ज़रा सोचें तो सही, परमेश्वर के लिए धर्म महत्त्वपूर्ण है या आदमी? दुनिया पर धर्म का बड़ा ज़हरीला असर बड़ी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। हमारे पास जीने के लिए यही इकलौती दुनिया है। इसे भी हमने बेचैनी से, बरबादी से और नफरत से भर दिया है। आज दुनिया समाजवाद या पूँजीवाद के आधार पर नहीं पर धर्म के आधार पर बंटती जा रही है। इतना ज्ञान पा लेने के बाद भी आज धर्म फिर अपने भयानक रूप में लौट रहा है। हम आज इन्सान को इन्सान नहीं मानते पर उसे इस तरह मानते हैं कि यह इसाई, यह मुसलमान, यह सिख और यह हिन्दू है। हाँ सहब आदमी निहायत खौफनाक आदमी बन गया है। इन्सान की शक्ल ही हज़रत आदम से मिलती जुलती सी रह गयी है पर वह अपने कामों से तो हैवान बन ही चुका है। धर्म के दायरे में बंध कर हमारा दिमाग़ भी ज़ंग खा चुका है। हमारे धर्मों की महामारी हर रोज़ हज़ारों मासूमों को मौत के घाट उतार डालती है। क्या आज के इन हालत में यह सवाल और भी महत्त्वपूर्ण नहीं है कि आदमी महत्त्वपूर्ण है या धर्म?
बचपन से हमारे दिमाग़ों में धर्म भर दिया जाता है। इसे हम एक उदाहरण से समझने की कोशिश करेंगे। दो व्यक्ती हैं, यदि उनके सामने बढ़िया मीट बनाकर रखा जाए तो एक के मूँह में पानी आने लगता है और दूसरे को उलटी; ऐसा क्यों? क्योंकि उनके दिमाग़ में अलग अलग धारणा बचपन से ही भर दी गई है, और उस धारणा के कारण वही चीज़ एक को बढ़िया भोजन दिखती है तो दूसरे को वही चीज़ बेचैन कर देती है। ऐसे ही धर्म को लेकर बचपन से ही हमारे मनों में धारणाएं भर दी जाती हैं, जिस कारण दूसरे के धर्म को देखकर और उसके बारे में सुनकर आदमी झल्ला उठता है। जो विरोध बचपन से ही हमारे मनों में भरा गया है, यह उसी की प्रतिक्रीया है।
हमारे धर्म नेता हों या राजनेता, श्वेत वस्त्रधारी साफ सुथरे, धुले-पुछे चिकने चुपड़े दिखने वाले ये लोग पूरे घाग हैं, कोई कच्ची गोटी नहीं खेले हैं। अधकचरी उम्र से ही लोगों के मनों में जलन, विरोध, बदले की भावना, को भर देते हैं और फिर इनके हुक्म समाज में कानून की तरह चलते हैं। ये धर्म की राजनीति, लाशों की राजनीति, आतंकवाद की राजनीति, जहाँ जैसा भी मौका लगे लगा देते हैं। विरोधियों का पलड़ा यदि भारी दिखाई दे तो फौरन कहते हैं “कैसे भी हो, डंडी मारो, बस किसी भी तरह विरोधियों को कम तौल कर दिखाओ।” राजनीति का मूल मंत्र है बेपैंदी के लोटे का सिद्धाँत - जिधर भी भार बढ़े उधर झुक जाओ; या फिर दो घोड़ों की सवारी का सिद्धाँत - एक अटक जाए तो दूसरे पर सवार हो जाओ। ना तो पार्टी क महत्त्व है ना सिद्धाँतों का, महत्त्व है तो बस मंत्री पद का। हमारा समाज भी नए सिद्धाँतों से सजता जा रहा है। आज के समाज का भी एक मूल मंत्र है “ज़रूरत पड़े तो गधे को बाप बनाकर पेट में घुस जाओ और जब काम निकल जाए तो गले में फंसी हड्डी मत बनो, फौरन टाटा कर जाओ।”
भ्रष्टाचार का सोता हमारे समाज में ऊपर से नीचे की तरफ लगतार बहता रहता है। जी हाँ ऊपर से नीचे तक, मंत्री से संत्री तक, अधिकारी से कर्मचारी तक यह सोता सब को तृप्त करता जाता है। भले ही सरकार बदले या सरकार के सिद्धाँत, पर यह बदलने वाला नहीं है। हमारी ही सरकारें, हमारे ही सिर पर सवार होकर, हमारा ही शोषण करती हैं। किसी सरकारी विभाग में सालों से आपका काम रुका हो तो कुछ मुद्रा दिखाइये, वही सालों से रुका हुआ काम एक्सप्रेस गति से दौड़ने लगेगा। हर दुविधा सुविधा में बदल जाएगी बस सुविधा शुल्क साथ लगा दें। हमारी नयी सड़कों का निर्माण कार्य पूरा हो भी नहीं पाता कि उन्हीं सड़कों की मरम्मत के टेंडर अखबारों में निकलना शुरू हो जाते हैं। क्या अदभुत प्रगति पर हैं हम! हम तो बस हम ही हैं, हमारा क्या जवाब है? देश की डगमगाती नाव में लोग पतवार की जगह हथौड़ी और छैनी लेकर इस इरादे से बैठे हैं कि डूबती नव के कुछ फट्टे ही हाथ लग जाएं। हमारे यहाँ कई नसल के चोर होते हैं, जैसे - खुले चोर, छिपे चोर, और कुछ गिरे चोर। चोरों की एक नसल और भी है जिन्हें हम कामचोर कहते हैं। इन नमूनों के चोरों की हमारे सरकारी विभागों में बड़ी भरमार है। हमारे बाज़ारों में नकली माल की भरमार है - नकली सामान, नकली नोट, नकली दवाई, नकली नेता और नकली धर्मगुरू। अर्थशास्त्र का नियम है कि असली से पहले नकली चलता है। मान लें कि आपकी जेब में एक असली नोट है और एक नकली, आप पहले किसे चलता करेंगे? इस तरह नकली नोट तेज़ी से बाज़ार में भर जाते हैं।
हमारी प्रगति की एक और तसवीर यह भी है कि जहाँ कभी शहर के कूड़े-कचरे के बदबूदार ढेरों पर सूअर के बच्चे अपना पेट पालने के लिए गन्दगी कुरेदते फिरते थे, आज वहीं आदमी के बच्चे अपना पेट पालने के लिए प्लास्टिक, काँच, लोहे के टुकड़े और गत्तों के फट्टे ढूंढते फिरते हैं। आदमी इस कीमत का रह गया है। जिसने गरीबी नहीं देखी हो वह इस गरीबी के दर्द को क्या समझेगा। हमारे जनसंख्या नियंत्रण या परिवार नियोजन विभाग को आतंकवाद ने, भयानक बीमारियों ने, अकालों ने अच्छा सहयोग दिया है। अब तो काफी लोग गरीबी से परेशान होकर आत्म हत्याएं भी परिवार सहित करने लगे हैं।
हमारे इस बेपरवाह और दिखावटी समाज में कितने तो इतने अहंकारी हैं कि कहीं छोटे न दिख जाएं, इसलिए अपने को खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखते हैं। पूरे फेंकूलाल हैं, दुसरों पर रौब डालने के लिए ऐसी-ऐसी फेंकते हैं कि हम इस खानदान के हैं, हमारा भाई ये है, हमारा चाचा वो था और मामा ये है, इत्यादि। चाहे ये रिशतेदार उसे घास भी न डालते हों फिर भी बे सिर पैर की फेंकने से नहीं रुकते। एक अन्य प्रवृति के भी लोग इसी समाज का हिस्सा हैं, जो हर जगह एक-दूसरे की चुगली लगाने से, एक को दूसरे भिड़ाने से नहीं चूकते। वो ऐसा है, उसने ये कहा, फलां ऐसा कह रहा था - जहाँ आग न भी लगी हो, वहाँ जलन और द्वेश का धुआं तो ये उठा ही देते हैं।
एक दिन एक बहुत परेशान, हारा हुआ सा व्यक्ति मुरझाया चेहरा लिए अपने मित्र के घर पहुँचा। मित्र ने बैठाकर दिलासा देते हुए पूछा “अच्छा बताओ क्या खाओगे?” उसका उदास और खिसिया हुआ जवाब था “यार जूते छोड़ कुछ भी खिला दो क्योंकि वह तो पहले ही घर से काफी खाकर आ रहा हूँ।” परिवारिक संबंधों की हालत बिगड़ती जा रही है। कितने पति-पत्नी दावतों में, बाज़ारों में मुस्कुराते हुए एक दूसरे के साथ साथ तो दिखते हैं पर उनकी असली हालत घर में देखते ही बनती है। जो मियां बीवी छोटी छोटी बातों पर अपने अहंकार के कारण अक्सर एक दूसरे से लड़ते रहते हैं, वे अपने बच्चों को प्रेम से एक दूसरे के साथ रहने का पाठ पढ़ाते हैं। मक्कारी और बेशर्मी की हद है कि जो एक दूसरे के साथ मेल-मिलाप से नहीं रह सकते, वह बच्चों को मेल-मिलाप से रहने और भाई-बहिन का फर्ज़ निभाने की बातें सिखाते हैं। सास को परेशानी है क्योंकि उनहें लगता है कि बेटा अब उनके हाथ से निकल कर बीवी के हाथों में चला गया है, और मौका लगते ही, अपनी मनोभावना को किसी तीखे कड़ुवे अन्दाज़ में व्यक्त करने से वो नहीं चूकतीं। पति की बुरी लतों के कारण परिवार का चैन खो गया है, बच्चे बिगड़ गये हैं। कुछ का घर पति-पत्नी के एक दुसरे पर शक करने के कारण बर्बाद है, तो कहीं वास्तव में एक दूसरे की पीठ पीछे दुराचार होता है। कुछ अपनी बीमारियों से परेशान हैं तो कुछ अपनी नौकरियों से और कुछ नौकरी के लिये परेशान हैं।
कितने तो झूठ बड़ी स्वाभविक रीति से बोल जाते हैं, उनहें सोचना भी नहीं पड़ता, बात और मौके के मुताबिक झूठ तैयार होता है मूँह से बाहर आने के लिए। एक महाशय छुट्टी के दिन, घर के बरामदे में बैठे अखबार पढ़ रहे थे। सड़क चलते एक भिखारी ने उनकी ओर गुहार लगाई, “महराज एक आध रुपया मिलेगा”, वह बिना मूँह उठाए बोले, “पैसे नहीं हैं”। भिखारी ने फिर गुहार लगाई “तो महाराज कोई बची-कुची रोटी सब्ज़ी ही दे दो”, महाशय कुछ झल्लाकर बोले “रोटी सब्ज़ी भी नहीं है”। भिखारी ने फिर प्रयास किया “महाराज काफी ठंड है, कोई पुराना कपड़ा-चादर ही दे दो”। महराज खिसियाकर बोले, ‘क्यों सवरे-सवरे दिमाग़ चाट रहे हो, कह दिया न नहीं है”। भिखारी बोला जब तुम्हारे पास न पैसा है, न रोटी, न कपड़ा तो फिर बेकार बैठे समय क्यों बरबाद कर रहे हो, एक कटोरा लेकर मेरे साथ चलो, मिलकर धंधा करेंगे।” झूठ बोलने की तो लोगों को आदत हो गई है, घर में पति-पत्नी एक दूसरे से झूठ बोलते हैं, बच्चों से झूठ बोलते हैं और बच्चे अपने माँ-बाप से झूठ बोलते हैं। बाप ऑफिस से पैन, पैंसिल, कागज़, रबड़ आदि हाथ साफ कर लाता है तो पत्नी और बच्चे बाप की जेब पर हाथ साफ कर लेते हैं। जिसको जैसा मौका मिलता है वो बस झूठ, बेईमानी, धोखे से अपना उल्लू सीधा करने में लगा है; उचित-अनुचित, अपने-पराये या घर-बाहर का कोई मतलब नहीं रह गया है। मेरे प्रीय पाठक आपकी और आपके परिवार कि क्या दशा है? क्या आपके घर की कोई शर्मनाक कहानी अभी बाहर आने को तो नहीं है?
सब कुछ करके, सब कुछ पा के, अक्ल के सारे घोड़े दौड़ा कर भी आदमी बेचैन और परेशान है क्योंकि मन का पाप मन में शाँति होने नहीं देता। बहर से शाँत और प्रसन्न दिखने वालों में से बहुतों की आंतरिक दशा उलट ही है। जीवन ऐसा बन गया है कि न तो जीते बनता है और न मरते। कितने ही जीवन से उक्ता गये हैं और उनहें जीवन जीने लायक ही नहीं लगता है। संसार के लोगों और समाज कि इस दशा का एक ही कारण है - पाप। आपका हर पाप आपका पीछा करता ही रहेगा; आप चाहे उससे इन्कार करें, वह आपका कभी इन्कार नहीं करेगा। आप जितना भी चाहें और जहाँ भी चाहे भाग लें, हर जगह आप उसे साथ ही खड़ा पाएंगे - मौत के बाद भी। यह पाप ही है जिसने सारे संसार को एक दहशत के माहौल में जीने पर मजबूर कर रखा है। कौन कब और कैसे किसकी बेचैनी का शिकार हो जाए, कोई नहीं जानता। किस मोड़ पर कौन सा हादसा किसका इंतिज़ार कर रहा है, कोई नहीं जानता। प्रभु यीशु ने कहा “यदि मन न फिराओगे तो इसी तरह नाश हो जाओगे (लूका १३:५)।” नाश का अर्थ मौत ही नहीं परन्तु मौत के बाद हमेशा के भयानक विनाश में जा पड़ोगे। २००० साल का इतिहास छान डालो, ढूंढ कर देख लो,प्रभु यीशु की कही एक बात भी गलत साबित नहीं हुई है। ध्यान दीजीए प्रभु ने क्या कहा - यदि मन न फिराओगे तो इसी तरह नाश हो जाओगे; उसने धर्म बदलने को कतई नहीं कहा, मन फिराने को कहा है। सच मानियेगा मन बदलते ही आपके हालात और आप बदल जाएंगे, क्योंकि मन से पाप, पाप की बेचैनी और उससे उत्पन्न होने वाली दहशत समाप्त हो जाएंगे।
यह सवाल मन में अटकता है कि मन फिराने का अर्थ क्या है? ध्यान कीजिए, मनुष्य द्वारा की गई हर बुराई मन ही से शुरू होती है - पहले मन में विचार आता है, फिर योजना बनती है और सही मौका देखकर कार्य किया जाता है। यदि मन से बुराई ही उत्पन्न न हो तो शरीर से बुराई होगी भी नहीं। लेकिन मन से बुराइ को हटा पाना मनुष्य के लिए असंभव है। हो सकता है कि आप कुछ समय तक मन को काबू में रख सकें पर उसकी प्रवृति नहीं बदल सकते, जब और जहाँ ज़रा भी मौका मिलेगा, मन बेकाबू होकर बुरा ही सोचेगा और करवाएगा। शेर को पिंजरे में बन्द रखने से वो शाकाहारी नहीं हो जाता और न ही हमला करने का उसका स्वभाव जाता है। मन की यह दशा उसमें बसे पाप के कारण है। जब तक मन से पाप का प्रभुत्त्व नहीं जाता, मन का स्वभाव नहीं बदलता। आप अपने मन में झांक कर अपनी असली हालत देखिए, उन गन्दे और बुरे विचारों पर ध्यान दीजिए जो आपके मन में उत्पन्न होते हैं, पलते हैं, बसते हैं। उन ज़लील और घिनौने कामों पर गौर कीजिए जिन्हें आप छिप कर करते हैं, कर चुके हैं या करने के इरादे रखते हैं लेकिन उनका भेद खुलने से डरते हैं। अपने अन्दर बसे सारे झूठ, व्यभिचार, घमण्ड, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेश आदि का हिसाब कीजिए; आप सव्यं मान लेंगे कि आप पापी हैं, बेचैन हैं। आप अपना कोई भी यत्न क्यूं न कर लें, लेकिन मन पर पाप के इस प्रभुत्त्व को हटा नहीं सकते। इस प्रभुत्त्व को केवल वो ही हटा सकता है जो पाप पर जयवंत हो, सदैव से ही निषपाप और निषकलंक हो। संसार के इतिहास में केवल एक ही ऐसा है, केवल एक ही का जीवन है जिसे न जाने कितनी ही बार जांचा-परखा गया और वह हर बार पवित्र, निषपाप और निषकलंक ही निकला, जिसपर आज तक कभी कोई दोष नहीं रखा जा सका, वह है प्रभु यीशु। प्रभु यीशु पापों की क्षमा देने इस संसार में आया ताकि कोई नाश न हो पर हर एक अनन्त जीवन और अनन्त चैन पा सके। उसके पास धर्म परिवर्तन की कोई बात है ही नहीं, बात तो सारी मन परिवर्तन की है। उसने समस्त जगत के पाप क्षमा और सब के उद्धार के लिए अपनी जान क्रूस पर दी और तीसरे दिन जी उठा। जैसे ही आप सच्चे मन से उसके पास आते हैं और उससे कहते हैं कि हे प्रभु मुझ पापी पर दया कर, मेरे पाप क्षमा कर और अपना मन उसे सौंप देते हैं; वह आपके पाप क्षमा करके उनकी प्रभुता आपके मन पर से हमेशा के लिए हटा देता है और पाप पर जयवंत अपनी सामर्थ आपको दे देता है। यही मन परिवर्तन है अर्थात मन पाप के दासत्व से परिवर्तित होकर परमेश्वर के आधीन हो जाता है अब मन बुराई के अनुसार नहीं पर परमेश्वर के अनुसार सोचता और करता है।
प्रभु यीशु जीवित परमेश्वर है। केवल वह ही पापों की क्षमा और अनन्त जीवन देने वाला परमेश्वर है। आप कोई क्यों न हों, कैसे भी क्यों न हों वह आप से प्रेम करता है, आप को अनन्त विनाश से बचाना चहता है, आप के पश्चाताप का इंतिज़ार करता है। एक-एक करके छोटे-छोटे पाप बेहिसाब हो जाते हैं और उनका बेहिसाब प्रतिफल भी आप ही को भुगतना पड़ेगा। पाप में जीना अपने आप से दुशमनी करना है, स्वयं अपने लिए विनाश की कटनी बोना है। पाप के ज़हर का प्रभाव आप में और आप के परिवार में तेज़ी से फैलता है जो मुसीबतें, बेचैनियां, आपसी मनमुटाव या बैर आदि के रूप में प्रकट होता है। आपने जो कुछ भी किया है, छिपकर या खुलकर, उस सबसे बचकर आप न छुप पाएंगे न कहीं भाग पाएंगे। आपका पाप आपको नहीं छोड़ेगा, इस संसार में बेचैन रखेगा और आते संसार में एक न्याय और फिर विनाश में ले जाएगा। परमेश्वर का वचन कहता है “…क्या यह समझता है कि तू परमेश्वर के दण्ड की आज्ञा से बच जाएगा (रोमियों २:१३)” वह हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला देगा। यह निश्चित है क्योंकि परमेश्वर ने अपने सत्य वचन में ऐसा लिखा है। लेकिन दिल से निकली एक दुहाई, एक सच्चे पश्चाताप की प्रार्थना से सब बदल जाएगा। जब पाप क्षमा हो जाएंगे और हटा दिये जाएंगे तो दण्ड का कोई कारण ही नहीं बचेगा “इसलिए अब जो मसीह यीशु में हैं उनपर दण्ड की आज्ञा नहीं है... (रोमियों ८:१)।”
हो सकता है कि आप कहें कि मैं इतना बुरा तो नहीं हूँ। लेकिन आप ईमान्दारी से देखें अपने अश्लील विचारों को, अपनी अभिलाषाओं को, अपने बीते जीवन को। आप ऊपर से कुछ भी दिखते हों, परमेश्वर तो आपके मन को, आपके विचारों को और आपकी अभिलाषाओं को देख लेता है। बाहर से भले होने का दिखावा तो मक्कारी है, असल में आप में जो अपने भले होने का विचार है, वह अपने आप को धोखा देना ही है और आपको एक दिन इस धोखे के परिणाम को भुगतना ही पड़ेगा। सालों पहले की बात है, मैं एक ऐसी जगह खड़ा था जहाँ मौत का सन्नाटा सता रहा था। दिल दहला देने वाला माहौल था, तीन खून से लिथड़ी लाशें वहाँ पड़ी थीं, खून से सने मूँह पर मक्खियाँ भिनभिना रहीं थीं। तीनों पैसे से, शरीर से, रुतबे से बहुत सामर्थी दिखते थे, पर अब अपने मूँह से मक्खी तक नहीं हटा सकते थे। एक हादसे ने एक ही लपटे में इन तीनों को लपेट लिया। एक लाश के हाथ में बन्धी घड़ी अब भी चल रही थी, सैकिंड की सूईं अभी भी चक्कार लगा रही थी पर इन तीनों क वक्त समाप्त हो चुक था। किसीने नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी इनका वक्त पूरा हो जाएगा। इनके पास सब कुछ था पर काल के जाल से बच नहीं पाए। वक्त इनके लिए नहीं रुका पर इन्होंने वक्त को नहीं पहिचाना। प्रभु यीशु कहता है “यदि मन न फिराओगे तो इसी तरह नाश हो जाओगे।” “तुम दण्ड के दिन और उस आपत्ति के दिन क्या करोगे? सहयता के लिए किस के पास भाग कर जाओगे। (यशायह १०:३,४)” प्रभु कहता है, “... चाहे तू उकाब की नाई ऊँचा उड़ता हो, वरन तारागण के बीच अपना घोंसला बनाए तो भी मैं तुझे वहाँ से नीचे गिराऊंगा। (ओबादियाह १:४)”
हमारे संसार का सबसे सुरक्षित देश अमेरिका भी असल में कितना असुरक्षित है यह ११ सितंबर की दिल दहला देने वाली घटना ने सारे संसार को दिखा दिया। अभी तो ऐसी ही कितनी ही अन्होनी होनी बाकी हैं। खतरे और खौफ अपनी हद तक पहुँच चुके हैं, बस अब एक झटके की देरी है। ऐसे ही न्याय का दिन भी अचानक ही सब पर आ पड़ेगा और लोग भौंचक्के देखते रह जाएंगे। बीता कल तो एक यादगार बन कर रह गया है, आज भी तेज़ी से बीते कल में बदल रह है। आज और अब ही आने वाले कल के काल से बच निकलने का वक्त है। मित्र मेरे, आने वाले कल से बचकर भाग नहीं पाओगे, उस आते कल का जो बीते कल से ज़्यादा भयानक होगा, सामना तो करना ही पड़ेगा। मित्र मेरे प्यारा प्रभु यीशु आपको प्यार करता है और चाहता है कि आप नाश न हों। बस आपके माफी माँगने की ही देर है, उसकी क्षमा में देरी नहीं है। बस एक प्रार्थना, एक सच्चे दिल की पुकार “हे प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा कर, मुझ पापी पर दया कर” विनाश को अनन्त आनन्द में बदल देगी, क्या आप यह प्रार्थना करेंगे?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें