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मंगलवार, 11 अगस्त 2009

सम्पर्क अगस्त २००१: आप की तलाश में

सच मानियेगा, कोई आपको पा लेने की तलाश में है, तभि तो आप इस पत्रिका को पढ़ पा रहे हैं। वह कौन है? एक वक्त था जब मैं मानता नहीं था कि ‘वो’ है।

बात तब की है जब मैं बड़ा गुरुघंटाल आदमी था; माफ कीजिए, तब मैं आदमी नहीं एक जवान लड़का ही था, जो परमेश्वर को नहीं मानता था। बाइबल को झूठी किताब कहता था। मैं अपने बेबुनियाद, बेजोड़ और बेतुके तर्कों से बहुतों का मूँह बन्द कर देता था। मेरे अहंकार का आखिरी फैसला होता, “मैं श्रेष्ट हूँ और मेरी मान्यताओं का कोई सानी नहीं है।” उन दिनों में एक बहिन जो उम्र में मुझ से काफी बड़ी और काफी पढ़ी लिखी भी थी, मुझे काफी समझाने की कोशिश करती रही कि परमेश्वर है और बाईबल सच्ची है। मैं कितने ही सवाल उससे करता रहा, जैसे: “यह कैसे हो सकता है, सृष्टी कैसे बनी?” वह बड़े धीरज से मुझे समझाती रही कि परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है। मैंने इस मौके का रंग ताड़कर तपाक से कहा, “यदि परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है तो उसके लिए यह भी सम्भव होगा कि वह अपने लिए कुछ न कुछ असम्भव कर ले।” बेचारी ठगी सी रह गई और कहने लगी कि “यह तू सिर्फ शब्दों के हेर-फेर का खेल खेल रहा है।” मेरे लिए यह बात महत्व्पूर्ण नहीं थी कि परमेश्वर है कि नहीं। मुझे तो अपने से ज्ञानवान को हराना था, बस हरा दिया।

हम अपने शब्दों और तर्कों से जीत तो सकते हैं पर अपने मन की छिपी बेचैनी पर जीत नहीं पाते। हम अपने आप से, अपने हालात से, अपने स्वभाव से हारे हुए व्यक्ति हैं। खूब खा लिया, खूब पहन लिया, खूब जी लिया, फिर भी अन्दर एक खालीपन खटकता है। हम एक दिमाग़ी बोझ के साथ जीते हैं। फिर भी हमारी दिमाग़ी अकड़ हमें इतना अकड़ा कर रखती है कि हम अपने विचारों के खिलाफ कुछ भी सुनना पसंद नहीं करते।

कई बार हमारे लिए धर्म, राजनीति और पैसा बड़ी परेशानी पैदा करते हैं। हमारे धर्म हमें सुधारने में तो सहयोगी साबित नहीं हो पाए पर उन्होंने हमें आपस में बाँटने में बड़ा सहयोग दिया है। हम बंटकर भी रुके नहीं, वरन जाति, उपजाति, वर्ग आदि के आधार पर और भी छोटे छोटे टुकड़ों में बंटते चले गये। इस सोच ने हमें बहुत बौना बना डाला है। हम बड़ी शान के साथ अपने नाम के पीछे एक दुमछल्ला ज़रूर लिख लेते हैं जो हमारे धर्म और जाति का परिचायक होता है, भले ही हमारे काम नीचता की सारी सीमाओं को क्यों न छू गये हों। ऊँची पढ़ाई के बावजूद, इतनी नीची बातें हमारे दिमाग में जमीं रहती हैं, जैसे: “हम लोग ऐसे नहीं होते”, “उस जाति के लोग ऐसे होते हैं।” हमारा दुर्भाग्य है कि कई बार कई जातियों के नाम का उपयोग हम गाली की तरह करते हैं; हमारे समाज के दिमाग में ऐसा कूड़ा कूट-कूट कर भर दिया गया है। इसके बावजूद हम अपने आप को श्रेष्ठ समझने का अहंकार अपने सीने में सजा कर रखते हैं, दूसरे के धर्म और जाति पर हमेशा चोट करने के लिए तैयार रहते हैं। एक चोर-डाकू, रिशवतखोर, व्यभिचारी और शराबी का क्या धर्म है? वह ऊँची जाति का हो या नीची जाति का, इससे क्या फर्क पड़ता है? और इसमें भी कोई फर्क नहीं कि वह पढ़ा लिखा है या अनपढ़, आस्तिक है या नास्तिक, बड़ी चोरी करता है या छोटी, ऑफिस से सामान की चोरी करता या घर में बिजली की या अस्पताल में दवाईयों की या फिर रिशवत ले देकर काम करता है। प्यारे दोस्तों ज़रा सोचो तो सही, हम सब इन्सान हैं और हम सबने पाप किए हैं। सच सुनिएगा - “कोई फर्क नहीं, क्योंकि सबने पाप किया है (रोमियों ३:२३)”।

ज़रा ठण्डे दिमाग से यह भी सोचिए, धर्म कोई क्यों न हो, सब अपने अपने धर्म की रक्षा करने में जुटे हैं। जिस धर्म की रक्षा हमें खुद करनी पड़े, वह धर्म हमारी रक्षा कैसे कर पाएगा? एक अन्य सोच, है तो बड़ी छोटी पर है बहुत खतरनाक - धर्म परिवर्तन की सोच। सच मानिए, धर्म बदल्ने की तो कतई कोई ज़रूरत नहीं है और न ही कोई फायदा है। बात तो तब है जब जीवन और स्वभाव ही बदल जाए।

हमारे पास बहुत सारे धर्म और बहुत सारे धर्मगुरू हैं, पर इन सब से हमारे जीवन पर क्या फर्क पड़ता है? हमारा स्वभाव तो जैसा का तैसा ही है। ऐसे व्यर्थ उलझाव में मत उलझें, हम आपको किसी नए धर्म की दलदल में नहीं फंसाना चाहते। असीम परमेश्वर को किसी धर्म के दायरे में खोजना कतई बुद्धिमता की बात नहीं है। सच मानिएगा, धर्म बदलने से या सरकारें बदलने से कुछ होने वाला नहीं है। आने वाले दिन और भी बुरे होते जाएंगे। आप पूछेंगे क्यों? हमारा जवाब है क्योंकि परमेश्वर का वचन कहता है, “पर यह जान रख कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे...(२ तिमुथियुस ३:१)”।

आज सादे से सफेद कपड़े पहिने कोई यह घोषणा करे कि यह आदमी खतरनाक है तो उसकी बात पर बहुत से विश्वास कर लेते हैं, क्यों? क्योंकि वह नेता है, हमारे समाज को चाटने, चबाने और पचाने वाले नेता। हर गली मुहल्ले में दो चार तो ज़रूर मिल ही जाएंगे। इन्होंने हमारे देश की बुनियाद, हमारी एकता को अन्दर ही अन्दर कुतर कर कमज़ोर कर डाला है। हमारा हर नेता हमें शान्ति और सुरक्षा देने का वयदा करता है; क्या खुद उनके पास शान्ति है? सुरक्षा गार्डों में घिरे नेता खुद सुरक्षित नहीं हैं तो वे हमें क्या सुरक्षा दे पाएंगे।

संसार का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हो भी जाए तो क्या आदमी चैन से जी पाएगा? क्या पैसा आदमी को सन्तुष्ट कर सकता है? क्या धनी लोग सन्तुष्ट हैं? कितने ही आदमी पैसा बनाने की मशीन बनते जा रहे हैं। आदमी और ज़्यादा बेचैनी में धंसता जा रहा है, फिर भी हराम की कमाई में उसे बड़ा रस आता है। ईमान्दारी तो सिर्फ बेवकूफी लगती है। सोचो तो सही, सच्चाई इस कदर सिकुड़ गई है। एक बोला “मैंने बड़ी ही अजीब चीज़ देखी”, दूसरे ने तपाक से पूछा “क्या देखा?” पहले ने कहा “सुनेगा तो सुनकर सन्न रह जाएगा। मैंने एक रिशवत ना लेने वाले सिपाही को देखा।” लुटेरों के समाज में हर तरफ हर कोई लूटने को तैयार खड़ा है। हर विभाग में, हर बाज़ार में यही हाल है। किसी बड़ी दुर्घटना के बाद सहायता करने वालों में कई ऐसे भी होते हैं जो बचाने के बहाने घायलों और लाशों की जेब और सामान टटोलते फिरते हैं। इन्सान इतना गिर चुका है, अब और कहाँ तक गिरेगा? अन्दर पाप बसा है तो पाप ही करेंगे, पर ध्यान रहे, शीग्र ही पाप का परिणाम भी बरसेगा।

कितने लोग अन्धे मुँह वाले हैं, हाँ अन्धे मुँह वाले। उन्हें नहीं मालूम कि वो क्या बोल रहे हैं, कहाँ बोल रहे हैं। वह तो अपनी बहू-बेटी-बाहिनों के सामने भी माँ-बहिन की छिछोली बाज़ारू गालियाँ बकते हैं। उन्होंने अपने विवेक को जलते लोहे से दाग़ लिया है (१ तिमुथियुस ४:२)। कितने तो इतने अन्धे हैं कि जब कभी साईकिल की चेन बार बार उतरने लगे तो साईकिल को ही गाली देने लग जाते हैं, और ज़्यादा गुस्सा आए तो साईकिल को लात भी मार देते हैं। उन्हें कोई एहसास नहीं कि चोट साईकिल को नहीं उन्हें लगती है, साईकिल का नुकसान भी तो खुद उनका ही है, किसी और का नहीं। इसी तरह हमारा हर पाप भी आखिरकर हमें ही नुक्सान पहुँचाता है। पाप हमेशा परेशानी छोड़ जाता है। मौत के बाद भी यह पाप पीछा नहीं छोड़ता। वह हमें हमेशा की परेशानी में धकेल जाता है। आपके शर्मनाक छिपे पापों के लिए क्या आपका विवेक आपको कभी कोसता है? क्या आपने कभी अपने आप को ही धिक्कारा है - “अरे मैं क्या आदमी हूँ? मैंने यह क्या कर डाला? मैं अब भी क्या कर रहा हूँ?” क्या ऐसे सवाल आपको कभी बेचैन करते हैं? विवेक की वेदना असहाय होती है। जब विवेक कचोटता है तब लगता है कि अब कुछ शेष नहीं रहा, कोई समाधान नहीं सूझ पड़ता और मन इस वेदना से निकलने के लिए आत्महत्या करने की सोचने लगता है।

परमेश्वर के पास वो आँखें हैं जो सब कुछ देख सकती हैं, आपकी बेचैनी और परेशानी को भी। लेकिन उसके पास वो दिल्भी है जो सब कुछ माफ कर सकता है, चाहे कोई क्यों न हो, कैसे भी पाप क्यों न किए हों। सृष्टि का सामर्थी सम्राट गिरे से गिरे व्यक्ति को भी प्यार से क्षमा देने की सामर्थ रखता है और उसका नम प्रभु यीशु है। वह कतई नहीं चाहता कि आप इसाई बन जाएं, पर वह चाहता है कि आपपने पापों की क्षमा पाकर आनन्द्मय जीवन पाएं। आप अपना सब कुछ त्याग भी दें तो भी जीवन का वास्तविक आनन्द नहीं पा सकते। मुक्ति पाने के लिए मुक्तिदाता से बस इतना कहना है, “हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया करो, मेरे पाप क्षमा करो।”

सारी सृष्टि का सम्राट आपको पा लेने के लिए, गुलामों की कीमत में बिक गया। सृष्टि के सबसे महत्वपूर्ण सप्ताह की समप्ति के समीप, यीशु ने आपके पापों की भयानक सज़ा अपनी देह पर सही। अजीब बात यह थी कि उस शुक्रवार की शाम को वह जो मर गया था, रविवार की सुबह जीवित प्रकट हुआ। वह परमेश्वर है जो अनन्त मौत से मुक्ति देकर, मौत को हमेशा के लिए मात दे गया। उसी शुक्रवार की सुबह, धर्मगुरूओं ने राजनेताओं के सहयोग से दो डाकुओं के बीच में उसे कीलों से क्रूस पर ठोक दिया था। उस समय दोनो डाकू भी प्रभु को कोस रहे थे (मत्ती २७:४४)। इतनी पीड़ा में पड़े प्रभु ने अपने प्यार भरे शब्दों से न जाने कितनों का दिल ही बदल डाला और आज भी बदल रहा है। भयानक पीड़ा के समय वह अपने शत्रुओं के लिए कहता है “हे पिता इन्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं।” बताओ तो सही, प्यारा प्रभु आपको क्षमा करने के लिए और क्या करे। यह किसी मनुष्य का प्रेम नहीं था। उन दोनों डाकुओं में से एक पहचान गया कि यह परमेश्वर है, यह किसी से नफरत नहीं रखता, यह खुद में खुदा है और खुदा प्यार है।

इस डाकू ने पूरी तरह अपना जीवन बरबाद कर डाला था। मौत से कुछ पल पहले ही इसने मान लिया कि वह इस सज़ा के लायक है। उसने यह भी पहचाना कि जो सज़ा वह भुगत रहा है वह तो मौत के साथ खत्म हो ही जाएगी, पर जो सज़ा मौत के बाद बचेगी, उस हमेशा की भयानक्ता से सिर्फ यही यीशु है जो उसे बचा सकता है। उसने मान लिया कि वह क्षमा के लायक भी नहीं है। फिर भी एक पश्चातापी हृदय से उसने कहा “हे यीशु जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी सुधि लेना” (लूका २३:४२)। प्रभु ने उसे फौरन प्यार भरा आश्वासन दिया “तू आज ही मेरे साथ स्वर्ग लोक में होगा” (लूका २३:४३)। एक सवाल आपके मन में खटकता होगा - ऐसे बड़े पापी को प्रभु ने इतना बड़ा आदर और प्यार क्यों दिया? प्रभु ने कहा है “जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी नहीं निकलूँगा” (यूहन्ना ६:३७)। यह घटना दर्शाती है कि अभी इतनी देर नहीं हुई कि आप प्रभु के पास न लौट सकें। प्रभु ने डाकू का धर्म नहीं बदला, बल्कि उसका जीवन बदल दिया। वह ऐसे ही आपका भी जीवन बदल सकता है, बस आप अपनी बुनियादी बेईमनी से निकल कर ईमानदारी से अपने पापों को प्रभु के सामने मान लें।

दिन पर दिन आते हैं और हर दिन हमें हमारे आखिरी दिन के करीब ला रहा है। आखिरी दिन कब होगा? जब आप सोचते भी नहीं होंगे। एक दिन अचानक ही आपको हैरान करेगा और आपकी मौत को आपके सामने खड़ा कर देगा। शायद तब आपकी बेबस आँखें आखिरी बार इस सँसार और अपने करीबी साथियों को देखती हुई याचना कर रही होंगी “कुछ तो करो” पर सब असहाय से खड़े रह जाएंगे और आप हमेशा के लिए इस सँसार से चले जाएंगे। ज़िन्दगी आपके हाथों से ऐसे फिसल जाएगी और आप कुछ नहीं कर पाएंगे। बस फिर अनन्त भयानक्ता को भोगना ही बकी रह जाएगा।

अब अभी आपके पास ऐसा शुभ अवसर है जहाँ जीवन का सारा अभिशाप एक प्रार्थना से हमेशा के लिए मिट सकता है। बस एक सच्ची पुकार की ज़रूरत है “हे प्रभु यीशु मुझ पापी पर दया करो, मेरे पाप क्षमा करो।” प्यारा प्रभु आपकी तलाश में है, कि आप नाश न हों पर बच जाएं और एक अनन्त आनन्द से भरा जीवन पाएं।

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