस माँ की मुलाकात जीवन की ज्योति से हुई, और ज्योति ने कहा ‘मत रो’। फिर प्रभु उसके बेटे के पास गया जो अब एक लाश, एक दुखदायी बोझ भर बन के रह गया था; अब कहीं कोई उम्मीद बाकी थी ही नहीं। प्रभु ने उस बेटे की लाश से कहा “मैं तुझ से कहता हूँ उठ” और वह जवान ज़िन्दा हो कर उठ बैठा और बोलने लगा। ज्योति ने अंधकार को हर लिया, असंभव संभव हो गया, माँ का मातम आनंद में बदल गया।

शायद आप अपने जीवन में किसी निराशा में फंसे होंगे, हालात से हार चुके होंगे। शायद अब दुनियाँ में कोई रास्ता, कोई उम्मीद की किरण बाकी नहीं होगी। लेकिन प्रभु कहता है “उठ! मत डर, मैं तुझे बनाऊँगा”। अपने घुटनों पर आईये, प्रभु की ओर अपने हाथ फैलाईये और प्रभु से कहिए “हे प्रभु मैं पूरी तरह से हार चुका हूँ, प्रभु मेरी सुधि लें, मुझ पर दया करें।” अपने अंधियारों को उस ‘जीवन की ज्योति’ को सौंप दें और उसकी ज्योति और प्रेम से अपने जीवन को भर लें। वह असंभव को संभव करने वाला, कुछ नहीं से सब कुछ उत्पन्न करने वाला सृष्टिकर्ता परमेश्वर है। वही मार्ग, जीवन और सत्य है (यूहन्ना १४:६)।
सम्पर्क की सीमाएं सीमित हैं, बस अब यहीं ठहरने को कहती हैं। आपकी प्रार्थनों के अभिलाषी.....
सम्पर्क परिवार।






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