मेरा नाम मेघा चानी है। मैं एक डॉक्टर हूँ और धमतरी हस्पताल, छत्तीसगढ़ में काम करती हूँ। मेरा जन्म १९६६ में एक विश्वासी परिवार में हुआ। मेरे माता-पिता दोनो सच्चे विश्वासी थे इसलिए बचपन से ही हमारे परिवार में नित्य पारिवारिक प्रार्थनाएं होती थीं। मुझे छोटी उम्र से ही सिखाया गया था कि मैं अपनी हर ज़रूरत को प्रभु के पास प्रार्थना के द्वारा ले जाऊँ। मेरे माता-पिता का जीवन भी मेरे लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण था। उनके पास बहुत पैसा तो नहीं था, इस्लिए हमें अक्सर कमी-घटियों का सामना करना पड़ता था। परन्तु इसके बावजूद हमारे घर में परमेश्वर की सच्ची शाँति और आनन्द था।
ऐसे माहौल में पलते हुए मैं दूसरों की नज़रों में एक अच्छी लड़की थी। मैं पढ़ाई में मेहनती थी और शिक्षकों का आदर भी करती थी। फिर भी मुझे अपने अन्दर पाप का एहसास होता था। मुझे ऐसा लगता था कि मेरे जीवन में किसी चीज़ की कमी है।
जब मैं सातवीं कक्षा में थी तो धमतरी हस्पताल में कुछ विशेष आत्मिक सभाएं आयोजित की गयीं। उन सभाओं में मैं आत्मिक गीत गाने वाली टोली में थी। वहाँ मैंने प्रचारकों के द्वारा सुना कि हम सब पापी हैं और हमें पापों की माफी के लिए प्रभु यीशु मसीह और उसके लहु के द्वारा शुद्ध होने की ज़रूरत है। मुझे एहसास हुआ कि चाहे मैं बाहर से अच्छी हूँ और अच्छे काम करती हूँ, फिर भी मैं एक पापी हूँ। मैं उस सभा में आगे जाकर प्रभु यीशु को ग्रहण करने से झिझक रही थी, यह सोच कर कि लोग क्या कहेंगे। परन्तु जैसे सभाएं चलती रहीं तो वैसे मेरी बेचैनी भी बढ़ती गई। एक रात मैंने अपनी माँ को यह बात बताई और अगले दिन आगे जाकर प्रभु यीशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता ग्रहण कर लिया। तब मुझे लगा कि मेरे जीवन में यही खालीपन था जो केवल प्रभु यीशु ही भर सकते थे। शायद बाहर से लोगों को कोई परिवर्तन न दिखाई दिया हो, लेकिन मैं अपने अन्दर एक बदले हुए जीवन का एहसास करने लगी। मेरे अन्दर वचन के लिए बहुत भूख जाग उठी और तब मैं स्वेच्छा से वचन पढ़ने और प्रार्थना करने लगी।
प्रभु के अनुग्रह से १९८५ में मेरा दखिला एक मैडिकल कालिज में हो गया जहाँ से मैंने अपनी डाक्टरी की पढ़ाई पूरी की। अप्रैल १९९१ में मेरे पिता अचानक प्रभु के पास चले गये। इस हादसे से हमें एक गहरा आघात लगा। आर्थिक रूप से भी हम बड़ी मुशकिलों में पड़ गये। ऐसी परिस्थिती में मेरे मन में कई प्रश्न उठते और मेरा मन भी कठोर होने लगा। लेकिन प्रभु ने ना तो हमें छोड़ा न त्यागा। धीरे-धीरे प्रभु ने हमारी सब ज़रूरतों को पूरा कर दिया और मेरी उच्च शिक्षा के सारे प्रयोजन भी पूरे कर डाले।
मैं लगभग २९ वर्ष की हो चुकी थी और मेरे साथ के मित्रों में से बहुतों के विवाह भी हो चुके थे। पर मैं एक विश्वासी से विवाह करना चाहती थी। बहुत सालों तक मैं प्रार्थना में इन्तज़ार करती रही। अन्त में मुझे लगा कि शायद प्रभु मुझे अविवाहित ही रखना चाहता है। यह विचार मुझे निराश करते थे। परन्तु मैंने अपने जीवन में प्रभु के प्रेम और विश्वासयोग्यता का एहसास किया था। सन १९९६ में प्रभु मेरे सामने एक विश्वासी का रिश्ता लाया। और करीब आठ महीने प्रार्थना के बाद हम दोनो इस विवाह के लिए सहमत हुए। मई १९९७ में मेरा विवाह प्रभजोत सिंह चानी के साथ हो गया।
मेरे पति की गवाही पढ़ने से आपको यह एहसास होगा कि हम दोनो कितने अलग पारिवारिक और व्यक्तिगत परिस्थितयों से गुज़रे हैं। हम दोनो के स्वभाव भी अलग-अलग हैं। लेकिन प्रभु ने अपनी अदभुत दया से हमें अपने परिवार में सच्ची खुशी और शान्ति दी है और हमें निश्चय है कि प्रभु ने नमें जोड़ा है “यह प्रभु की करनी है और हमारी दृष्टि में अदभुत है” (भजन ११८:२३)। मेरी पढ़ाई और धमतरी हस्पताल में कुछ अनिवार्य सेवा के कारण हम दोनो को अलग रहना पड़ रहा है, परन्तु हमने अपने परिवार में परमेश्वर की दया से सच्चा प्रेम और आनन्द पाया है। आपसे निवेदन है कि हमारे इस छोटे परिवार को अपनी प्रर्थनाओं से सहारा देते रहें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें