एक बच्ची से पूछा, “ऎसा क्या है जो यीशु नहीं कर सकता?” बच्ची थोड़ी देर सोचती रही फिर वह अचानक चौंक कर बोली, “मेरा प्रभु पाप नहीं कर सकता।” जी हाँ, प्रभु पाप नहीं कर सकता और झूठ नहीं बोल सकता। उसने मुझ जैसे धोखेबाज़ को आज तक धोखा नहीं दिया। तभी तो आज उसकी दया से यह दीया मुझमें जल रहा है। इसलिए मैं उसके ‘शब्द’ पर सिर रखकर परेशानियों में भी शान से जीता हूँ और बेचैनियों में चैन से सोता हूँ।
प्रभु ने कहा, “मैं हूँ।” बड़ा अजीब सा नाम है। जब मैं जीवन से निराश होता हूँ और कहीं दूर तक भी मेरे पास कोई आस नहीं होती तब यह आवाज़ “मैं हूँ” बड़ा हियाव देती है। जब कभी मैं पाप में गिर जाता हूँ और उठ नहीं पाता, तब यह आवाज़ कहती है “मैं हूँ।” जब लगता है कि सबने छोड़ दिया तब यह आवाज़ कहती है “मैं हूँ।” कई बार जब मैं सोचता हूँ कि मेरा क्या होगा और मेरे परिवार का क्या होगा तब यह आवाज़ कहती है “मत डर केवल विश्वास रख, मैं हूँ।” पूरे सम्मान के साथ प्रभु का एहसान मानना ही स्तुती है। दिल से निकली हुई आराधना ही परमेश्वर के दिल तक पहुँचती है। ऎसा आदर ही आराधना का आधार है।
बाज़ारू शब्दॊं के तकियॊं क चलन बहुत है मगर उनमें अर्थ नहीं है। बाज़ारू शब्दॊं के तकियॊं में भूसा भरा होता है। पर वचन के तकिये में सच्चाई, प्यार, दया और क्षमा होती है। वह इतना मुलायम है कि उस पर सिर रखते ही लगता है कि जैसे बाप के कन्धे पर सिर टिका दिया हो। थके आदमी को वचन के मुलायम शब्दॊं का तकिया दे दीजिए ताकि वह साँस ले सके और जी हलका कर सके। तब वह सही सोचना शुरू करेगा।
जिस घर में आप बैठे हैं उस घर की हर ईंट को जो़ड़ने में बहुत से बेघर म़ज़दूरॊं ने तपती धूप में बहुत पसीना बहाया है ताकि आप तपती धूप से बचे रहें। शायद हमने कभी सोचा भी नहीं और एहसास भी नहीं किया। परमेश्वर का घर उसने अपने पुत्र प्रभु यीशु के लहू की कीमत पर बनाया है। उस लहू के द्वारा जो पसीने की तरह बहा था।
हम अच्छे हैं क्योंकि हम उसके बच्चे हैं, इसलिए नहीं कि हमारे कर्म अच्छे हैं। पर प्रभु मुझ जैसे आदमी को क्यॊं प्यार करता है? इस बात को यूँ समझिए - आप अपने छोटे बच्चॊं को क्यॊं प्यार करते हैं? उन्हॊंने आप के लिए क्या किया और क्या दिया - परेशानी, चिंताएं और नुक्सान? फिर भी आप उन्हें प्यार करते हैं। दुनिया में और भी बच्चे हैं जो आपके बच्चॊं से कहीं अच्छे हैं, बहुत सुँदर, और बहुत समझदार हैं; पर आप अपने ही बच्चॊं से प्यार करते हैं, क्यॊं? सिर्फ इसलिए क्यॊंकि वे आपके बच्चे हैं। हम भले ही उतने अच्छे न हॊं जितना हमॆं होना चाहिए, पर हम उसके बच्चे हैं।
अपनी बात बंद करने के साथ एक और बात आपके पास छोड़ जाता हूँ -
जब अब्राहम के पास कोई सन्तान नहीं थी, तब उसने अपने भाई के बेटे लूत को अपने बेटे की तरह पाला। लूत का पिता इस सँसार को छोड़ कर जा चुका था। अब्राहम ने लूत को पाला-पोसा और उसको सब कुछ दिया। समय के साथ लूत के पास परिवार, पत्नी, पैसा और सम्पत्ती सब था। लूत को एहसास होने लगा था कि अब अब्रहम के साथ रहना परेशानी के साथ रहना है। अब्राहम ने सोचा होगा कि अगर रहना है तो प्यार से रहना है, मजबूरी से नहीं। इसलिए उसने लूत से कहा, “तू जो जगह चाहे, चुन ले।” रेगिस्तान में अगर हज़ारॊं जानवरॊं के साथ जीना है तो उसे हरियाली को ही चुनना था (उत्पत्ति १२)। सो लूत ने बूढ़े अब्राहम के लिए सूखा रेगिस्तान छोड़ दिया और अपने लिए हरियाली को चुन लिया। कुछ सालॊं बाद लूत का सब कुछ लुट गया (उत्पत्ति १४:११, १२)। बूढ़ा अब्राहम फिर अपने सैनिकॊं के साथ दौड़ा और अपनी जान जोखिम में डालकर लूत के परिवार और सम्पत्ति को छुड़ा लाया (उत्पत्ति १४:१४, १६)। लेकिन लूत फिर से उसी सदॊम में जा बसा। वह अब्राहम को छोड़ सकता था पर सदॊम को नहीं। अब सदॊम का समय भी समाप्ति पर आ गया था। अब्राहम फिर परेशान हुआ कि कहीं सदॊम के साथ लूत नाश न हो जाए। वह परमेश्वर से उसके लिए लगतार प्रार्थना करता रहा कि वह नाश न हॊ पर किसी तरह बच जाए। लेकिन लूत इन सालों में कभी बूढ़े अब्राहम को देखने तक नहीं आया। अब्राहम लूत से क्यों प्यार करता था? क्या लूत बहुत अच्छा था? जी नहीं, सिर्फ इसलिए कि वह अब्राहम का अपना था। “... प्रभु अपनों को पहचानता है... ” (२ तिमुथियुस २:१९)।
अगर आपने प्रभु को अपनाया है तो उसने आप ही कहा है, हाँ आपसे ही कहा है, “... मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा और ना कभी त्यागूँगा” (इब्रानियों १३:५)|
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