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रविवार, 21 जून 2009

सम्पर्क फरवरी २००२: सम्पादकिय

सम्पर्क परिवार आपको सप्रेम नववर्ष की शुभकामनाएं समर्पित करता है। क्षमा चाहते हैं कि यह अंक आपके हाथों में कुछ देर से पहुँच रहा है। आपकी प्यार भरी प्रार्थनाओं और पत्रों से हम हर बार एक नया हियाव पाते जाते हैं।

तैरता हुअ वक्त ऐसे गुज़रा कि पता ही नहीं चला और हम एक नए वर्ष में आकर खड़े हो गये। एक साल चला गया और एक मौका भी इसके साथ निकल गया जो अब कभी नहीम लौटेगा। अब यह नया साल हमारे लिए फिर से एक नया मौका लेकर आया है। लूका १३:७-१० में एक अंजीर के पेड़, उसके मालिक और उसके माली की कहानी है। इस अंजीर के पेड़ ने पिछले सालों में एक अच्छी सुरक्षा और देखभाल पाई थी। इसे अच्छी भूमी पर लगाया गया और इसकी अच्छी देखभाल की गई, किस लिए? दिखाने, सजाने या जलाने की लकड़ी के लिए नहीं, वरन उससे फल की उम्मीद थी। तीन साल तक मालिक उससे फल की आस लगाए रहा और इसी उम्मीद में उसके पास आता रहा, “मैं तीन वर्ष से इसमें फल ढूँढने आता हूँ पर नहीं पाता”(लूका १३:७)। पेड़ तीन साल का नहीं था, तीन साल पहले फल देने लायक हो चुका था। इसीलिए मालिक तीन साल से उसमें फल ढूँढ रहा था, पर हर बार निराशा ही पाता था। पेड़ अपने जीवन से दिखाता है कि उसने उस अनुग्रह के समय को व्यर्थ ठहरा दिया जब उस पर कृपा दृष्टि की गई। अन्ततः मालिक ने उस पेड़ को हटाकर उसकी जगह एक दूसरे पेड़ को लगाने और नए पेड़ पर परिश्रम करने का निश्चय किया। लेकिन माली ने मालिक से विन्ती की “हे स्वामी इसे इस वर्ष और रहने दे कि मैं इसके चारों ओर खोदकर खाद डालूँ” (लूका १३:८) और मालिक से उसके लिए एक साल और माँग लिया। इस अंजीर के पेड़ की जगह हम अपने आप को रखकर सवाल करें, “प्रभु ने मुझे इस संसार में किस काम के लिए रखा है? क्या मैं प्रभु की बारी पर एक बोझ बन कर तो नहीं जी रहा? क्या अपने अनुग्रह के समय को व्यर्थ तो नहीं ठहरा रहा?” इस पेड़ ने पिछले तीन सालों की चेतावनी को लापरवाही से टाल दिया था, अगर यह बचा हुआ था तो सिर्फ अनुग्रह से। बीते साल कितने ही लोग इस संसार रूपी प्रभु की बारी से उखाड़ कर निकाल लिए गए। हम अगर बचे हैं तो सिर्फ प्रभु के अनुग्रह से। वह एक मौका और देना चाहता है कि हम उसके दिए हुए वरदान को उसके लिए उपयोग करें और उसके लिए फल लाएं, न कि उस वरदान को संसार में दफन कर दें, उसे व्यर्थ ठहरा दें।

आदम तो अपने समय को पूरा कर इस संसार से चला गया, पर आदम का स्वभाव आज भी उसकी संतान में ज़िन्दा है। बुलबुल का बोल बड़ा प्यारा है, वह अपने स्वभाव से बहुतों को लुभाती है, किसी को नुक्सान नहीं पहुँचाती। यदि बुल्बुल कौवे की तरह करकश बोले, बस रोटी और बोटी के चक्कर में रहे, जहाँ मौका लगे वहीं झपटे, तो क्या लोग उसे बुलबुल कहेंगे? यही हाल कई ‘विश्वासियों’ का है, उनके जीवन में भी ऐसा ही विरोधाभास दिखता है। भक्त यदि सख़्त बोले, स्वार्थी स्वभाव और कसैले मिज़ाज़ के साथ जिए तो लोग उसे क्या कहेंगे? ऐसे लोग जहाँ बिगाड़ न भी हो वहाँ बिगाड़ पैदा कर डालते हैं। गधे पर हाथी का लेबल लगाने से वह हाथी नहीं बन जाता। विश्वासी का लेबल लगा लेने से कोई विश्वासी नहीं बन जाता। जीवन शैली से, बोल-चाल से, व्यवहार से विश्वासी अलग ही पहचाना जाता है।

ऐसे ही कुछ लोग कहते हैं कि उनमें धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है। उदाहरण देते हैं कि पहले एक हज़ार रुपये रोज़ रिश्वत लेता था, अब सौ रूपये से ज़्यादा छूता भी नहीं; पहले एक ‘बोतल’ से कम नहीं पीता था, अब तो आधी में ही काम चला लेता हूँ। वह जो सत्य को जानता है पर मानता नहीं, वह आधे सत्य के साथ जीता है। सत्य को सिर्फ जानना परन्तु उसका जीवन में उपयोग न करना, सत्य न जानने से ज़्यादा खतर्नाक है। ऐसों के पास प्रभु का वचन जब आता है, उनके सीने में चुभता है, उन्हें कायल करता है, फिर भी वे उसे नहीं मानते, उसे नज़रंदाज़ कर जाते हैं, वे अपने लिए भयानक दंड जमा कर रहे हैं। परमेश्वर मक्कारों और पाखंडियों को ज़रा पसन्द नहीं करता। वचन कहता है, “वह जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था और तैयार न रहा... बहुत मार खाएगा” (लूका १२:४७); “ तू गुनगुना है, न ठन्डा है और न गर्म, इसलिए मैं तुझे अपने मुँह से उगलने पर हूँ” (प्रकाशितवाक्य ३:१६); “... भला होता कि वे इस सच्चाई को जानते ही नहीं” (२ पतरस २:२१)।

कई हैं जो आराधना करते हैं, प्रभु भोज में सम्मिलित होत हैं, वचन पढ़ते हैं और फिर भी मन में बदले और बैर की भावना रखते हैं, कितनों के पैसे और सामन वापस नहीं करते, अहंकार, जलन, विरोध सीने में सजाए रखते हैं सालों गुज़र गये पर आत्मा के फल उनके जीवन में कहीं नहीं दिखते। ऐसे लोग मसीही जीवन की गवाही के लिए ठोकर के कारण हैं “... तुम्हारे कारण अन्यजातियों में परमेश्वर के नाम की निन्दा की जाती है” (रोमियों २:२४); “...ये उसके पत्र नहीं, यह उनका कलंक है” (व्यवस्थाविवरण ३२:५)। उनके लिए भला होता कि चक्की का पाट गले में डालकर, उन्हें सागर में डाल दिया जाता (मत्ती १८:६)। उन्होंने मात्र घर की दीवारों पर पवित्र वचन के पदों को ठोक रखा है, पर उनके दिलों में पवित्र वचन कभी नहीं बसने पाया। वे कान रखते हुए भी बहिरे और आँख रखते हुए भी अँधे हैं, क्योंकि वे जानबूझकर समझना ही नहीं चाहते, उन्हें समझाना भी बड़ी टेढ़ी खीर है।

एक बार एक दावत में एक देहाती अन्धे ने जीवन में पहली बार मेवों से भरी हुई खीर खाई, उसे बड़ा मज़ा आया। अन्धे ने बगल में बैठे एक व्यक्ति से पूछा “ये क्या चीज़ है?” व्यक्ति ने जवाब दिया, “खीर है।” अन्धे ने फिर पूछा “खीर देखने में कैसी होती है?” फिर जवाब मिला “सफेद होती है।” अन्धे ने फिर पूछा “सफेद कैसा होता है?” उस व्यक्ति ने कुछ परेशान होकर कहा “सूरदास जी बगुले की तरह।” अन्धे ने फिर पूछा “भाई बगुला कैसा होता है?” बगल वाले ने अपने हाथ को बगुले की गर्दन की तरह बनाया और अन्धे को छुआकर बताया कि “बगुला ऐसी मुड़ी गर्दन का होता है।” अन्धे ने मुड़ा हाथ टटोलकर कहा “यार खीर तो बड़ी टेढ़ी होती है!” कुछ ऐसे ही आत्मिक अन्धों को समझाना है।

लूका १९:४१-४४ में लिखा है कि जब यीशु यरूशलेम के निकट आया तो नगर को देखकर रोया और कहा “क्या ही भला होता कि तू हाँ तु ही इस दिन कुशल की बातें जानता। क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझपर कृपादृष्टि की गयी न पहिचाना।” यहूदियों का नया साल शुरू ही हुआ था, चार दिन बाद होने वाले यहूदियों के सबसे बड़े त्योहार की तैयारियाँ की जा रहीं थीं। यरुशलेम तीर्थ यात्रियों से खचा-खच भरा हुआ था। लोग जोश और खुशी से भरे जय-जयकार कर रहे थे। प्रभु एक ऐसे स्थान पर खड़ा था जहाँ से सारा यरुशलेम शहर एक नज़र में देखा जा सकता था। पर प्रभु न सिर्फ उसका वर्तमान देख रहा था, उसे यरुशलेम का भविष्य भी दिखाई दे रहा था। यरूशलेम, जो शान्ति का नगर कहलाता था (इब्रानियों ७:२), उसने शान्ति के राजकुमार को अर्थात परमेश्वर के पुत्र और उसके वचनों को ठुकरा दिया था। परमेश्वर की चेतावनियों की बेपरवाही और बेकद्री के कारण अब यरुशलेम पर कहर बरसने को तैयार था। लोग खुश हो रहे थे पर प्रभु रो रहा था। वह नहीं चाहता कि कोई नाश हो। प्रभु दुखी मन से उस शहर को कह रहा था कि जब तुझ पर रहम किया गया तो तूने उस समय को नहीं पहिचाना और परमेश्वर की चेतावनी को लापरवाही से लिया। तब से छः सौ साल पहले राजा नबूकदनेस्सर ने, परमेश्वर की चेताविनियों की अन्धेखी करने और ऐसी ही ढिटाई में बने रहने के कारण यरूशलेम को पहली बार बरबाद कर डाला था। अब फिर वैसे ही स्वभाव के कारण, उसकी दूसरी बरबादी निकट आ रही थी। हम प्रेरितों के काम में देखते हैं कि जिन्होंने चेताव्नियों को मान लिया वे तो बच निकले पर यरुशलेम नहीं बचा। ऐसे ही संसार भी अपनी दूसरी बरबादी के निकट आ खड़ा हुआ है; पहली बरबादी नूह के समय हुई थी। एक बड़ी दहशतनाक बरबादी अब संसार से सटी खड़ी है।

उस समय यरूशलेम के मंदिर में परमेश्वर की आराधना, प्रार्थना, बलिदान, भेंट, भजन, संगीत सब चल रहा था,पर प्रभु कह रहा था कि तुमने इसे डाकुओं की खोह बना दिया है। आज भी मण्डलियों में आराधना, प्रभु भोज, प्रार्थना सब कुछ वैसे ही चल रहा है, पर अन्दर की वास्तविक दशा भी प्रभु से छुपी नहीं है।

जब पहली बार यरुशलेम बरबाद हुआ तब राजा यहोयकीम क राज्य था (दानिएल १:१) अंजीर के पेड़ के समान, परमेश्वर ने यहोयकीम को भी तीन साल दिए, पर उसने अपने पाप से मन नहीं फिराया। नबूकदनेस्सर ने यरुशलेम को घेर कर बरबाद कर डाला। इसके लगभग छः सौ साल बाद सन ७० में रोमी सम्राट वैस्पियन के पुत्र तीतुस ने यरुशलेम को पूरी तरह से बरबाद कर डाला। सम्सार के इतिहासकार बताते हैं के नबूकदनेस्सर और वैस्पियन दोद्नो बहुत ही सामर्थी सम्राट थे, इस कारण वे यरुशलेम को बरबाद कर पाए। पर बाईबल बताती है कि यहूदी लोगों के पाप के कारण यरुशलेम की बरबादी हुई। यदि ये सम्राट दस गुणा और भी सामर्थी होते, तो भी यरुशलेम के पत्थरों पर से एक पत्थर भी न हटा पाते, यदि पाप ने उसकी सुरक्षा को पहले ही न हटा दिया होता। अब दूसरी बार यह पृथ्वी भी अपने पाप के कारण अपनी बरबादी के करीब खड़ी है।


नबुकदनेस्सर ने यहूदी राजपुत्रों में से जो योग्य थे, उन्हें अपने महल में अपनी सेवा के लिए लगा लिया (दानियेल १:३,४)। आज परमेश्वर की सन्तान को शैतान ने पद, पैसे और परिवार की सेवा में ही लगा रखा है। वे परमेश्वर के लिए नहीं, शैतान के लिए उपयोगी बन गए हैं। उनका परमेश्वर के लिए काम न करना ही शैतान के लिए काम करने जैसा है। संसार की चकाचौंध, समपदा और उपलभदियों ने स्वर्ग के धन को उनके लिए छोटा कर दिया है, वे उस चिरस्थाई धन को छोड़, इस नाश्मान धन को संजोने में लगे हैं। लूका १९:४५ की ऐसी दशा में, जब मन्दिर डाकुओं की खोह बन चुका था, तब प्रभु ने मन्दिर को शुद्ध करने की आखिरी कोशिश एक बार फिर की। क्या आप को यह एहसास है कि आप परमेश्वर का मन्दिर हैं (१ कुरिन्थियों ३:१६)?

प्रिय पाठक प्रभु आपसे कह रहा है कि पाप को छुपाना कितनी बड़ी बेवकूफी होगी, जबकि हम जानते हैं कि प्रभु से हमारा कोई पाप छुपा नहीं है, और प्रभु हमारे हर एक पाप को बड़ी सहजता से क्षमा भी कर देगा यदि हम दिल की ईमान्दारी से उसे मान लें और उससे क्षमा माँग लें। प्रभु चाहता है कि हम शिक्षा, सेवा और संबंध, इन तीनों में सही हों। कितने हैं जो शिक्षा में सही हैं, पर सेवा में आलसी हैं; कितने सेवा में बड़े चुस्त रहते हैं पर ग़लत शिक्षा में फंसे रहते हैं। संबंधों में सही होने के लिए हम इन छः सवालों से अपने आप को जाँच सकते हैं:-

१. परमेश्वर से व्यक्तिगत संबंध - व्यक्तिगत प्रार्थना, बाईबल अद्धयन, पारिवारिक प्रार्थना का जीवन कैसा है?
२. परिवार के सदस्यों से संबंधओं की दशा कैसी है?
३. मण्डली के सदस्यों से सम्बंध; क्या सिर्फ दूसरों की आलोचना करने, उन्हें ‘ठीक’ करने में ही लगे हैं या उनके साथ मिल-बैठकर उनकी परिस्थित्यों और समस्याओं को समझने और सुलझाने में भी कार्यशील हैं?
४. हमारे शत्रुओं से हमारे संबंध; क्या उनका बुरा देखना चाहते हैं या उनका उद्धार? क्या उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं कि ‘हे पिता इन्हें क्षमा कर’?
५. आप के कार्य स्थल में सहकर्मियों से संबंध; क्या आप के जीवन और कार्य में वे मसीह की गवाही को देखते हैं?
६. उन विश्वासियों से आपके संबंध जिनसे आप सहमत नहीं हैं, कैसे हैं?

अगर संबंध सही नहीं हैं तो आपने कहीं न कहीं शैतान से कोई छिपा समझौता कर रखा है। अपने दोष छुपने के लिए दूसरों पर दोष लगाना बहुत सहज है, पर इससे आपके दोष दूर नहीं हो जाते। परमेश्वर और उसका वचन ठठों में नहीं उड़ाया जा सकता, जो आप बोएंगे, वही आपको काटना भी पड़ेगा (गलतियों ६:७)।

अब अपनी इस ढलती शाम में, जहान कुछ ज़यादा ही ज़हरीला हो चला है। संसार की यह शाम भी दबे पाँव चुपचाप निकल जाएगी और अचानक ही समय, शून्य के सरोवर में, हमेशा के लिए लुप्त हो जाएगा; पीछे छोड़ जाएगा कुछ के लिए एक दिन, और कुछ के लिए एक रात। जो तैयार हैं उनके लिए धार्मिक्ता का सूर्य चँगाई लिए हुए आएगा (मलाकी ४:२) उस सदा काल के दिन में वे परमेश्वर के राज्य में उसके साथ सर्वदा राज्य करेंगे (प्रकाशितवाक्य २२:५)। परन्तु जो तैयार नहीं हैं, उनके लिए वो रात आ पहुँचेगी जिसकी फिर कोई सुबह नहीं होगी। उस भयानक रात में कोई कभी कुछ भी नहीं कर पाएगा (यूहन्ना ९:४), बस जो समय रहते किया या नहीं किया उसी का प्रतिफल भोगने के लिए रह जाएगा (मत्ती २५:३०)।

क्या आप तैयार हैं?

एक टुकड़ा प्रभु के स्वर का,
साँसों से सरक कर सीने पर ठहर गया,
तब पाप कहाँ चला गया, पता ही न चला
शून्य के सरोवर में वो सब समा गया
और, पता ही न चला
कितने सालों के साथ, ये साल भी चला गया
और सच मानो, पता ही न चला

- सम्पर्क परिवार





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