अजीब बात
परमेश्वर का वचन आज, कल और युगानुयुग एक सा है - सत्य तो ऐसा ही होता है। आज से पाँच हज़ार वर्ष पूर्व जब गणित का जन्म हुआ होगा, तब दो और दो चार होते थे। ज्ञान ने, विज्ञान ने लगभग सब कुछ ही बदल डाला, मनुष्य चाँद को भी पार कर सितारों तक जा पहुँचा, पर आज भी दो और दो को सवा चार नहीं कर पाया, और न कभी कर पाएगा। क्योंकि यह गणित का सत्य है। परमेश्वर का वचन अनन्त सत्य है, इसलिए यह आज, कल और युगानुयुग एक सा है। जो यह वचन कह रहा है, बस वैसा ही था, वैसा ही है और वैसा ही होगा।जीवित बात
ज़रा और सुनिए, यह वचन सत्य ही नहीं, जीवित भी है। कहीं किसी भाई ने युँ कहा, “आदम मिट्टी का प्राणी था, और वह मिट्टी ही रहता, पर प्रभु ने उसमें जीवन की आत्मा फूँककर उसे जीवित बना दिया।” यह ऐसी जीवित पुस्तक ऐसी अदभुत है, कि जब भी मैं इसे पढ़ता हूँ, तो यह भी मेरे छिपे हुए जीवन को पढ़ना शुरू कर देती है। सच मानिए, यह आईने की तरह किसी का कोई लिहाज़ नहीं करती; जो जैसा है, उसे वैसा ही दिखाती है और वैसा ही उसके सामने रख भी देती है। आईने की तो अपनी कुछ सीमाएं हैं - वह केवल बाहरी स्वरूप दिखा पाता है, भीतरी नहीं। अगर आईने के सामने नारियल रख दिया जाए, तो वह उसकी बाहरी कठोरता को ही दिखा पाएगा, पर उस नारियल के अन्दर की मुलायम परत और मीठे जल को कभी नहीं दिखा पाएगा। पर परमेश्वर का वचन तो अन्दर की गहरी छिपी बातों को, भूले बिसरे कामों को, पाप के विचारों को, हर एक छिपी हालत को भी सामने लाकर रख देता है।मन की बात
यह वचन न केवल अन्दर की बात प्रकट करता है, परन्तु उसके अनुसार व्यवहार भी करता है। बुराई के लिए मुझे डाँटता है, जब निराश और हारा हुआ होता हूँ तो प्यार से पुचकार कर हियाव देता है; कहता है, “मत डर, मैं हूँ, मैं तुझे कभी नहीं त्यागुँगा, कभी नहीं छोड़ूँगा।” मेरे प्रतिदिन के जीवन में मेरा मार्ग दर्शक बनता है, “तेरा वचन मेरे पाँव के लिए दीपक और मेरे पथ के लिए उजियाला है (भजन ११९:१०५)।” जब मैं भटक कर दूर निकाल जाता हूँ, तब यह मुझे लौटा कर राह पर भी ले आता है। ये जीवन से भरा वचन, मुझमें जीवन की भरपूरी ले आता है “तुम जीवन पाओ और बहुतायत का जीवन पाओ (यूहन्ना १०:१०)।”कुशल की बात
ये वचन ऐसा ज़बर्दस्त है, फिर भी किसी से ज़बर्दस्ती नहीं करता। ये ना मौका देने में कभी कमी करता है और ना कभी दया करने में कोई कमी रखता है। “और नहीं चाहता कि कोई नाश हो, वरन यह कि सब को मन फिराने का अवसर मिले (२ पतरस ३:९)।” “...क्या ही भला होता कि तू ही, हाँ तू ही इस दिन कुशल की बात जानता...”। “...क्योंकि तूने वह अवसर जब तुझ पर कृपादृष्टि की गयी न पहचाना” (लूका १९:४४)। इसे कितने विश्वासी पढ़ते और सुनते तो हैं, पर लापरवाही से। अपनी शक्ल आईने में देखी और बिना संवरे, जैसे आए थे, वैसे ही चले गये (याकूब ३:२३)। ध्यान की बात
“जो वचन पर मन लगाता है, वह कलयाण पाता है... (नीतिवचन १६:२०)।” एक पुरानी घटना को नये शब्दों के साथ सुनिए। एक पुराने विश्वासी, सभा के बाद मिले; बड़े उत्साहित थे। कहने लगे, “अरे भाई, आप तो देहरादून में भी रहे हैं। देहरादून का नाम लेते ही बासमती चावल याद आ जाता है, क्या बात है, घर पर बनाईये और मोहल्ला महकाईये। भाई वहाँ बासमती का क्या भाव चल रहा है?” मैंने कहा, “यहाँ का भाव तो मालुम नहीं, वहाँ का क्या बताऊँ।” मैं अपना वाक्य पूरा कर भी नहीं पाया था कि वह बोले, “क्या ज़माना था, क्या लीची होती थी। साहब देहरादून की काग़ज़ी लीची की क्या बात थी, मूँह में डालो, और गुठली ढूँढते रह जाओ। सन ७० में दो रुपए किलो मिलती थी। क्या बताएं साहब, वो दिन हवा हो गये, पाँच रुपए देहरादून का किराया था। दस का नोट सुबह तुड़वाओ, शाम तक खर्च होने में नहीं आता था।” मैंने पीछा छुड़ाने के लिए बात बदलते हुए पूछा, “भाई, पिछले हफ्ते मंडली में क्या वचन दिया गया था?” वो जनाब कुछ झेंपते हुए मुस्करा कर बोले, “भाई बूढ़ा हो गया हूँ, याद्दाश्त भी बूढ़ी और कमज़ोर हो गयी है; ध्यान नहीं आ रहा भाई।” मुझे ताज्जुब हुआ, छत्तीस साल पहले की चीज़ों के भाव तो याद रहे, पर छत्तीस घंटे पहले का वचन याद नहीं! याद रहता भी कैसे, ध्यान तो कहीं और लगा था। सच तो यह है कि हम प्रभु के वचन पर ध्यान नहीं धरते; ध्यान तो सँसार में ही धरा रहता है। ध्यान लगाने से ही ध्यान रहता है। इसे ही कहते हैं परमेश्वर के वचन की जुगाली करना, मनन करना। जब मनन करते हैं तो परमेश्वर की सामर्थ मेरे और आपके आत्मिक जीवन को बलवन्त करती है। तभी हम परिस्थित्यों का सामना कर पाते हैं।क्या बात
विश्वासी के उस विश्वास पर जो उसका परमेश्वर के वचन पर होता है, शैतान सीधा वार करता है, ताकि हम परमेश्वर के वचन पर शक करने लगें। एक साधरण सा विश्वासी किसी पार्क में बैठा परमेश्वर का वचन पढ़ रहा था। वह इतना मस्त और मग्न था कि वचन पढ़ते पढ़ते चिल्लाकर बोल उठा “हाल्लेलुयाह! वाह परमेश्वर आपकी क्या बात है।” पास बैठे एक नास्तिक ने पूछा, “क्यों मियाँ, क्या बात हो गयी?” विश्वासी बोला, “देखो परमेश्वर की क्या बात है, न नाव थी न जहाज़; लेकिन सारे इस्राइलियों को पैदल ही लाल समुद्र पार करा दिया।” नास्तिक ने बड़े प्यार से विश्वासी के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराकर कहा, “ मैं तुम्हारे विश्वास पर चोट नहीं पहुँचाना चाहता। पर सच तो यह है कि उस समय लाल समुद्र में आठ इन्च ही पानी था, इसिलिए न तो जहाज़ चलते थे न नाव, पैदल ही पार करना था।” विश्वासी बहुत भोला था, उसकी तरफ देखकर कहा, ‘अच्छा!’ और फिर परमेश्वर का वचन पढ़ने लग गया। अभी चंद पल ही बीते थे कि विश्वासी फिर चिल्लाया, ‘हल्लेलुयाह, क्या बात है परमेश्वर की।’ नास्तिक फिर चौंका, और विश्वासी से पूछा, ‘अबे अब क्या हो गया?’ विश्वासी ने कहा, ‘देखो, परमेश्वर की क्या बात है। आठ इंच पानी में उसने मिस्रियों की सारी सेना को डूबा मारा।’ अब नास्तिक निरुत्तर था। परमेश्वर के वचन पर शक पैदा करने के लिए कई नास्तिक कई तर्क देते हैं, जैसे:- वचन बताता है कि दानिय्येल जब शेरों की मांद में डाला गया, तो परमेश्वर ने शेरों के मूँह बन्द कर दिये और वे उसे नहीं खा सके। नास्तिक तर्क देते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शेरों के पेट भरे थे। पर कोई इन नास्तिकों से पूछे, कि जब दान्निय्येल के शत्रुओं को उन्ही शेरों की उसी मांद में डाला गया तो शेर उन्हें क्यों चट कर गये? ये सब तर्क, मात्र परमेश्वर के वचन पर शक पैदा करने के लिए ही दिये जाते हैं।
परमेश्वर ने सब नामों से बढ़कर यीशु के नाम को किया है (फिल्लिप्यों २:९), लेकिन एक और है जिसे उसने अपने इस नाम से भी ज़्यादा महत्त्व दिया है - “क्योंकि उसने अपने वचन को अपने बड़े नाम से अधिक महत्त्व दिया है” (भजन १३८:२)। अधिकांश विश्वासी पस्रमेश्वर के उस वचन को महत्त्व नहीं देते जिसे परमेश्वर अपने बड़े नाम से भी अधिक महत्त्व देता है। इसलिए बाईबल अध्ययन सभाओं में कुछ ही विश्वासी दिखाई देते हैं।
मेरी बात
ध्यान रहे, अच्छे स्कूल आपके बच्चों को कभी अच्छा नहीं बना पाएंगे। अच्छी संगति ही इन्सान को अच्छा बनाती है। हम अक्सर कुछ बहानों के चलते अपने बच्चों को बाईबल अध्ययन सभाओं में नहीं लाते - जैसे: ठंड लग जाएगी, गर्मी बहुत है, होम्वर्क बहुत है और मुशकिलें बहुत हैं। विश्वासी नहीं समझता कि वह कितनी नासमझी का काम कर रहा है। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और वचन का नहीं पर दुनिया का अनुसरण करने लगते हैं, बात उनके हाथ से निकल चुकी होती है। तब बच्चों के लिए रोना और पछताना ही रह जाता है। परमेश्वर का वचन कहता है, जो बोया था, वही अब काटोगे (गलतियों ५:७)। जो प्रभु के वचन को आदर देता है, परमेश्वर उसको और उसके परिवार को आदर देता है। आज के थोड़े से दुख: और थोड़ी सी परेशानी कल के लिए बड़ी आशीशें बटोरने का एक मौका है।आख़िरी बात
अब यह बात आप पर है, कि इस सत्य को स्वीकारें या ठुकराएं। पर सच्चाई तो यही है, इसे झुठलाया नहीं जा सकता। अब परमेश्वर के जीवित वचन को अपने जीवन में उसका उचित स्थान देने का फैसला आपके हाथ है - इन्हीं हाथों को उठाकर, एक प्रार्थना एक निर्णय के साथ अभी यहीं कर लें।
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