आपको बड़ी अजीब सी बात बताता हूँ। एक बुढ़िया थी जो बचपन में ही मर गई। दिमाग़ इस बात को स्वीकारता नहीं। जी हाँ, बुढ़िया मरी हुई दशा में पैदा हुई, मरी हुई दशा में जीवन जीया और मरी हुई दशा में मरकर हमेशा की मौत में चली गयी। जो पाप की दशा में हैं वो मृत्यु की दशा में हैं। वे जीवित कहलाते तो हैं पर वास्तव में हैं मरे हुए। दाऊद कहता है, “मैंने पाप की दशा में स्वरूप धारण किया”(भजन ५१:५)। वास्तविक जीवन तो नये जीवन से ही शुरू होता है। जैसे ही पाप क्षमा होते हैं हम वास्तविक जीवन पाते हैं।
अजीब सी बात है, मुँह से पेट में डालते समय सोचते हैं - साफ है? सही है? कहीं सड़न तो नही? पर मन में गन्दे विचार, विरोध बिना सोचे समझे डालते रहते हैं जैसे कि मन नहीं कोई कचरे का डिब्बा हो! “सबसे अधिक अपने मन की रक्षा कर” (नीतिवचन ४:२३)।
अजीब सी बात है, सूप (छाज) और छलनी में अन्तर है। सूप व्यर्थ(थोथी) वस्तुओं को बाहर कर देता है और अच्छी वस्तुओं को रख लेता है। छलनी व्यर्थ वस्तुओं को अपने अन्दर रख लेती है और अच्छी वस्तुओं को बाहर कर देती है। मेरे पास छलनी जैसा मन है जो हर अच्छी वस्तु को बाहर निकाल देता है और बुराईयों को सालों तक अन्दर रखे रहता है; और प्रभु के हाथ में सूप है, “उसका सूप उसके हाथ में है” (मत्ती ३:१२)। जो प्रभु के सूप (संगति) में बने रहते हैं वे पल-पल पवित्र होते रहते है। संगति का एक नाम संजीवनी है जो हम में जीवन का संचार बनाए रखती है।
अजीब सी बात है, आदम और हव्वा को परमेश्वर ने सब कुछ दिया, बस एक लंगोट नहीं दिया! लंगोट की ज़रूरत तब होती है जब जीवन में खोट होता हैं। खोट होता है तब ही हम छिपते और छिपाते हैं। प्रभु न तो आपसे नोट मांगता है और न ही वोट। वह तो आपके मन का खोट मांगता है - “... भीतर वाली वस्तुओं को दान कर दो, तो देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए शुद्ध हो जाएगा” (लूका ११:४१)।
अजीब सी बात है, पर बात सजीव है। प्रभु न तो स्वर्ग का लालच देता है न ही नर्क में डालने की धमकी। न ही वह किसी नए धर्म का बोझ आप पर लादना चाहता है। वह तो आपको पाप के बोझ से आज़ादी देना चाहता है। “हे बोझ से दबे लोगों मेरे पास आओ, मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती ११:२८)।
अजीब सी बात है, एक बहुत धनवान व्यापारी ने सिर्फ एक मोती के लिए अपना सब कुछ बेच डाला। वही मोती उसका सारा धन हो गया। उस मोती के लिए सच मानो वह कंगाल हो गया। यही मोती उसके आज, कल और अनन्त्काल के आनंद का कारण है। जहाँ उसका धन है वहाँ उसका मन है (मत्ती ६:२१)। जी हाँ, ‘आप’ ही उसका धन हैं।
अजीब सी बात है मन मानता ही नहीं। हमेशा संसार की तरफ ही बहकता और बहता है, जैसे पानी जो हमेशा नीचे की तरफ ही बहता है। पानी को पात्र ही संभाल कर रख पाता है। मन को परमेश्वर के वचन का मनन ही संभाल कर रख पाता है। इसलिए वचन को मन में अधिकाई से बसने दो (कुलुस्सियों ३:१६)।
अजीब सी बात है, आपके पास एक आग है जो जीवन भर बहुतों को झुलसाती है। उसकी जलन बहुत से लोग जीवन भर सहते रहते हैं। जीभ छोटी है पर उसके थोड़े शब्द में बड़ी आग लगाने की सामर्थ है। ज़रा शब्द गड़बड़ाए नहीं कि घर में और मंडली में आग लग जाती है। छोटी सी आग भरे पूरे जंगल में आग लगा देती है (याकूब ३:१६)। कहते हैं वाणी, वीणा का काम करे तो भला है। लेकिन हमारी वाणी कई बार अग्निबाण का काम करती जाती है। इसलिए जो शब्द नुक्सान करें उनसे ज़रा चौकस रहिए।
अजीब सी बात है नफरत का पाप ज़िन्दा पाप है जो ज़िन्दगी को मुर्दा बना डालता है। इसलिए दूसरों को माफ करके हम अपने ऊपर ही दया करते हैं। “बुराई को भलाई से जीत लो” (रोमियो १२:२१)। दुश्मनों को दोस्त बना लेना ही वास्तविक विजय है।
अजीब सी बात है कुछ कहते हैं कि तुमने धर्म की ग़ुलामी छोड़ दी पर अब इस किताब की ग़ुलामी करते हो। शायद उन्हें मालूम नहीं कि इस किताब ने ही उन पापों के ग़ुलामों को पाप से आज़ादी दी है।
अजीब सी बात है एक स्त्री ने प्रभु के पाँव पर ३०० दिनार का इत्र उन्डेल दिया। उसने ऐसा क्यों किया? उसके सामने प्रभु के लिए ३०० दिनार की कोई कीमत नहीं थी। पर यहूदा इस्किरोती के लिए ३० सिक्कों के सामने प्रभु की कोई कीमत नहीं थी; उसकी तो सोच थी - ऐसा हो या फिर वैसा हो, जैसा भी हो बस पैसा हो!
अजीब सी बात है यह बात आपके हाथ में नहीं है कि आप मौत को टाल सकें। पर आप मौत को सुधार सकते हैं। मौत के मातम को अनन्त आनंद में बदल सकते हैं, शोक को अनन्त शांति में बदल सकते हैं - यह आपके हाथ में है। बस आप अपना हाथ परमेश्वर की ओर फैलाएं और कहें, “हे यीशु, मुझ पर दया करें।”
हैं अजीब सी बात मगर सौ आने सटीक!!
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