प्रभु यीशु के क्रूस पर किए काम और उसके महान नाम की जय-जयकार हो जिसने “सम्पर्क” के माध्यम हमारी सीमाओं को एक नया विस्तार दिया है। सम्पूर्ण सम्पर्क परिवार आपकी प्यार भरी प्रार्थनाओं के लिए ऋणी है।
इस बार तो हम हिम्मत हार ही गये थे, पर यह अंक आप तक लाने के लिए हमें आपके पत्रों और प्रार्थनाओं ने फिर से कुछ करने का हियाव दिया। मैं परमेश्वर के वचन का सबसे प्यार भरा कोमल स्पर्ष तब महसूस करता हूँ जब प्रभु अपने वचन से मुझ से कहता है, “ मैं तुझ को प्यार करता हूँ और मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा।” यह सोच ही मुझे आनन्द और आराधना से भर डालती है कि प्रभु मुझ जैसे व्यक्ति से भी प्यार करता है।
एक बार ट्रेन में सफर करते समय मैंने देखा कि एक महिला एक बच्चे को सीने से चिपकाए बैठी थी। वह बच्चा बहुत ही सूखा सा था, उसकी बेहद मुचड़ी सी खाल उसकी हड्डियों से चिपकी पड़ी थी और उसका रंग तपे ताँबे की तरह था। उसकी दयनीय दशा देखकर मन विचिलित होता था पर माँ ने उसे एक बेशकीमती चीज़ की तरह संभाल्कर सीने से लगा रखा था। इस पर एक और अजीब बात यह थी कि माँ ने उस बच्चे के माथे पर एक काला टीका भी लगा रखा था कि कहीं उसे किसी की कोई बुरी नज़र न लग जाए। किसी और की नज़र में वह बच्चा चाहे जैसा भी हो, माँ की नज़र में वह बहुत ही कीमती और सुँदर था, जान से ज़्यादा प्यारा था। शैतान इस प्र्यास में जुटा रहता है कि आप को यह यकीन दिलाए कि परमेश्वर आप जैसे आदमी से कैसे प्यार कर सकता है? एक माँ एक ऐसे बदसूरत, बीमार और देखने वालों का मन विचिलित कर देने वाले बच्चे से कैसे ऐसा प्यार कर सकती है? यह तथ्य हमारी समझ में आये या न आये, पर यह सच झुठलाया नहीं जा सकता कि बस वह अपने उस बच्चे से ऐसा प्यार करती है, उस पर जान छिड़कती है। माँ और परमेश्वर में ज़मीन आसमान का फर्क है, परमेश्वर का प्रेम माँ के प्रेम से भी कहीं आगे, बहुत-बहुत आगे बढ़कर है। माँ अपने इकलौते बेटे की जान अपने किसी बदकार दुश्मन के लिए नहीं दे पाएगी, पर परमेश्वर ने अपने दुश्मनों के लिए अपने इकलौते बेटे की जान बलिदान कर दी। वह अपने शत्रुओं से भी नफरत नहीं करता, वह तो बस यही चाहता है कि उसके दुश्मन भी किसी तरह उद्धार पाकर उसके साथ रहें, और हमेशा के लिए हमेशा के आनन्द में आ जाएं (१ तिमुथियुस २:४)।
शैतान बाईबल की इस सच्चाई को मिटा डालना चाहता है कि परमेश्वर उन्हें भी दिल से प्यार करता है जो कतई प्यार करने के लायक ही नहीं हैं। हमारा दो कौड़ी का दिमाग़ परमेश्वर के असीम प्रेम को समझ नहीं सकता। क्या आपको मालूम है कि वह आपको किस हद तक प्यार करता है? बाईबल का अद्भुत पद “जैसे तूने मुझ से प्रेम रखा है वैसे ही उनसे प्रेम रखा है (युहन्ना १७:२३)” बिल्कुल सच है। परमेश्वर मुझ जैसे और आप जैसे इन्सान से प्रभु यीशु की तरह प्यार करता है; पर कुछ ही लोग उसके प्यार का एहसास कर पाते हैं। जो महसूस करते हैं उन्हें परमेश्वर का प्यार विवश करता है। वे उसके प्यार के कारण अपने मन से मजबूर हो जाते हैं कि अपने प्यारे प्रभु के लिए कुछ करें। परमेश्वर के वास्तविक बच्चे परमेश्वेर के प्यार के स्पर्ष को साफ पहिचान लेते हैं।
मैं भाई डी. एल. मूडी की एक कहानी आपके साथ अपने शब्दों में बांटना चाहुँगा। एक माँ को खबर मिली कि उसका बेटा किसि दूसरे शहर में एक बुरी दुर्घटना का शिकार होकर शहर के अस्पताल में भर्ती है। माँ ने पहली गाड़ी पकड़ी और बताए हुए पते पर पहुँची। वह अपने बच्चे से मिलने के लिए बहुत आतुर थी, किसी ज़रिए उस तक पहुँचना चाहती थी। पर डॉकटर ने उसे यह कह कर रोका कि काफी समय बाद वह लड़का मुशकिल से सो पाया है, अतः वह उससे अभी न मिले। माँ ने रोते-रोते कहा “डॉकटर साहब, मुझे मेरे बच्चे को एक बार देखने दो, हो सकता है कि फिर मैं उसे ज़िन्दा कभी न देख पाऊं। मैं आपसे वायदा करती हूँ कि मैं उससे कुछ भी नहीं कहूँगी, बस उसके पास चुपचाप बैठकर उसे देखती रहूँगी।” डॉकटर उसकी इस बात पर राज़ी हो गया और वह एक स्टूल पर अपने बेटे के पास बड़ी खामोशी के साथ बैठ गयी। बेटे के सिर और आँखों पर पट्टियाँ बंधीं थीं। माँ आँसुओं के साथ खामोशी से अपने बेटे को देखती रही। वह कभी उसके हाथ देखती और कभी उसके पैर, उसकी आँखें बस अपने बेटे पर ही लगीं थीं। थोड़ी देर बाद वह अपने आप को रोक ना पाई और बड़े धीरे से उसने अपने हाथ को बेटे के सिर पर रख दिया। बेटे ने तुरन्त धीमी आवाज़ में कहा “माँ तू आ गई।” उस बेटे ने सालों बाद माँ के हातों के स्पर्ष को पाया था लेकिन उसे उस प्यार भरे हाथ को पहिचानने में ज़रा भी देर नहीं लगी। क्या आपका दिल आपके प्रभु के प्यार का एहसास करता है?
जब मेरा प्रभु क्रूस पर अपनी पीड़ा के चरम सीमाओं को सह रहा था, तब एक तीखा पर सच्चा ताना उस पर कसा गया “इसने औरों को बचाया पर अपने आप को न बचा सका (मरकुस १५:३१)।” प्यारे प्रभु को दो में से एक बात को चुनना था - वह औरों को बचाए या अपने आप को; उसने फैसला किया कि वह औरों को बचाएगा। उसका यह फैसला सिर्फ उस प्यार के कारण था जो वह आपसे और मुझ्से करता है। हम स्वर्ग इसलिए नहीं जाना चहते हैं कि वहाँ सोने की सीढ़ीयाँ हैं, पर हम इसलिए जाना चहते हैं क्योंकि वहाँ हमारा प्यारा प्रभु है और हम उसके प्यरे छिदे कदमों को चूम पाएंगे।
प्रभु के वचन में लिखी कहानियाँ कोई कागज़ी कहानियाँ नहीं पर वास्तविकता हैं। पवित्र आत्मा ने अपने अनुग्रह से हमारे लिए इन छोटी कहानियों में बड़े आत्मिक भेद सजा कर रखे हैं। ये प्रभु के वे शब्द चित्र हैं जो सीधे हमारे दिलों पर असर करते हैं। प्रभु यीशु के पवित्र होठों से कहे गए दृष्टांतों में से ३८ नये नियम में लिखे गए हैं। आईये थोड़ी देर के लिए इन दृष्टांतों में से एक पर थोड़ा विचार करते हैं। यह दृष्टांत लूका के १५वें अध्याय में मिलता है। यहूदी समाज में बाप की जायदाद का बंटवारा बाप की मौत के बाद होता था लेकिन छोटे बेटे ने बाप के जीवित रहते ही बंटवारे की माँग की। एक तरह से उस बेटे ने, धन संपत्ति के लालच में, यह कह दिया कि बाप उसके लिए मर चुका है। बाप ने भी उसकी मान ली और वह बेटा अपने हिस्से की संपत्ति लेकर बाप का घर छोड़कर अपनी मर्ज़ी और मौज करने निकल पड़ा। उसने एक बार भी नहीं सोचा कि बाप के दिल पर क्या गुज़र रही होगी। वह बेटा अपने बाप के घर से तो निकल गया पर बाप के दिल से नहीं निकल पाया। वह एक बड़े शहर में चला गया और कुछ समय में सब कुछ गवाँ बैठा और बरबाद हो गया। जब वह किसी लयक नहीं रहा और खाने के भी लाले पड़ने लगे तो उसे याद आया इतना सब कुछ करने के बाद भी उसका पिता है और वह उसे माफ भी कर सकता है। इस एहसास के होते ही वह अपने बाप से मिलने चल पड़ा, एक समय का राजपुत्र अब भिखारियों की तरह अपने बाप के घर की ओर लौटा। दूर से ही उसे आता देखकर वह बाप अपने बेटे से मिलने दौड़ पड़ा और उसकी उसी बदहाल दशा में, जिसमें वह आया था, उसके एक भी शब्द बोलने से पहले ही बाप ने उसे अपने सीने से चिपटा लिया, उसे चूमा और उसे ऐसा प्यार और आदर दिया जैसे उसने कभी बाप के विरोध में कुछ किया ही न हो। प्रभु का यह दृष्टाँत परमेश्वर पिता के प्रेम और क्षमाशीलता को दरशाता है।
जैसे ही कोई पापी पश्चाताप के साथ परमेश्वर की ओर मुड़ता है, परमेश्वर उसे वैसे ही ग्रहण कर लेता है जैसे उस बाप ने अपने बेटे को कर लिया। ऐसा ही प्यार प्रभु ने मुझ जैसे से किया और आप से भी करता है। मन की सादगी से ही इस प्यार का एहसास हो पाता है। सादगी का अर्थ यह कदापि नहीं है कि संत लोग लंगोटी पहन कर बैरागी हो कर जीयें। संतों के स्वभाव में सादगी होनी चाहिए। लेकिन अक्सर वे अपनी मक्कारी और बनावटीपन से इस आत्मिक सादगी को खो बैठते हैं। प्रभु हमें ऐसा मन दे जो उसके प्यार का एहसास कर सके और उसको दिल से प्यार कर सके। यही प्रेम हमें विवश करेगा कि हम उसके लिए कुछ कर पाएं।
हमें “सम्पर्क” के लिए आपकी विशेष प्रार्थनों की आवश्यकता है। हम अलग-अलग स्थानों में “सम्पर्क” सभाएं आयोजित करने की इच्छा रखते हैं। यदि आप चहते हैं कि आप के गाँव या शहर में इनका आयोजन हो तो आप प्रार्थना करके हमें शीघ्र ही सूचित करें। हम इन “सम्पर्क” सभाओं में किसी भी मिशन या सम्प्रदाय की शिक्षाओं का प्रचार कतई नहीं कर पाएंगे, हम केवल पापों से क्षमा का प्रभु का संदेश ही दे पाएंगे। इन सभाओं के लिए “सम्पर्क” परिवार केवल प्रचारकों के आने-जाने का व्यय ही उठाएगा, सभाओं से संबंधित शेष सभी व्यय आयोजकों को ही उठाना पड़ेगा। यदि प्रभु आपको इन सभाओं की आज़ादी देता है तो शीघ्र पत्र व्यवहार करें।
फिर से हम आपके लिए कुछ प्रार्थनों के विषय छोड़ना चाहते हैं और हमें आशा है कि आप अपनी प्रार्थनाओं से हमारी मद्द अवश्य करेंगे। ये विषय हैं:
१. हम इन बुरे दिनों में प्रभु के लिए एक अच्छा जीवन जी सकें।
संदेश पहुँचा सकें।
३. यदि प्रभु की इच्छा में हो तो हम सम्पर्क को और भी भाषाओं
२. जिन इलाकों तक अभी सुसमाचार नहीं पहुँचा है वहाँ जीवन का य
हमें प्रकशित कर सकें।
४. सम्पर्क पत्रिका और भी अधिक लोगों तक पहुँच सके।
आपके पत्रों की प्रतीक्षा में,
प्रभु में आपका - सम्पर्क परिवार
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