मिलावट और बनावटीपन इस युग की सबसे ज़रूरी बात बन गई है। जल, वायु, भोजन सब मिलावटी है। जीवन रक्षक दवाईयों में भी मौत मिलकर बेची जाती है। अगर आप मरना चाहें तो असली ज़हर भी मिलना मुशकिल है। क्या आपने कभी सुना है कि कीड़े मारने वाली दवाई में भी कीड़े पड़ गए? इस बनावटी और मिलावटी युग में परमेश्वार के वच्न में भी मिलावट होने लगी है। बनावटी प्राचारकों की भी भरमार है। दानियेल भविष्यद्वक्ता की भविश्यवणी में अन्तिम युग लोहे और मिट्टी के मिलावटी पैरों पर खड़ा है (दानियेल २:३३,४१,४२)।
आज पाप सिर्फ कोई मजबूरी मात्र ही नहीं, पर पाप एक मनोरंजन का साधन भी बन गया है। किसी को बेवकूफ बनाकर और धोखा देकर बड़ा मज़ा आता है। हम अपनी पेहचान भूल गये हैं। वास्तव में हम क्या हैं? हम दूसरों को तो कहते हैं कि लोग बैर हैं, झूठ बोलते हैं, लालची हैं; पर मैं क्या हूँ? अगर कभी कोई कमी दिखती भी है तो हम उसे सही ठहराने की कोशिश करते हैं या फिर मजबूरी गिनाते हैं।
बीवी कह रही थी, “दुनिया में इमान्दारी नहीं बची। लोग धोखा दे रहे हैं और धोखा खा रहे हैं। बड़े से बड़ा आदमी क्या, छोटा भी दे रह है। बस संसार का अन्त आ गया है। देखो सुबह क्या हुआ, सबज़ीवाला मुझे एक खोटा सिक्का थमा गया; एक रुपये के लिये भी ईमान बेच दिया! वैसे तो खुदा खुदा कर रहा था।” पती बोला, “ज़रा वह खोटा सिक्का तो दिखाओ।” बीवी बोली, “वह तो मैंने दूधवाले को भेड़ दिया!” जब कोई हमें कुछ नोटों के बीच में एक फटा हुआ नोट चला देता है तो हमें उसके धोखे पर बहुत दुख, गुस्सा और झुँझलाहट आती है। पर अगर वही नोट हम उसी तरह से दूसरों को थमा देते हैं तो हमें बड़ी खुशी मिलती है और हम राहत महसूस करते हैं कि नोट चल गया।
शैतान एक ऐसा सेल्समैन है जो बड़े वायदे करता है और बड़े-बड़े लालच सामने रखता है; पर असल बात तो बाद में खुलती है और तब तक आदमी लुट चुका होता है। वह ऐसे आश्वासनों की भरमाई मन में भर देता है, जो कभी पूरे नहीं होते। शैतान, अपने झांसे में लाकर, हज़ारों सालों से, हव्वा से लेकर अब तक, न जाने कितनों को परमेश्वर के तुल्य हो जाने का ख़्वाब दिखाता रहा है। शैतान ने आदमी को अंश-अंश करके अपने स्वरूप में ढाल दिया है।
अगर झूठ सच सा न लगे तो झूठ कभी चल नहीं पायेगा। नकली नोट अगर असली सा ना दिखे तो चलेगा नहीं। काँटे पर आटा लगाया जाता है। काँटे पर यदि आटा न हो तो मछ्ली फंसेगी कैसे? काँटे को छिपाने के लिये आटा लगाना ही पड़ता है। लोभ के आटे की सच्चाई, बिना सटके, सहजता से समझ में नहीं आती। पर बाद में जब समझ में आती है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। हव्वा ने शैतान के एक ही झूठ को सच समझ कर उसका विश्वास किया था। एक बार आप फंस गये तो फिर बस छटपटाते रहेंगे।
लोग आश्चर्यकर्म देखना चाहते हैं, चँगाई देखना चाहते हैं। ज़्यादतर लोग परमेश्वर की खोज में नहीं. परन्तु वे किसी मदारी की खोज में हैं। अधिकतर तो अपने स्वार्थ की ही खोज में जुटे हैं। यह बात सच है कि प्रभु यीशु पाप से छुटकारा देने आया। पर ऐसे प्रचारकों की भर्मार है जो उछ्ल-कूद दिखाते हैं और बड़े-बड़े लालच देते हैं, और एक बड़ी भीड़ उनके पीछे है - “ ... और कितनों के विश्वास को उलट-पुलट कर देते हैं (२ तिमुथियस २:१८)।” “ ... हे सोने वाले जाग और मुर्दों में से जी उठ; तो मसीह की ज्योति तुझ पर चमकेगी (इफ़सियों ५:१४)।”
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