(यह लेख २६ नवंबर २००८ को मुम्बई में हुए आतंकी हमले के बाद लिखा गया है)
यह लेख मैं उस समय लिख रहा हूँ जब सारा संसार सोच रहा है ‘अब क्या होगा?’ आतंकवाद ने हमें हिला कर रख दिया है। परमेश्वर के वचन की भविश्यद्वाणी कहती है, “आने वाली घटनाओं को देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा” (लूका २१:२६)। मैं देख रहा था कि लोग मौत से बचने के लिये भाग रहे थे। पर अब वह दिन भी आने वाले हैं जब वे “मरने की लालसा करेंगे और मौत उनसे भागेगी” (प्रकाशितवाक्य ९:६)। उग्रवाद का कारण, बदला लेने की भावना तथा जलन और द्वेश रखना ही है। बदले की इस भावना ने इन्सान के भीतर इन्सानियत को ही खत्म कर डाला है। ज़िंदा जिस्म में एक मुर्दा लाश जी रही है। आदमी के अन्दर एक शमशानी सन्नाटा और दहशत बसती जा रही है और यह उग्रवाद हमारे समाज पर सबसे शर्मनाक कलंक है।
काफी दिन हुए मैंने किसी पत्रिका में एक घटना के बारे में पढ़ा था। लोगों के नाम आदि मुझे याद नहीं रहे, लेकिन जो भी याद है वही आज आपके साथ अपने शब्दों के सहारे बाँट रहा हूँ। मध्य एशिया में किसी पर्यटक स्थल पर एक पति, पत्नि और उनके तीन बच्चे किसी होटल में ठहरे हुए थे। उनका बड़ा बेटा लगभग ७ वर्ष, छोटी बेटी ६ वर्ष और सबसे छोटा बेटा एक वर्ष के लगभग था।
अचानक एक गोली चलने की आवाज़ ने ६ साल की बच्ची को चौंका दिया। उसने दौड़ कर कमरे की खिड़की से झांका तो क्या देखा कि पास बहती हुई नदी के किनारे उसके पापा खून से लथपथ ज़मीन पर पड़े हुए हैं। तीन-चार आदमी बन्दूक लिए खड़े हुए हैं जिनमें से एक उसके भाई को पैरों से पकड़ कर पत्थर पर पटक पटक कर मार रहा था। इतने में उसकी माँ ने उसके पीछे से आकर देखा तो उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि उग्रवादियों ने उन्हें घेर लिया है और वे उनके कॉटेज की तरफ आ रहे हैं। माँ ने तेज़ी से अपने सबसे छोटे बेटे को गोद में उठाया और बेटी का हाथ पकड़ कर छिपने के लिए एक छोटे गोदाम की तरफ भागी। लड़की को उसने वहाँ रखी अनाज की बोरियों के पीछे छिपा दिया और खुद कुछ दूरी पर बेटे के साथ छिप गई। तभी उग्रवादी भी वहाँ आ पहुँचे। वे सामान इधर उधर फेंकते हुए उन्हे ढूंढने लगे। तभी माँ की गोद में बैठा बेटा डर से रोने को हुआ तो माँ ने उसका मुँह अपने हाथ से दबा लिया। जब उग्रवादी काफी ढूंढने के बाद लौटने लगे तब माँ ने अपना हाथ बेटे के मुँह से हटाया तो देखा कि बेटे की गर्दन लटकी हुई है। माँ ने डर और घबराहट में उसके मुँह के साथ उसकी नाक भी दबा दी थी और बेटा साँस रुकने के कारण मर चुका था। वह माँ यह देख अपने को रोक न सकी और उसकी चीख़ निकल पड़ी। उसकी चीख़ जाते हुए उग्रवादीओं को फिर लौटा लाई और उन्होंने माँ को भी गोलियों से भून दिया।
बोरियों में छिपी बैठी सहमी सी उस बच्ची ने यह सब देखा था। अगले लगभग ६ साल तक वह सदमे के कारण बोल न सकी। १२ साल की यह लड़की १८ साल तक बदले की भावना से भरी यही सोचती थी कि मैं उन लोगों से बदला कैसे लूँ? अब केवल यही उसके जीने का उद्देश्य बचा था। वह हँसना भूल चुकी थी। तभी उसकी मुलाकात प्रभु यीशु के एक दास से हुई जिससे उसने पापों की क्षमा, शान्ति, चैन और छुटकारे के बारे में सुना। जब इस अशान्त लड़की ने शान्ति के परमेश्वर से प्रार्थना कर दया की भीख माँगी, तब वह उस बदले के भाव से बाहर निकल पाई। तब उसने प्रभु से पूछा, “प्रभु अब आप बताईए, मैं क्या करूँ?” प्रभु ने उसको अपने वचन के द्वारा बताया, “अगर बुराई को जीतना है तो भलाई से जीतो।” आज यही लड़की उन्हीं उग्रवादियों के अनाथ और बेसहारा बच्चों की सेवा में लगी है।
उस उग्रवादी घटना ने तो इस लड़की को उग्रवादी बना ही दिया था, पर प्यारे प्रभु ने उसे क्या से क्या बना दिया। आज वह अपना बाकी जीवन द्वेश से नहीं पर प्यार से, बुराई से नहीं पर भलाई से बिता रही है। “बुराई से न हारो, परन्तु बुराई को भलाई से जीत लो” (रोमियों १२:२१)।
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